कई मरीज़ों को इलाज के बाद घर भेज दिया गया था, लेकिन फिर से वो कोरोना वायरस की चपेट में आ गए. इनमें से कुछ को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हुए कई हफ्ते बीत चुके थे. इसका मतलब ये है कि कोरोना वायरस को मिटाना पहले से और मुश्किल हो गया है.

N-95 मास्क कोरोना वायरस इन्फेक्शन रोकने में कारगर साबित हुआ है. (सोर्स - रॉयटर्स)
ये कैसे मुमकिन है?
जानकारों के मुताबिक कोरोनावायरस के दोबारा दिखने के पीछे कई कारण हो सकते हैं.
1. स्वस्थ हो रहे मरीज़ों के शरीर में पर्याप्त 'एन्टीबॉडीज़' नहीं बन रही हैं. एन्टीबॉडीज़ मतलब शरीर के अंदर के वो सैनिक जो वायरस, बैक्टीरिया या दूसरे घुसपैठियों से लड़ाई करते हैं. एन्टीबॉडीज़ का सीधा नाता शरीर की इम्यूनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता से होता है.
2. ये भी हो सकता है कि वायरस 'बाइफेसिक' है. मतलब वो वायरस काफी समय तक बिना किसी लक्षणों के शरीर में पड़ा रहता है. पिछले दिनों ऐसी रिपोर्ट्स आई थीं कि कोरोना वायरस शरीर में घुसने के बाद लक्षण पैदा करने में कई दिनों का वक्त लेता है. अगर ये डेंजर लेवल 1 की बात है, तो इस वायरस का बाइफेसिक होना डेंजर लेवल 2 है.
हालांकि चीन में 'रीइन्फेक्शन' यानी दोबारा इन्फेक्शन होने के शुरुआती केसेस का कारण टेस्ट में होने वाली गलतियां थीं.

बिगड़ते हालात देख WHO ने कोरोना वायरस को ग्लोबल हैल्थ इमरजेंसी घोषित कर दिया है. (सोर्स - रॉयटर्स)
11 फरवरी को चीन के चेंगडू में एक मरीज़ को डिस्चार्ज कर दिया गया. 10 दिन बाद उसका फॉलो-अप टेस्ट हुआ. और टेस्ट में कोरोना वायरस के नतीजे पॉज़िटिव थे. इसके बाद उसे दोबारा एडमिट किया गया.
एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं?
वेस्ट चाइना हॉस्पिटल में इनफेक्शियस डिसीज़ सेंटर है. इस सेंटर के डिप्टी डायरेक्टर हैं डॉक्टर ली. ली ने पीपल्स डेली को बताया 'हॉस्पिटल्स में नाक और गले के सैंपल्स लिए जा रहे थे. और यही सैंपल्स मरीज़ को डिस्चार्ज करने का आधार थे. लेकिन नए टेस्ट से वायरस के लोअर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट में होने का पता चल रहा है. लोअर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट यानी हमारी सांस नली का अंदरूनी हिस्सा.'
ब्रिटेन की ईस्ट एंग्लिया यूनिवर्सिटी के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर पॉल हंटर ने भी ऐसा ही कुछ बताया. पॉल ने रॉयटर्स से बात करते हुए कहा
ओसाका में वो मरीज़ दोबारा वायरस का शिकार ज़रूर हुआ है, लेकिन ये भी मुमकिन है कि वायरस उसके अंदर ही निकला हो. ये वायरस उसके उसके शुरुआती इन्फेक्शन का हिस्सा हो सकता है, जिसे ढंग से टेस्ट नहीं किया गया था.

जो मरीज़ों की देखभाल कर रहे होते हैं, उन्हें इन्फेक्शन का सबसे ज़्यादा खतरा होता है. (सोर्स -रॉयटर्स)
इन केसेस के सामने आने से पहले ही अमेरिकन मेडिकल असोसिएशन में वुहान में एक स्टडी की थी. स्टडी के लिए उन्होंने चार मरीज़ों को परखा और एक जर्नल पब्लिश किया. इस स्टडी ने पहले ही अंदेशा जताया था कि कुछ ठीक हुए मरीज़ डिस्चार्ज होने के बाद भी ये वायरस फैलाते रहेंगे.
चीनी प्रोविंस गुआंगडोंग में एक लोकल डिसीज़ सेंटर है. वुधवार यानी 26 फरवरी को वहां के वाइस डायरेक्टर मीडिया से मुखातिब हुए. उन्होंने बताया कि डिस्चार्ज किए गए मरीज़ों में कम से कम 14% दोबारा कोरोना वायरस टेस्ट में पॉज़िटिव पाए गए. इन मरीज़ों को ऑब्ज़र्वेशन के लिए दोबारा हॉस्पिटल भेज दिया गया है. उन्होंने आगे ये भी कहा कि एक अच्छी बात ये कि शायद इन मरीज़ों ने दोबारा किसी को इन्फेक्ट नहीं किया है.

चीन में दस दिन में एक हॉस्पिटल बना दिया गया था. (सोर्स - रॉयटर्स)
चीन की नेशनल हेल्थ कमीशन ने शुक्रवार यानी 28 फरवरी को आंकड़े जारी किए. उनके मुताबिक अब तक लगभग 36,000 मरीज़ों को डिस्चार्ज किया जा चुका है. ये कुल इन्फेक्टेड मरीज़ों का 46% है. रीइन्फेक्शन की खबर के बाद स्वस्थ हो चुके मरीज़ों के बीच डर का माहौल है. और विशेषज्ञों का ध्यान कोरोना वायरस के लक्षण छुपाने वाली प्रॉपर्टी की तरफ विशेष रूप से बढ़ गया है.
वीडियो - चीन से भी तेज ईरान में फैल रहा कोरोना वायरस, डिप्टी हेल्थ मिनिस्टर भी चपेट में