साल 1996 में टॉम क्रूज़ की फिल्म ‘मिशन इम्पॉसिबल’ आई. फिल्म में टॉम अपनी जान पर खेलते दिखे. फिल्म चल निकली. आगे स्टूडियो वालों ने ‘मिशन इम्पॉसिबल’ को फ्रैंचाइज़ी बना दिया. हर पार्ट के साथ लोगों की जिज्ञासा रहती कि टॉम अब क्या स्टंट करने वाले हैं. ये आदमी अब क्या अनोखा करने वाला है. अब ‘मिशन इम्पॉसिबल’ की सातवीं किश्त आई है. मैंने फिल्म का प्रेस शो देखा. शो खत्म होने के बाद बाहर कुछ मीडिया वाले सभी से सवाल पूछते हैं – फिल्म कैसी लगी? टॉम क्रूज़ कैसे थे? उनका एक्शन कैसा था? इन सब सवालों के साथ और भी सवालों के सब्जेक्टिव जवाब इस रिव्यू में देने की कोशिश करेंगे.
फिल्म रिव्यू: मिशन इम्पॉसिबल 7
हर 'मिशन इम्पॉसिबल' फिल्म के साथ टॉम क्रूज़ अपना गेम ऊंचा करते जा रहे हैं. MI-7 भी अपवाद नहीं है.

परंपरागत तरीके से कहानी शुरू होती है. टॉम के किरदार इथन हंट को अपने मिशन का मैसेज मिलता है. वही मैसेज जो सुनने के पांच सेकंड बाद नष्ट हो जाता है. खैर ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में जो दुविधा सरदार खान को थी, वही ‘मिशन इम्पॉसिबल 7’ के किरदारों को है. एक चाबी खो गई, इथन को उसे ढूंढने के लिए भेजा जाता है. बताया जाता है कि इस चाबी से वो खतरनाक हथियार खुलता है जिसकी काट इंसानों के पास नहीं. न ही उस दुश्मन को खोजा जा सकता है. इथन चाबी की खोज में निकलता है. रास्ते में मिलते हैं पुराने दुश्मन और नए साथी. इन सब से होते हुए अपने मिशन को पूरा कैसे करेगा, यही फिल्म का मेन प्लॉट है.
किसी भी हीरो की कहानी तभी रोचक लगती है जब विलेन उससे तगड़ा हो. ये बात ‘मिशन इम्पॉसिबल 7’ क्रैक कर लेती है. यहां विलेन के लिए एक बात कही गई –
The enemy is everywhere and nowhere.

यानी दुश्मन सब जगह होते हुए भी कहीं नहीं है. इथन का दुश्मन सिर्फ कोई इंसान नहीं, जिसे हराकर जंग जीत ली जाए. ये एक ऐसा हथियार है, जिसे सरकारों ने बनाया. अपने मतलब के लिए अब्यूज़ किया. अब वही अपने जनक से शक्तिशाली हो गया है. इंसान के लिए वास्तविकता का मतलब बदल सकता है. आपके पर्सेप्शन के साथ खिलवाड़ करता है. इंसान का सबसे मौलिक अधिकार है चुनाव. हर परिस्थिति में चुनाव करने की आज़ादी. ये दुश्मन वो तक छीन सकता है. ऐसे दुश्मन को कोई कैसे ही हरा सकता है! मेकर्स ने इस कहानी को दो पार्ट में बांटकर सही ही किया. विलेन के बाद बात कहानी के हीरो की.
‘मिशन इम्पॉसिबल’ यानी टॉम क्रूज़. दोनों एक-दूसरे के पर्याय बन चुके हैं. हर ‘मिशन’ फिल्म के साथ सिर्फ टॉम की उम्र नहीं बढ़ रही. वो अपना बार भी ऊंचा करते जा रहे हैं. फिल्म में तीन ग्रिपिंग सीन हैं. एक है बाइक और कार चेज़ वाला सीक्वेंस, जहां टॉम और हेली एटवेल के किरदार बचकर भाग रहे होते हैं. दूसरा है वो सीन, जहां टॉम मोटरसाइकिल लेकर खाई पर से कूदते हैं. तीसरा है ट्रेन वाला सीक्वेंस. ये स्पॉइलर नहीं हैं. इनके बारे में मेकर्स पर्याप्त फुटेज रिलीज़ कर चुके हैं. टॉम इन सीन्स में जिस तरह खुद को होल्ड करते हैं, वो काबिल-ए-तारीफ है. कुछ पॉइंट्स पर मुझे उनकी जान के लिए डर लग रहा था. कि यार ये आदमी इतना सब कुछ कर कैसे रहा है. उनके कंविक्शन में कमी नहीं दिखती.
शूट करते वक्त भले ही टॉम क्रूज़ आत्मविश्वास से भरे हों. लेकिन अगर इथन खाई पर से कूदने में डर रहा है तो परदे पर वही दिखता है. वो अपने कैरेक्टर को भली-भांति समझते हैं. ‘मिशन: इम्पॉसिबल – डेड रेक्निंग पार्ट वन’ को लिखा और बनाया है Christopher McQuarrie ने. इससे पिछली दो ‘मिशन’ फिल्में भी उन्होंने ही बनाई थी. ‘मिशन इम्पॉसिबल 7’ का डायरेक्शन बहुत दुरुस्त है. क्रिस्टोफर को पता है कि वो कैमरे में क्या कैद करना चाहते हैं. साथ ही क्राफ्ट की इतनी समझ भी है कि उसे कैसे कैप्चर किया जाएगा. फिल्म में दो बड़े एक्शन सीक्वेंस हैं. शूटिंग से एडिटिंग तक वो ढीले नहीं पड़ते. अपनी ऑडियंस को एंगेज कर के रखते हैं.
बहुतायत में बनने वाली एक्शन फिल्मों से मेरी एक शिकायत रहती है. कि वहां कैमरा और शॉट्स के पीछे की सोच पर गहराई से काम नहीं होता. कई जगहों पर बस कैमरा लगाकर छोड़ दिया जाता है. स्टार सामने है, बस अपने आप शूट होता रहेगा. ‘मिशन इम्पॉसिबल 7’ उस मामले में भी अलग है. यहां कैमरा शॉट्स किरदारों की मनोदशा बताने और अपनी कहानी कहने के लिए इस्तेमाल हुए. जैसे फिल्म के शुरुआती हिस्से में डच ऐंगल का इस्तेमाल हुआ. डच ऐंगल में कैमरा एक तरफ टिल्ट या झुकाया जाता है. जब किरदार किसी कंफ्यूज़न में होते हैं. या उन्हें लग रहा होता है कि सब कुछ सही नहीं है. उनकी लाइफ में संतुलन नहीं बना हुआ. तब ये मनोदशा दर्शाने के लिए डच ऐंगल का इस्तेमाल किया जाता है.
जब इथन और उसकी टीम को चाबी के बारे में क्लेरिटी नहीं होती, तब फिल्म में डच ऐंगल दिखता है. लेकिन जैसे-जैसे तस्वीर साफ होने लगती है, कैमरा अपना संतुलन फिर से पा लेता है. इसमें क्रिस्टोफर मैकक्वेरी के साथ सिनेमैटोग्राफर फ्रेज़र टैगार्ट को भी क्रेडिट जाता है. ‘मिशन इम्पॉसिबल 7’ एक टिपिकल ‘मिशन’ फिल्म है. और यही बात इसकी ताकत भी है. सिर्फ अपने एक्शन के भरोसे कहानी नहीं खींचना चाहती. मेरी राय में ‘मिशन: इम्पॉसिबल: घोस्ट प्रोटोकॉल’ के बाद सीरीज़ में अगली दमदार फिल्म यही आई है. बड़े परदे पर पूरी तरह एन्जॉय की जाने वाली फिल्म.
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