वैसे तो जय वीरू, धरम-वीर जैसे बहुत से फ़िल्मी पर्दे के दोस्तों की दास्तान तब तक लोगों ने खूब देखी थीं. लेकिन 'दिल चाहता है' के सिड, आकाश और समीर इन सबसे एकदम अलग थे. वे कहीं से फ़िल्मी नहीं लगते थे. हां वो थोड़े विदेशी और काफ़ी 'पॉश' लगते थे. लेकिन फ़िल्मी नहीं. 'दिल चाहता है' उस वक़्त के यूथ के बीच ज़बरदस्त पॉपुलर हुई. इस फ़िल्म के बाद से आज तक हर साल देश भर से ना जाने कितनी यारों की टोलियां गोवा जाती हैं, अपना 'दिल चाहता है' मोमेंट एक्स्प्लोर करने.
10 अगस्त 2021 को 'दिल चाहता है' के 20 साल पूरे होंगे. आज भी आपको आमिर की वो एक बार में मछली गप्प करने वाली टेक्नीक और समीर का 'हां मैं, मगर वो, सुनो तो' वाले अनेकों सीन याद होंगे. तो आज इन यादों को एक बार और रिफ्रेश करते हैं और आपको फ़िल्म से जुड़े कुछ मज़ेदार सुने-अनसुने-कमसुने किस्से बताते हैं. #हम तीन 90 के दशक के आखिरी सालों की बात है. फ़रहान अख्तर ने अपना कॉलेज बीच में ही छोड़ दिया था. अब दिन भर घर में बैठे-बैठे अपने कज़िन साजिद खान के साथ फ़िल्में देखते रहते थे. कई फ़िल्में तो 30-30 बार देख डाली थीं. रोज़ फ़रहान को बिना कोई काम धंधे के सिर्फ फ़िल्मखोरी करता देख फ़रहान की मां ने तंग आकर अल्टीमेटम दे दिया. कि जल्द से जल्द वो कोई काम धंधा तलाश लें वरना उन्हें वो घर से निकाल देंगी. मम्मी की वार्निंग के बाद फ़रहान टेंशन में आ गए. सोचा अब तो कुछ करना ही पड़ेगा. दिमाग में स्क्रिप्ट लिखने का ख्याल आया. स्क्रिप्ट लिखी और अपने मम्मी, पापा को लाकर दिखाई. दोनों को स्क्रिप्ट का बेसिक आईडिया पसंद आया. उन्होंने कहा स्क्रिप्ट में कुछ बदलाव होने हैं. बाकी ठीक है. लेकिन जब फ़रहान ने विचार किया तो पाया कि उनकी स्क्रिप्ट की कहानी आज तक बनी हज़ारों लवस्टोरी जैसी ही थी. कुछ अलग नहीं था. फ़रहान स्टोरी में अब नए किरदार जोड़ने लगे.
फ़रहान जब भी रोमांटिक फ़िल्में देखते थे, तो सोचा करते थे कि फ़िल्म में जो हीरो के दोस्त दिखाए जाते हैं वो इंटरवल आने तक कहां गायब हो जाते हैं. इसी सोच को पानी देते हुए फ़रहान अब इस लव स्टोरी में अपने दोस्तों यारों के किस्से मिलाने लगे. कुछ साल पहले वो अपने दोस्तों के साथ गोवा और न्यूयॉर्क होकर आए थे. तब फ़रहान के साथ उनकी डायरी हमेशा रहती थी. जिस पर वो अपना सफ़रनामा लिखते चलते थे.
फ़रहान ने अपनी इस डायरी के किस्से और कांडों को स्क्रिप्ट में तब्दील करना शुरू कर दिया. स्क्रिप्ट में आकाश-शालिनी की लवस्टोरी वाले पार्ट को बेहतर डेप्थ देने में फ़रहान के दोस्त कासिम जगमगिया ने उनकी मदद की. स्क्रिप्ट कम्प्लीट हुई. फ़रहान ने इस कहानी का नाम रखा 'हम तीन'. चूंकि फ़रहान इंग्लिश में सोचते हैं इसलिए फ़रहान ने स्क्रिप्ट इंग्लिश में लिखी थी. जिस वजह से उन्हें और दो महीने लगे स्क्रिप्ट को हिंदी में ट्रांसलेट करने में. कहानी के तीनों मुख्य किरदारों में ज्यादातर फ़रहान के ही अंश थे. फ़रहान बताते हैं वो अपने कॉलेज के दौरान समीर जैसे थे और उसी तरह बार-बार प्यार में पड़ते रहते थे. 'दिल चाहता है' लिखने का पहला अंकुर फ़रहान के दिमाग में शेक्सपियर का प्ले 'मच अडू नथिंग' पढ़ने के बाद फूटा था.

'दिल चाहता है' फ़रहान अख्तर की बतौर डायरेक्टर पहली फ़िल्म थी.
#वो एक्टर्स हैं कहां? फ़रहान जब 'हम तीन' यानी के 'दिल चाहता है' की स्क्रिप्ट लिख रहे थे तब उनके दिमाग में तीन दोस्तों के रोल्स के लिए अक्षय खन्ना, हृतिक रोशन और अभिषेक बच्चन थे. लेकिन जब स्क्रिप्ट लेकर फ़रहान इन तीनों के पास गए तो हृतिक और अभिषेक ने डेट्स उपलब्ध ना होने की वजह से उन्हें मना कर दिया. अक्षय खन्ना को फ़रहान ने आकाश का रोल ऑफर किया. अक्षय को स्क्रिप्ट पसंद आई और वो मान गए. अब फ़रहान सिड के रोल के लिए पहुंचे आमिर खान को स्क्रिप्ट सुनाने.
लेकिन आमिर ने 6 महीने तक कोई डेट्स ना होने का हवाला दिया और टरका दिया. इससे पहले आमिर फ़रहान से कभी नहीं मिले थे लेकिन बातचीत के दौरान उन्हें अहसास हो गया था कि फ़रहान जावेद अख्तर के बेटे हैं. आमिर को लग रहा था कि फ़रहान अब घर जाकर जावेद साब से सिफ़ारिश का फ़ोन लगवाएंगे. लेकिन जब एक हफ्ते तक भी आमिर के पास जावेद साब का फ़ोन नहीं आया तो आमिर समझ गए कि फ़रहान ने अब तक ये बात जावेद साब को बताई नहीं है. फ़रहान का ये इंडिपेंडेंट जेश्चर आमिर को पसंद आया और उन्होंने फ़रहान को फ़ोन कर स्क्रिप्ट सुनाने के लिए बुलाया.
फ़रहान आमिर के यहां पहुंचे और स्क्रिप्ट सुना दी. आमिर को स्क्रिप्ट बहुत पसंद आई. लेकिन वो सिड का सीरियस रोल नहीं करना चाहते थे. आमिर ने कहा ऐसे किरदार वो 'सरफरोश','लगान' जैसी फिल्मों में कर चुके हैं, वो आकाश का रोल करना चाहते हैं. अब फ़रहान आकाश के रोल के लिए तो पहले ही अक्षय को बुक कर चुके थे. मगर आमिर ने भी साफ़ कर दिया कि वो फ़िल्म में आकाश का ही रोल करेंगे. अब आमिर नहीं माने तो फ़रहान अक्षय खन्ना को मनाने चल दिए. फ़रहान ने जब आमिर की शर्त अक्षय को बताई तो उन्होंने कहा उन्हें तो सिर्फ इस फ़िल्म का हिस्सा बनना है, फ़िर चाहे उन्हें कोई सा भी रोल मिले. फ़रहान को अब थोड़ा सुकून आया. अब बस समीर के किरदार की कास्टिंग बाकी थी. इस रोल के लिए फ़िल्म की कास्टिंग डायरेक्टर और फ़रहान की बहन ज़ोया अख्तर ने सैफ़ अली खान का नाम सजेस्ट किया. सैफ़ ने पहले तो साफ़ मना कर दिया लेकिन बाद में डिंपल कपाड़िया के कहने पर रोल एक्सेप्ट कर लिया. और ऐसे बने आमिर सुप्रीमली एक्स्ट्रोवर्ट आकाश, अक्षय इंट्रोवर्ट सिद्धार्थ और सैफ़ इन दोनों का ही मिक्स्चर एम्बीवर्ट समीर.

सिड, आकाश और समीर की यादगार तिकड़ी.
#जब पांच मिनट तक हंसता रहा फ़िल्म का कास्ट एंड क्रू फ़िल्म का वो सीन शूट हो रहा था जब सैफ़ अली खान यानी समीर को गोवा में क्रिस्टीन (जो स्विट्ज़रलैंड की भी नहीं थी) ठग लेती है और समीर वापस घर पे आकर तकिये पर बैठा होता है. आपको ताज्जुब होगा कि इस पांच मिनट के सीन को शूट करने में असल में घंटों लग गए थे. हुआ ये था कि इस सीन के दौरान जो शख्स 'क्लैप' देने आते थे, वो अलग एक्सेंट होने के कारण 'क्लैप' को क्लॉप बोल देते थे. ये सुनकर सैफ़ का कंसंट्रेशन भंग हो जाता और वो ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगते. कई बार तो इतना ज़ोर से हंसे कि आंसू निकल आए. उनको हंसता देख आमिर और अक्षय को भी हंसी आ जाती थी. बार-बार सीन कट कर परेशान होकर फ़रहान ने क्लैप वाले शख्स से कहा कि वो क्लैप की जगह 'स्लेट' बोलें. एक बार फ़िर सीन की तैयारी हुई. वो भाईसाब आए और इस बार बोले 'स्लैट'. अब तो क्या सैफ़, क्या आमिर और क्या फ़रहान. पूरा सेट ही हंसते-हंसते लोटपोट हुआ जा रहा था. #ब्रश करते हुए बना टाइटल सांग जितनी बड़ी हिट ये पिक्चर थी उससे ज्यादा बड़ा हिट इस फ़िल्म का म्यूजिक था. फ़िल्म को रिलीज़ हुए 20 साल हो गए हैं लेकिन आज भी अल्बम का एक-एक गाना एकदम फ्रेश साउंड करता है. इस रिफ्रेशिंग अल्बम का श्रेय जाता है शंकर-अहसान-लॉय की तिकड़ी को. सोनू निगम, उदित नारायण, शान जैसे कमाल गायकों को. और जावेद अख्तर साब के अदभुत बोलों को. वैसे पहले तो फ़रहान 'दिल चाहता है' के लिए ए.आर रहमान के पास गए थे. लेकिन रहमान उस वक्त बिज़ी थे. फ़रहान ने शंकर महादेवन के फ़ेमस 'ब्रेथलेस' गाने के वीडियो को को-डायरेक्ट किया था. उनके काम से वो वाकिफ़ थे. उन्हीं के पास पहुंच गए. अब इस यूथ ओरिएंटेड फ़िल्म के म्यूजिक की ज़िम्मेदारी थी शंकर-अहसान-लॉय पर. जिसकी तैयारी के लिए शंकर,अहसान,लॉय, गीतकार जावेद साब और डायरेक्टर फ़रहान अख्तर फ़िल्म के प्रड्यूसर रितेश सिधवानी के साथ उनके खंडाला के बंगले पर चले गए. और लगभग चार दिनों में सब ने मिलकर फ़िल्म के सारे गाने तैयार कर लिए.
टाइटल ट्रैक 'दिल चाहता है वैसे तो अल्बम का पहला गाना है. लेकिन ये गाना सबसे अंत में फाइनल हुआ था. इस गाने की पहले शुरुआत 'कभी ना बीतें चमकीले दिन' से हो रही थी. 'दिल चाहता है' पार्ट की जगह सिर्फ धुन थी. इसलिए गाने का नाम था 'कभी ना बीते चमकीले दिन'. ये लाइन फ़रहान को बिलकुल नहीं जम रही थी. उनके मुताबिक़ ये लाइन डिटर्जेंट पाउडर की एड के जिंगल जैसी सुनाई पड़ रही थी. जावेद साब ने जब कई बार समझाया तब जाकर फ़रहान राज़ी तो हो गए. लेकिन अभी भी वो संतुष्ट नहीं थे. इस रात के अगले दिन शंकर महादेवन ब्रश करते हुए 'चमकीले दिन' के गीत की धुन ही गुनगुना रहे थे. तभी अचानक उन्हें आईडिया आया कि अरे इस धुन पर तो 'दिल चाहता है' बहुत अच्छे से फिट हो रहा है. तुरंत ब्रश दबाए ही दौड़ लगा दी. फ़रहान के कमरे में पहुंचे और बोले कि मिल गया आपका टाइटल ट्रैक. फ़रहान को आईडिया जमा और आज का ट्रेवलिंग एंथम तैयार हुआ. शंकर बताते हैं बाथरूम में उनको ये आईडिया आया था तो बाद में उन्होंने फ़िल्म के बाकी गानों की धुन भी बाथरूम में ही बनाई थी.
#कल्चरल इम्पैक्ट 'दिल चाहता है' नए मिलेनियम की सबसे ज्यादा इन्फ्लुएंस करने वाली फ़िल्म रही. सबसे पहले इन्फ्लुएंस हुए फ़िल्म मेकर्स. 'दिल चाहता है' से पहले फ़िल्मों का एक भारतीय ढर्रा होता था. मतलब पहली नज़र में पता चल जाता था कि हिंदी फ़िल्म है. फ़रहान ने 'लम्हे' और 'हिमालयपुत्र' जैसी हिंदी फिल्मों में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम किया था. लेकिन यूरोपियन फ़िल्मों का इन्फ्लुएंस उन पर साफ़ था. जिस वजह से 'दिल चाहता है' का ट्रीटमेंट बिलकुल वैसा ही रहा, जैसा किसी हॉलीवुड फ़िल्म का रहता है. जो कि उस वक़्त इंडियन ऑडियंस के लिए बेहद फ्रेश था. लिहाज़ा इसके बाद ज्यादातर फ़िल्में इसी पैटर्न पर बनने लगीं. जब तक अनुराग कश्यप ने आकर 'देसी' को 'कूल' नहीं बनाया."ज्यादातर हिंदी फ़िल्मों में चीज़ों को बहुत ज्यादा नाटकीय बना दिया जाता है. बड़े-बड़े डायलॉग होते हैं. मैं ये सब नहीं चाहता था इसलिए फ़िल्म के डायलॉग मैंने लिखे. मैं चाहता तो पापा से डायलॉग लिखवा सकता था. लेकिन मैं नहीं चाहता था कि मेरे किरदार एकदम शुद्ध हिंदी बोलें. इसलिए मैंने डायलॉग उस हिंदी में लिखे जिस हिंदी को मैं जानता हूं, जिसमें बहुत सारी इंग्लिश होती है."
फ़िल्ममेकर्स पर इस फ़िल्म के पैटर्न का प्रभाव पड़ा तो जनता और ख़ासतौर से यूथ के बीच आमिर खान की 'गोटी' बहुत हिट हुई. ज्यादातर लड़के ठुड्डी के ऊपर उन्हीं की तरह प्ले बटन बनवाए घूम रहे थे. 'अंदाज़ क्यों हो पुराना' गाने में आमिर लैदर पैंट के ऊपर एक बड़े से बकल वाली बेल्ट पहने थे. उस वक़्त बड़ी-बड़ी बक्कल वाली बेल्ट्स का ट्रेंड भी यहीं से शुरू हुआ था. 'दिल चाहता है' का इम्पैक्ट गोवा टूरिज्म पर भी खूब पड़ा. इतना कि आज भी गोवा के चपोड़ा फोर्ट को ज्यादातर लोग 'दिल चाहता है वाला फोर्ट के नाम से बुलाते हैं.

'दिल चाहता है' का सबसे लोकप्रिय सीन.
#उदय चोपड़ा और फ़रहान अख्तर की लड़ाई से प्रेरित थी दिल चाहता है? आदित्य चोपड़ा की सुपरहिट फ़िल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' की स्क्रिप्ट असल में फरहान अख्तर की मम्मी हनी इरानी ने लिखी थी. लेकिन उन्हें फ़िल्म कोई क्रेडिट नहीं दिया गया था. आदित्य चोपड़ा को हनी अपना दोस्त मानती थीं. फ़िल्म में उन्हें क्रेडिट ना देने की बात ने उन्हें बड़ा हर्ट किया. इस इंसिडेंट के बाद फ़रहान ने आदित्य चोपड़ा और यहां तक की अपने बचपन के दोस्त उदय चोपड़ा से भी बातचीत बंद कर दी थी. 'दिल चाहता है' देखने के बाद कई लोगों ने कहा कि फ़िल्म में जो आकाश और सिद्धार्थ के बीच लड़ाई दिखाई गई है वो असल में उदय-फ़रहान के झगड़े से इंस्पायर्ड थी. लेकिन फ़रहान ने ऐसी किसी भी अफवाह को सिरे से नकार दिया था. फ़रहान ने कहा था कि हां एक वक़्त मेरी उदय से बातचीत बंद थी. लेकिन आजकल वो लोग अच्छे टर्म्स में हैं. #एक और बात इतने किस्सों के साथ एक ट्रिविया भी आपको दिए ही देते हैं. फ़िल्म में तारा की डेथ के बाद सिड अंत में एक लड़की से मिलता है जिसकी शक्ल एक हद तक तारा यानी डिंपल कपाड़िया से मिलती है. अब ये कोई इत्तेफाक नहीं था. एक लंबी खोज के बाद डिंपल की लुक अलाइक लड़की मिली थी. ये लड़की फ़िल्म की कॉस्टयूम डिज़ाइनर की दोस्त थी. जो असल में इंडियन नहीं, इटालियन थी.