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फिल्म रिव्यू- लाल सिंह चड्ढा

'लाल सिंह चड्ढा' एक मस्ट वॉच फिल्म है, क्योंकि ये आपके भीतर के दर्शक से नहीं, इंसान से बात करती है.

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फिल्म के एक सीन में आमिर खान.

मैं पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया पर बॉयकॉट वाला ट्रेंड देख रहा हूं. मैं सिर्फ सिनेमा के लिहाज़ से बात कर रहा हूं. 'लाल सिंह चड्ढा' का बहिष्कार करने की मांग लंबे समय से चल रही है. मगर मैं 'लाल सिंह चड्ढा' को देखने के बाद कह रहा हूं कि हर व्यक्ति को ये फिल्म देखनी चाहिए. इसलिए नहीं कि ये फिल्म आपको देशभक्ति पर लेक्चर देती है. 'लाल सिंह चड्ढा' आपको इसलिए देखनी चाहिए क्योंकि ये एक अच्छी फिल्म है. 

अच्छी फिल्म क्या होती है? जिसे देखकर आपको ऐसा न लगे कि ये एकतरफा बात कर रही है. कहानी के सिर्फ एक पहलू को डिस्कवर कर रही है. अच्छी फिल्म वो होती है, जो अपनी कहानी के प्रति ईमानदार होती है.

अगर आपने टॉम हैंक्स स्टारर 'फॉरेस्ट गंप' देखी है, तो आपको पता होगा कि ये एक आदमी और एक देश की कहानी है. जो साथ-साथ चलती है. न चाहते हुए भी 'लाल सिंह चड्ढा' की तुलना 'फॉरेस्ट गंप' से होगी. फॉर ऑब्वियस रीजंस. मगर 'लाल सिंह चड्ढा' अपने आप में मुकम्मल फिल्म है. 'लाल सिंह चड्डा' पठानकोट में रहने वाले लाल नाम के एक लड़के की कहानी है. उसके पैर में कुछ समस्या है. उसके साथ समय गुज़ारने वालों को लगता है कि वो मंदबुद्धि है. लाल की मां बड़ी मशक्कत के बाद अपने बेटे का नाम एक नॉर्मल स्कूल में लिखवाती है. नॉर्मल स्कूल वो होता है, जहां कथित स्वस्थ मानसिक अवस्था वाले बच्चे पढ़ते हैं. जो बच्चे ‘अलग’ हैं, उनके लिए अलग स्कूल हैं. मगर लाल की मां को लगता है कि उसका बच्चा दूसरे बच्चों जैसा ही है. नॉर्मल. स्कूल में दाखिला पाने के बाद लाल की मुलाकात रूपा नाम की लड़की से होती है. रूपा, हरसंभव तरीके से लाल की ज़िंदगी बदल देती है. ऐसा लाल को लगता है. ज़िंदगी का बदलना क्या होता है, वो आपको अपनी ज़िंदगी के बदलने के बाद पता लगेगा.

'लाल सिंह चड्ढा' एकदम सिंपल फिल्म है. उसमें कोई ऐसी चीज़ नहीं है, जो अलग से जोड़ी गई लगती है. लाल सिंह चड्ढा एक असाधारण इंसान है. उसके दिमाग में कोई केमिकल लोचा है. हर इंसान के दिमाग में होता है. तभी तो सब लोग एक-दूसरे से अलग हैं. मगर ये फिल्म उस इंसान को साधारण तरीके से डील करती है. यही चीज़ इस फिल्म को खास बनाती है. साधारण और असाधारण, धारणाएं हैं. लोग बस होते हैं. आपको बस उस इंसान की कहानी को उसके नज़रिए से देखना है. हर नज़रिया सिनेमा है. ऐसे ही एक नज़रिए का नाम है 'लाल सिंह चड्ढा'.

'ओड टु माय फादर' भी ऐसी ही एक फिल्म है. कोरियन भाषा की इस फिल्म पर सलमान खान ने 'भारत' नाम की फिल्म बनाई. मगर उस फिल्म में एक दिक्कत थी. उसके हीरो सलमान खान थे. सलमान खान किसी भी फिल्म में पहले सलमान खान होते हैं. किरदार वगैरह सेकंडरी चीज़ें हैं. आमिर खान ने इस चीज़ पर फतह हासिल कर ली है. उनके लिए फिल्म का दर्जा अव्वल है. 'लाल सिंह चड्ढा' आज़ादी के बाद भारत में घटी हर ज़रूरी घटना को अपने कैनवस पर जगह देती है. मगर वो जज नहीं बनती. वो सिर्फ घटना दिखाती है और आगे बढ़ जाती है. सही गलत के चक्कर में नहीं पड़ती. दर्शक उस चीज़ को कैसे देखना चाहता है, वो उसकी मर्जी है. इस फिल्म में इमर्जेंसी हटने से लेकर इंदिरा गांधी की हत्या, सोमनाथ रथ यात्रा से लेकर 26/11 आतंकी हमले और अन्ना आंदोलन तक का ज़िक्र आता है. मगर वो एक आदमी के जीवनकाल में होने वाली घटना भर है. वो उसका जीवन नहीं है.

अपना जीवन बदलने से ऐन पहले लाला. ये पहला मौका है, जब लाल की मुलाकात रूपा से होती है.

'लाल सिंह चड्ढा' एक भोले-भाले आदमी की कहानी है, तो चतुर दुनिया में रहता है. लाल हर चीज़ को हैरत भरी निगाहों से देखता है. इसलिए फिल्म के अधिकतर हिस्सों में उसकी आँखें चौड़ी रहती हैं. आमिर खान अपने इंटरव्यूज़ में बताते हैं कि वो जब भी कोई ऐसा किरदार निभाते हैं, जो मासूम है, तो वो वैसे ही बर्ताव करते हैं. उनकी आंखों के औसत से ज़्यादा खुले रहने के पीछे की वजह यही है. 'पीके' नाम का एलियन धरती पर आता है. उसके लिए हर चीज़ नई है. इसलिए सबकुछ फटी आंखों से देखता है. लाल सिंह चड्ढा भी वैसा ही किरदार है. वो जिस दुनिया में रहता है, उसके बारे मे उसे ज़्यादा कुछ पता नहीं है. वो अपने सामने होती चीज़ें देखता है, तो हतप्रभ रह जाता है. इसलिए उसकी आंखों में शॉक और सरप्राइज़ का मिलाजुला भाव देखने को मिलता है. जब आप ये फिल्म देखेंगे, तो मामला बेहतर समझ पाएंगे. ''आमिर हर फिल्म में एक ही जैसी एक्टिंग करते हैं'' जैसी बातें नहीं कहेंगे.

मोना सिंह ने फिल्म में लाल सिंह चड्ढा की मां का किरदार निभाया है, जो फिल्म की सबसे मजबूत इमोशनल कोर है.

आमिर खान वो आदमी हैं, जिन्हें पता है कि उनकी पिछली फिल्म लोगों को पसंद क्यों नहीं आई. जो आदमी इतना अवेयर होकर काम करेगा, वो हर मुश्किल का काट ढूंढ लेगा. जिसे अपनी गलती पता है, आप उसे अपराधबोध नहीं करा सकते. आमिर की परफॉरमेंस ऐसी है, जिसे लंबे समय तक याद रखा जाएगा. इसलिए नहीं कि वो बहुत कमाल की परफॉरमेंस है. इसलिए कि वो बड़े सिंसियर और सिंपल तरीके से किया हुआ काम है. मुझे हमेशा से लगता रहा है कि करीना कपूर अपने दौर की सबसे कमाल एक्टर हैं. मगर मेरे पास ऐसा कोई सबूत नहीं था, जो मैं लोगों के सामने पेश कर पाऊं. 'लाल सिंह चड्ढा' ने मेरी उसी मुसीबत का हल दे दिया. उन्होंने फिल्म में रूपा का रोल किया है. नागा चैतन्य ने बाला नाम के एक आर्मी मैन का रोल किया है, जिससे लाल की पक्की दोस्ती हो जाती है. चैतन्य का काम बढ़िया है, जब तक आप मेन-मीख निकालने न बैठे हों. मोना सिंह ने फिल्म में लाल की मां गुरप्रीत का रोल किया है. जिनसे आपको किसी किस्म की शिकायत नहीं होती. वो फिल्म के इमोशनल कोर को मजबूत करती हैं. मानव विज छोटे मगर ज़रूरी किरदार में फिल्म का एक बड़ा विमर्ष सामने लेकर आते हैं.

रूपा हर नियमित अंतराल पर लाल के जीवन में आती है और हर बार वो पिछली बार से थोड़ा ज़्यादा उसके प्रेम में पड़ जाती है. मगर वो कभी ये ज़ाहिर नहीं कर पाती.   

'लाल सिंह चड्ढा' को अलग रीमेक से इतर स्टैंड अलोन फिल्म की तरह देखा जाना चाहिए. क्योंकि इसके पास कहने के लिए 'फॉरेस्ट गंप' से ज़्यादा कुछ है. इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि 'फॉरेस्ट गंप', आमिर खान की फिल्म से कमतर है. 'लाल सिंह चड्ढा' के सामने हमेशा ये चुनौती थी कि वो 'फॉरेस्ट गंप' के आसपास पहुंच पाए. ये फिल्म उस चुनौती से कहीं आगे जाती है. यही इसका हासिल है. 'लाल सिंह चड्ढा' एक मस्ट वॉच फिल्म है, क्योंकि ये आपके भीतर के दर्शक से नहीं, इंसान से बात करती है.

वीडियो देखें- मूवी रिव्यू: लाल सिंह चड्ढा