इस कहानी में कई सारे प्लेयर्स हैं जिनकी कहानी किसी पॉइंट पर आकर एक-दूसरे से मिलती है. शो का मेन प्लॉट फोकस करता है फार्मा कंपनियों के ड्रग ट्रायल्स पर, कि कैसे कुछ कंपनीज अपने फायदे के लिए इंसानी जान को कुछ नहीं समझतीं. वायु फार्मा एक ड्रग ट्रायल पास करवाने में जुटा है. उनका मानना है कि इस नए ड्रग से हार्ट पेशेंट्स को मदद मिलेगी. लेकिन जिनपर ये टेस्ट किया, उनमें से कई बुरी तरह बीमार होने लगे, वहीं कुछ की मौत तक हो गई. फार्मा कंपनी इस जानकारी को दुनिया से दूर रखना चाहती है. अगली प्लेयर है डॉक्टर सायरा सभरवाल, जिसका रोल निभाया है कीर्ति कुल्हरी ने. सायरा ने मंथन हॉस्पिटल जॉइन किया है. अपने घरवालों से नहीं बनती, इसलिए उनसे अलग रहती है. करियर वाइज़ सक्सेसफुल है, लेकिन अब तक अपनी सेक्शुअल प्रेफ्रेंस को ओन अप नहीं कर पा रही.

ड्रग ट्रायल्स में किसी भी तरह अपना ड्रग पास करवाना है.
सायरा को हायर किया है मंथन हॉस्पिटल की हेड डॉक्टर गौरी नाथ ने, जिसके रोल में हैं शेफाली शाह. पहली नज़र में गौरी ऐसी डॉक्टर लगती है जिसे दूसरों का दुख देखकर दुख होता, आदर्शवादी किस्म की. लेकिन इस ग्रे वर्ल्ड में कोई व्हाइट नहीं. गौरी को जैसे-जैसे आप जानने लगते हैं वैसे-वैसे उससे खौफ खाने लगते हैं, उसकी बातें कम धमकी ज्यादा लगती हैं. गौरी का भी एक डार्क पास्ट है, जिसकी जड़ें रोमा नाम की अजीब शख्स से जुड़ी हैं.
सायरा के रोल में कीर्ति डिलिवर कर देती हैं, ओवर द टॉप नहीं लगतीं. कास्ट में सबसे ज्यादा शाइन करती हैं शेफाली शाह. इस सीरीज के बाद उन्हें वेल रिटन नेगेटिव कैरेक्टर्स में देखने की इच्छा होती है. वो जिस भी सीन में होती हैं, अपनी स्ट्रॉन्ग स्क्रीन प्रेज़ेंस महसूस करवा देती हैं. वो बस शो की कमजोर राइटिंग ही है जो उनके साथ इंसाफ नहीं कर पाती. ऐसा ही केस विशाल जेठवा के साथ भी है. विशाल ने मंगू नाम के लड़के का रोल निभाया, जो स्लम एरिया में रहता है. अपना कर्ज उतारने के चक्कर में मंगू अपने मां-बाप पर ड्रग ट्रायल करवा लेता है. जिसके बाद मां की बिगड़ती तबीयत की गिल्ट उसे खाने लगती है. इस पॉइंट पर आकर कुछ सीन्स हैं जहां आप विशाल को उनके एलिमेंट में देखते रहना चाहते हो. फिर चाहे वो बेबस होकर रोना हो, या अपनी छोटी बहन के पैरों में गिरकर माफी मांगना.

शेफाली शाह की एक्टिंग शो का सबसे स्ट्रॉन्ग फैक्टर है.
शो अपनी ऑडियंस को एक मेडिकल थ्रिलर डिलिवर करने की कोशिश करता है. मेडिकल टर्मिनोलॉजी को लेकर यहां रिसर्च हुई, ड्रग्स के नाम पर हवाबाज़ी नहीं दिखती. सही नोट पर शुरू होता है, लेकिन अपने सब-प्लॉट्स के चक्कर में उलझता जाता है, जिसके बाद भूल जाता है कि कहना क्या चाहता था. बाकी शो की राइटिंग से एक और मेजर शिकायत है. यहां किरदारों के बीच के डायलॉग नैचुरल नहीं लगते, बल्कि ऐसा लगता है कि वो बस अपनी कहानी नैरेट कर रहे हैं, जो झिलाऊ लगने लगता है. राइटिंग के अलावा शो की एडिटिंग में भी खामियां मिलती हैं. सिनेमा की एडिटिंग और रियल लाइफ जासूसों में एक समानता है, दोनों की मौजूदगी गलती होने पर ही सामने आती है. कई सीन्स में शॉट्स ऐसे कट होते हैं कि खटकता है, साफ दिखता है कि यहां जम्प कट है. वो कट जहां सीन की कंटिन्यूटी ब्रेक हो रही हो.

अपने सब प्लॉट्स के चक्कर में शो उलझता जाता है.
डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज हुआ ‘ह्यूमन’ ऐसा शो है जिसके कुछ हिस्से अपना इम्पैक्ट छोड़ जाते हैं, लेकिन 10 एपिसोड्स का शो खत्म करने पर जब इन हिस्सों को जोड़ा जाए, तो वो जोड़ पूरे शो से काफी कम निकलता है. इस सीरीज को देखने के बाद मेरे मन में मिक्स्ड थॉट्स हैं, न ही इसे सिरे से खारिज किया जा सकता है, न ही इसे मस्ट वॉच की कैटेगरी में रखा जा सकता है.