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मनोज बाजपेयी की 'भोंसले' के लिए नहीं मिला पैसा, हर दरवाजे पर जाकर खटखटाना पड़ा!

खास बात ये है कि मनोज को इस फिल्म के लिए बेस्ट एक्टर का नेशनल अवॉर्ड मिला था.

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देवाशीष मखीजा ने इस फिल्म की कहानी को 2011 में लिखना शुरू किया था.

Manoj Bajpayee को देश के सबसे बेहतरीन एक्टर्स में गिना जाता है. फिल्मों में आने की उनकी जर्नी आज लोगों को काफी इंस्पायर करती है. मगर हाल ही में उन्होंने एक्टर बनने के बाद के स्ट्रगल्स पर चर्चा की. बताया कि कैसे इंडिपेंडेंट फिल्में करते वक्त एक्टर्स को तारीफ तो खूब मिलती है, मगर पैसे नहीं मिलते. उनके अनुसार साल 2018 में आई नैशनल अवॉर्ड विनिंग फिल्म Bhonsle के लिए उन्हें फंडिंग तक नहीं मिल रही थी. इसके लिए उन्होंने कई लोगों के दरवाजे तक खटखटाए थे.

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बॉलीवुड बबल से हुई बातचीत में मनोज बताते हैं,

"आपको विश्वास नहीं होगा कि देवाशीष मखीजा ने अब तक 4 फिल्में बनाई हैं. उन्होंने शॉर्ट फिल्में बनाई हैं. एक शॉर्ट फिल्म जो उन्होंने मेरे साथ बनाई, वो है 'तांडव.' फिर उन्होंने 'अज्जी' बनाई, जिसमें मैं नहीं हूं. फिर उन्होंने 'भोंसले' और 'जोरम' मेरे साथ बनाई. मैंने देवाशीष की तीन फिल्मों में काम किया है. लेकिन जब वो मेरे पास 'भोंसले' की स्क्रिप्ट लेकर आए, तो मैं हर एक के दरवाजे को खटखटाने गया ताकि फिल्म को फंड मिल सके. लेकिन मुझे इस फिल्म के लिए फंडिंग नहीं मिली."

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मनोज ने आगे बताया,

"जब मुझे थोड़ी-बहुत फंडिंग मिली और हमने फिल्म शुरू की, तो जिस चॉल में हमें शूटिंग करनी थी, तो हमें पता चला कि उसे कुछ समय बाद तोड़ दिया जाएगा. उस वक्त हमारे पास केवल 10 दिन मात्र के पैसे थे. 11वें दिन हमें निकाल दिया जाता. मैं हर दिन अपना बेस्ट शॉट देता. ऐसे शॉट, जिन्हें सेलिब्रेट किया गया, बातें की गई. मगर लोगों को पता नहीं कि मैं हर शॉट के बाद वैन में जाकर फाइनेंसर्स को कॉल करता. उनसे कहता कि यार पैसे दे दो. 10 दिन के बाद शूटिंग करने के पैसे नहीं हैं."

'भोंसले' को देवाशीष ने ही लिखा और डायरेक्ट किया है. मनोज ने इसमें गणपत भोंसले नाम के एक रिटायर्ड मुंबई पुलिस ऑफिसर का किरदार निभाया. इस किरदार के लिए उन्हें बेस्ट एक्टर का नेशनल अवॉर्ड मिला था. इसने दुनिया भर के फिल्म फेस्टिवल्स में भी खूब चर्चा बटोरी थी. मनोज के अलावा संतोष जुवेकर, इप्शिता चक्रवर्ती, विराट वैभव और राजेन्द्र सिसदकर ने भी इसमें काम किया था. देवाशीष ने इस फिल्म की कहानी को 2011 में लिखना शुरू किया था. 2015 में उन्होंने इसे पूरा किया. मगर इसके बाद अगले दो साल तक उन्हें पैसों के लिए जूझना पड़ा. मनोज के मुताबिक, पैसों की ये तंगी फिल्म बनने तक चल रही थी. मगर किसी तरह जोड़-तोड़कर उन्होंने इस फिल्म को पूरा किया. 

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