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मूवी रिव्यू: कार्तिकेय 2

‘कार्तिकेय 2’ भारत में पांव जमाकर वहीं की कहानी दिखाना चाहती थी. कुछ हद तक सफल होती भी है और नहीं भी.

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‘कार्तिकेय 2’ को देखने के लिए पहला पार्ट देखने की ज़रूरत नहीं.

‘लाल सिंह चड्ढा’ और ‘रक्षा बंधन’. 2022 की दो बड़ी हिंदी फिल्में. दोनों पिछले हफ्ते रिलीज़ हुईं और नहीं चली. लेकिन इन दो बड़ी हिंदी फिल्मों के साथ एक तेलुगु फिल्म भी रिलीज़ हुई. जिसका नाम है ‘कार्तिकेय 2’. 2014 में आई ‘कार्तिकेय’ की ये सीक्वल फिल्म हिंदी बेल्ट में मज़बूती से टिकी हुई है. और सिर्फ टिकी नहीं, बल्कि अच्छी कमाई भी करती जा रही है. ‘कार्तिकेय 2’ किस बारे में है, इसमें क्या अच्छा है और क्या बुरा, आज के रिव्यू में यही बताएंगे.

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आगे बढ़ने से पहले ये बता दें कि ‘कार्तिकेय 2’ पहले पार्ट की कहानी को आगे नहीं बढ़ाती. कार्तिक में चीज़ों को जानने की, समझने की जिज्ञासा बनी रहती है. इस पार्ट की शुरुआत में वो एक डॉक्टर बन चुका है. उसकी अपनी नॉर्मल लाइफ चल रही है. दूसरी ओर कुछ लोग हैं, जो एक खास कड़े को ढूंढ रहे हैं. बताया जाता है कि ये कोई आम कड़ा नहीं. इसकी मदद से पैंडेमिक को खत्म किया जा सकता है. ये कड़ा भगवान श्रीकृष्ण का है. कार्तिक इन सभी बातों से अनजान है. लेकिन एक दिन अपनी मां की वजह से उसे द्वारका आना पड़ता है. यहीं से उसके साथ अज़ीब घटनाएं होना शुरू हो जाती हैं. हर कोई उसके पीछे पड़ जाता है. कार्तिक का इन घटनाओं से क्या कनेक्शन है, ऑडियंस और वो खुद आगे यही समझने की कोशिश करते हैं.

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अपनी मां की वजह से कार्तिक को द्वारका जाना पड़ता है.

फिल्म अपनी फिलॉसफी को दो पक्षों में बांटकर दिखाना चाहती है. पहला है हिस्ट्री और दूसरा मायथोलॉजी. एक पक्ष है जो श्रीकृष्ण और उनकी कहानी को भारत के इतिहास में गिनता है. तो दूसरा है जो उसे सिर्फ मायथोलॉजी मानता है. कार्तिक इस दूसरे पक्ष को रीप्रिज़ेंट करता है. चमत्कार से ज़्यादा विज्ञान को मानता है. हर चीज़ में लॉजिक तलाशता है. हॉस्पिटल के बगल में हो रहे भजन-कीर्तन को रोकता है. कहता है कि पेशेंट्स को इससे परेशानी होगी. रसूखदार आदमी को आईसीयू में हवन करते देख लेता है, तो उसे भी डांट लगाता है. फिल्म दो अलग विचारधाराओं को अलग लेकर चलती है. ये कन्फ्लिक्ट चीज़ों को इंट्रेस्टिंग बनाकर रखता है. वरना ऐसा लगता है कि एक विचारधारा पर लेक्चर दिया जा रहा है.

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बस यहीं पर आकर फिल्म गड़बड़ा जाती है. वो इस कन्फ्लिक्ट को झट से ध्वस्त कर देती है. कार्तिक ने साइंस का हवाला देकर कुछ कहा. फिर सामने से उसके विपरीत जवाब आया, और इतने में कार्तिक मान गया. सामने वाला कुछ करने की जगह बस कह देता है, और हमारा हीरो मान लेता है. ऐसा फिल्म में एक-दो जगह नहीं, बल्कि कई मौकों पर होता है. लगता है कि फिल्म ये ओपीनियन बेच रही है. थोप भले ही नहीं रही हो. बस प्यार से बेचने की कोशिश कर रही हो.

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सीमित बजट में फिल्म ने सही एनिमेशन यूज़ किया है. 

कहानी को ज़मीनी रखने के लिए श्रीकृष्ण का ऐंगल रखा गया. ताकि इंडियन ऑडियंस से कनेक्ट ढूंढ पाएं. इन सब से परे ‘कार्तिकेय 2’ है एक एडवेंचर थ्रिलर फिल्म ही. ऐसी फिल्मों में कुछ एलिमेंट होते हैं. जैसे सीक्रेट भाषा में लिखी बातें, कोई सीक्रेट कोड और सीक्रेट सोसाइटी. ये वो लोग हैं जो अंधेरे में रहकर अपना काम करते हैं. यहां ऐसे सभी एलिमेंट्स को जगह मिलती है. बस वो उन्हें ठीक से कनेक्ट नहीं कर पाती. इस वजह से कार्तिक का पूरा एडवेंचर और कड़े तक पहुंचने की जद्दोज़हद सतही लगती है. ‘कार्तिकेय 2’ एक सीमित बजट पर बनी फिल्म है. उस लिहाज़ से यहां एनिमेशन और वीएफएक्स जैसे फैक्टर्स को तरीके से इस्तेमाल किया है. ग्रैंड विज़ुअल्स को ऐसे यूज़ किया कि वो खलते नहीं, बल्कि फिल्म के प्लस पॉइंट में जुडने का ही काम करते हैं.  

‘बाहुबली 2’ के गानों को अपनी आवाज़ देने वाले काल भैरव ने ‘कार्तिकेय 2’ के लिए म्यूज़िक दिया है. उनका म्यूज़िक सीन के मीटर को उठाने या अपलिफ्ट करने का काम करता है. निखिल सिद्धार्थ फिर से कार्तिक के रोल में लौटे हैं. उनका काम यहां ‘ग्रेटेस्ट परफॉरमेंस ऑफ ईयर’ में गिने जाने वाला नहीं. लेकिन किरदार की ज़रूरत के हिसाब से वो उस पर कंट्रोल रखते हैं. मामला ओवर नहीं जाने देते. फिल्म में श्रीनिवास रेड्डी ने उनके मामा का किरदार निभाया है. आपने उन्हें बहुत सारी तेलुगु फिल्मों में देखा होगा. जहां वो कॉमेडिक रिलीफ देने का काम करते. यहां भी वो यही करते दिखते हैं, और बखूबी ढंग से. उनके वन लाइनर्स आपको एंटरटेन करते र'हेंगे.

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‘कार्तिकेय 2’ के एक सीन में निखिल सिद्धार्थ. 

इनके अलावा फिल्म में एक इम्पॉर्टेंट कैमियो भी था. अनुपम खेर ने एक डॉक्टर और रिसर्चर का रोल किया. मेजर तौर पर वो सिर्फ एक सीन के लिए थे. लेकिन उस सीन में आपका ध्यान उनके अलावा किसी और एक्टर पर नहीं जाता. ‘कार्तिकेय 2’ लगभग अपने सभी टेक्निकल डिपार्टमेंट्स पर दुरुस्त दिखती है. सिवाय अपनी राइटिंग के. बस वहां चीजें ठीक से कनेक्ट नहीं होती, और आपका इंट्रेस्ट हवा होने लगता है. ‘कार्तिकेय 2’ भारत में पांव जमाकर वहीं की कहानी दिखाना चाहती थी. फिल्म के इरादे नेक लगते हैं. लेकिन काश सिर्फ इरादों से ही सब कुछ संभव हो पाता.

वीडियो: फ़िल्म रिव्यू - लाल सिंह चड्ढा

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