14 अप्रैल को कई फिल्में और वेब सीरीज रिलीज हुई. टीम के अलग-अलग साथियों ने अलग-अलग फिल्में देखी. उनका रिव्यू किया. मेरे हिस्से आई राधिका आपटे की फिल्म Mrs Undercover. अपने पास था ऑप्शन, मैं 'जुबली' का चुनाव कर सकता था. लेकिन ना, मैंने अपने पैर पर मारी 'मिसेज अंडरकवर' नाम की कुल्हाड़ी. मेरे इस फिल्म को लेकर क्या विचार हैं? आप अब तक जान गए होंगे. पर ऐसा क्यों है ये बता देते हैं.
मिसेज अंडरकवर: मूवी रिव्यू
इस फिल्म के साथ सबसे बड़ी दिक्कत है, ये एक लीक पर नहीं चलती. माने आपके पास चौड़ी सड़क हो तो इसका मतलब ये नहीं कि कहीं भी गाड़ी दौड़ाएंगे.

# फिल्म का आइडिया ठीक है. एक दुर्गा नाम की हाउस वाइफ है, जो अंडरकवर एजेंट है. खुफ़िया विभाग तक को ये नहीं पता कि उसका कोई ऐसा एजेंट भी है. उनके एजेंट वाले पेपर खो गए थे भाई. है न बचकानी बात. आधी पिक्चर तो दुर्गा को मिशन के लिए मनाने में ही चली जाती है.
# एक स्पेशल फोर्स का चीफ है, जो कॉमेडियन है. इससे ठीक तो एसीपी प्रद्युम्न थे. कम से कम कॉमेडी तो नहीं करते थे. माने अलग-अलग मौकों पर अलग-अलग भेष धरकर चीफ साहब आधी से ज़्यादा पिक्चर में दुर्गा को कंविन्स करने में लगे रहते हैं. उनकी इंवेस्टिगेटिव स्किल जैसी भी हो, कॉमिक स्किल बढ़िया है.
# एक आदमी है, जो 16 लोगों को मार चुका है, पर उसे किसी ने देखा नहीं. खुलेआम सड़क पर वो कत्ल करके वीडियो बना रहा है. स्पेशल फोर्स के सारे एजेंट वो मार चुका है. बस एक एजेंट बची है. मतलब हद ही है. फिल्म के नाम पर इतनी भी लिबर्टी अच्छी नहीं है जी. कंट्रोल उदय कंट्रोल.
# फेमिनिज्म के नाम पर हाउसवाइफ को फिर वही आप दुर्गा का रूप बना दे रहे हैं. क्यों देवी बनाना है जी! दो डायलॉग आपके सामने पेश किये देते हैं, जिससे मैं अपनी बात साबित कर सकूं.
'हाउसवाइफ अपने आप में दुर्गा होती है.'
'इसे सज़ा देने के लिए एक हिन्दुस्तानी हाउसवाइफ ही काफी है.'
# फिल्म टोटल क्लूलेस है. मेकर्स क्या चाहते हैं! कॉमेडी करना चाहते हैं. स्पाई फिल्म बनाना चाहते हैं. महिला सशक्तिकरण पर उपदेश देना चाहते हैं. व्यंग्यात्मक अप्रोच रखना चाहते हैं. एक जगह तो रुको भाई! सबकुछ एक ही फिल्म में रखकर परोस दिया है. कुछ दर्शकों पर भी रहम करिए.
# क्लाइमैक्स तो भयानक क्लीशे है. मेरा मन कर रहा है क्लाइमैक्स के बारे में बहुत कुछ कहने का. पर जो लोग इस पिक्चर को देखकर अपना समय स्पॉइल करेंगे, उनके लिए स्पॉइलर हो जाएगा. इसलिए रहने देते हैं.

# मुझे लगता है कि 'मिसेज अंडरकवर' को एक प्योर कॉमेडी फिल्म बनाना चाहिए था. प्रियदर्शन टाइप फिल्म. कुछ अलग से नहीं करना चाहिए था. बढ़िया फिल्म बनती.
# एक कॉमन मैन है, जो एंपावर्ड वुमेन को मारता है. माने उसको शुरू से ही आप पकड़ सकते थे. जिस एक चीज़ से उसकी पहचान होती है कि यही कॉमन मैन है. उस तरीके से तो आधी पिक्चर में ही पकड़ा जाता. पर नहीं, एक घंटा 47 मिनट की फिल्म भी तो बनानी थी.
# फिल्म के स्क्रीनप्ले को आप कॉमेडी और स्पाई दो भागों में बांट सकते हैं. कॉमेडी वाला स्क्रीनप्ले ठीक है. स्पाई वाला बेकार. मैं बेकार शब्द अमूमन रिव्यू में इस्तेमाल नहीं करता. पर इसके लिए कर रहा हूं. फिल्म को लिखा और डायरेक्ट किया है अनुश्री मेहता ने. उन्हें अगली फिल्म के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी.
# इस फिल्म के साथ सबसे बड़ी दिक्कत है, ये एक लीक पर नहीं चलती. माने आपके पास चौड़ी सड़क हो तो इसका मतलब ये नहीं कि कहीं भी गाड़ी दौड़ाएंगे. ज़्यादा इधर-उधर भागने पर एक्सीडेंट की संभावना बढ़ जाती है. 'मिसेज अंडरकवर' के साथ ठीक ऐसा ही हुआ है.
# फिल्म की इकलौती अच्छी बात है इसके ऐक्टर्स. राजेश शर्मा ने अपनी कॉमिक टाइमिंग से समां बांध दिया है. बहुत ही ज़्यादा कमाल का काम. सटल ह्यूमर. देहभाषा में किसी तरह की फूहड़ता नहीं. एकदम क्लीन हार्ड हीटिंग ह्यूमर. सुमित व्यास ने क्या काम किया है! उनको बहुत कम स्पेस मिला है. मैं उनके किरदार की और परतें देखना चाहता था. चाहता था कि वो और अभिनय करें. सुमित व्यास बहुत नैचुरल ऐक्टर हैं भाई साहब. राधिका आपटे की ऐक्टिंग जोरदार है. उन्होंने हाउसवाइफ वाला पार्ट बहुत शानदार निभाया है. वो स्क्रीन पर ऐक्टिंग करती नहीं दिखती. उनकी कॉमेडी स्किल्स और ज़्यादा एक्सप्लोर की जानी चाहिए.
अब इतनी अच्छाईयां मैंने फिल्म की बता दीं. इसके बाद भी आपका मन है कि पिक्चर देखी जाए, तो ज़ी5 पर स्ट्रीम हो रही है. आप भी अपना सर दीवार की बजाए 'मिसेज अंडरकवर' पर दे मारिए.
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