2024 में Karan Johar ने Adar Poonawalla के साथ 1000 करोड़ रुपये की बड़ी डील साइन की. बदले में अदार को Dharma Productions के 50 परसेंट शेयर्स मिले. बाकी बचा 50 परसेंट करण जौहर और कंपनी CEO Apoorva Mehta के पास रहा. हाल ही में करण ने इस डील पर अपना पक्ष रखा. साथ ही Homebound फिल्म पर पड़े इसके बुरे असर पर भी बात की.
'होमबाउंड' इंडिया की ओर से ऑस्कर में गई, करण जौहर फिर भी दुखी क्यों हैं?
'होमबाउंड' भले अवॉर्ड सर्किट में खूब सराही गई. मगर बॉक्स ऑफिस पर फिल्म को उम्मीद के मुताबिक रिस्पॉन्स नहीं मिल सका.
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कोमल नाहटा से हुई बातचीत में करण कहते हैं,
"मेरे बहुत सारे सपने थे जो केवल इसलिए पूरे नहीं हो सके, क्योंकि फंड की कमी थी. मैं इतना क्लियर ज़रूर था कि अगर मुझे इस कंपनी को आगे बढ़ाना है, तो मैं इसका 50 परसेंट या कुछ इक्विटी बेचने के लिए तैयार रहूं. मेरा सपना है कि मैं अपनी कंपनी के ज़रिए कई अच्छी चीज़ें छोड़कर जाऊं, एक मजबूत पहचान बनाऊं."
करण ने बताया कि अपनी कंपनी के 50 परसेंट शेयर देने के बाद अब उन्हें फिल्म बनाते वक्त प्रॉफ़िट का ध्यान रखना पड़ता है. पहले ऐसा नहीं था. तब वो क्रिएटिव फैसले लिया करते थे. मगर अब हर नए आइडिया के पीछे प्रॉफिट कैल्कुलेशन आ गया है. वो बताते हैं,
"मैं कुछ फिल्में सिर्फ अपने क्रिएटिव सैटिसफैक्शन के लिए बनाना चाहता था. सिनेमा का लेवल ऊपर उठाना चाहता था. ऐसी कई फिल्में हैं, जो बॉक्स ऑफिस पर हिट नहीं रहीं. लेकिन आज भी उन्हें उनके कॉन्टेन्ट के लिए याद किया जाता है. मैं भी ऐसी फिल्में बनाना चाहता हूं."
करण, नीरज घेवान की फिल्म 'होमबाउंड' के भी प्रोड्यूसर हैं. इस फिल्म को ऑस्कर में भारत की तरफ़ से ऑफिशियल एंट्री के लिए चुना गया है. मगर करण ने इस पर खुशी से अधिक दुख जताया. इस मसले पर विस्तार से बात करते हुए वो कहते हैं,
"अब हर फैसला सोच-समझकर, फायदे को ध्यान में रखकर लेना पड़ता है. मुनाफ़ा कमाना बहुत ज़रूरी है. क्योंकि हम एक बिज़नेस कर रहे हैं. मैंने 'होमबाउंड' जैसी फिल्म बनाई, जिसे दुनियाभर में सराहा गया. लेकिन अब मैं कह नहीं सकता कि आगे मैं इस तरह के फैसले ले पाऊंगा या नहीं. हो सकता है मुझे दुख हो, लेकिन मैंने जो ये डील की है, वो ग्रोथ के लिए है. ग्रोथ प्रॉफिट से आती है और प्रॉफिट तब आता है, जब काम फायदे वाला हो. मैं हमेशा एक कलाकार रहूंगा, मगर साथ ही कमर्शियल रहना भी ज़रूरी है."
करण ने बताया कि उन्हें धर्मा के शेयर्स बेचने की कुछ खास ज़रूरत नहीं थी. उनकी कंपनी बंद नहीं हो रही थी. ना ही वो लॉस में थी. वो प्रॉफिट कमा रहे थे और आगे भी ऐसा ही होता. उनके पास नाम, काम और पैसा, सब था. उन पर एक रुपये का कर्ज़ नहीं था. बैंक से लिए लोन भी वक्त रहते चुका दिए जाते. बावजूद इसके उन्होंने ये डील की ताकि कंपनी की ग्रोथ हो सके.
वीडियो: कैसी है नीरज घेवान की फिल्म 'होमबाउंड'?