सब कुछ इतना औसत चल रहा था कि 90 का दशक शुरू हो गया था या होने वाला था, समझ में नहीं आ रहा था. दिल्ली की एक बोर हो रही शाम को सब्ज़ी खरीद कर अपने कमरे में लौटे तिग्मांशु धूलिया से इरफ़ान खान ने कहा कि उनसे और झेला नहीं जा रहा था. वो घर वापस जाना चाहते थे. तिग्मांशु एनएसडी से थे. जहां इरफ़ान उनके सीनियर थे. दोनों कॉलेज में अच्छे दोस्त बन गए थे. अब साथ ही में रह रहे थे. इरफ़ान की ये बात सुनकर तिग्मांशु ने उनकी पीठ पर वो प्रहार किया जिसमें आवाज़ ज़्यादा होती है और मार कम लगती है. और साथ ही कहा,
"अबे रुको. तुमको एक नेशनल अवॉर्ड दिलवा दें फिर जाना." 2 मार्च 2012. एक छोटे बजट में बनी फ़िल्म रिलीज़ हुई. पान सिंह तोमर. उन जगहों पर शूट हुई जहां डकैत असल में रहा करते थे. धूल फांकते तिग्मांशु धूलिया और इरफ़ान खान. और 3 मई 2013 को तिग्मांशु धूलिया और इरफ़ान खान ने क्रमशः बेस्ट फ़िल्म और बेस्ट ऐक्टर के लिए नेशनल अवॉर्ड लिया. एक बेहतरीन फ़िल्म होने के सिवा मुझे तिग्मांशु और इरफ़ान की ये कहानी आश्चर्य से भर देती है. मज़ाक में बस हवा में कही एक बात सच होकर जब ज़मीन पर आ जाती है तो लगता है 'दिन में एक बार जुबान पर सरस्वती बैठती है' वाली बात सच ही है. फ़िल्म पान सिंह तोमर अपने आप में बॉलीवुड के सभी लिखे-अनलिखे नियमों को तोड़ती हुई मिलती है. और उसके बावजूद आज ये फिल्मों में एक लेजेंड बनी फिरती है. इसके डायलॉग भले ही बीहड़ की रूखी ज़ुबान में हों लेकिन महा शहरी आदमी भी उन्हें दोहराता हुआ मिलता है. जो उस ज़ुबान में नहीं बोल पाता, अपनी स्टाइल में कहता है. लेकिन बच नहीं पाता. ये फ़िल्म असल में एक बीमारी है. जो देखने भर से फैलती है. और हम इसके डायलॉग लेकर आये हैं आपके लिए:
#1

"मेजर चौहान के भतीजे हो?" "हां. सगे फूफा हैं हमारे." "फ़ौज में काहे नहीं गए?" "हुकम को लिखने का शौक है न? आपका आशीर्वाद रहा तो एक दिन, बड़े लेखक बनेंगे." "आराम का काम है. तभै चर्बी चढ़ी हुई है. छांटो इसको. कल से रोजाना 4 किलोमीटर दौड़ शुरू... कहो कल से." "क...क...कल से?" "ठीक से कहो कल से." "कल से." "..." "हुकम? शुरू करें हुकम?" "हम्म..." "आप डकैत कैसे बने?" "अरे तू पूरो पत्रकार बन गओ है कि ट्रेनिंग पे है? जे इलाके का होक भी पतो नहीं है? बीहड़ में बाग़ी होते हैं. डकैत होते हैं पाल्लयामेंट में."
#2

"हमारे पिताजी ने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी थी. और हमें यहां भेज दिया. मिलिट्री में. देश की सेवा करने के लिए. मेरे बस की बात नहीं है. मैं नहीं चला पाऊंगा बन्दूक." "तुम हो निरे गधे कहो हां. अरे कहो हां." "हां...हां जी." "हां. काहे नहीं चलेगी गोली? कंधे पे लगा बट्टा, एक आंख मींच. निसाना लगा, खींच ले उंगली. चल पड़ी गोली." ***** "क्या हो रहा है वहां?" "जी साहब मोड़ा नया आया है हम बन्दूक चलाना सिखा रहे हैं." "वो नया है और तू यहीं पैदा हुआ था?" "हां साब. बन्दूक से हमारा पुराना रिश्ता है. हमारे मामा के पास चार-चार मार्क 3 हैं साब." "अच्छा तो ज़रा निशाना लगा के दिखा. पांच राउंड ग्रुप फायरिंग." (निशाना लगता है. सब गोलियां निशाने पर) "खड़े हो जाओ." "साब!" "कहां से हो?" "गांव भिड़ोसे, जिला मुरैना साब." "ओह्ह! चंबल. डाकू एरिया." "डाकू ना साब. बाग़ी. हमारे मामा, वो मार्क 3 वाले. बे भी बाग़ी हैं साब. आज तक पुलिस न पकड़ पाई उनको."
#3

"सिपाही पान सिंह. तुमने बताया तुम्हारे मामा डाकू हैं?" "ना डाकू ना साब. बाग़ी. बड़े भले आदमी हैं साब." "देखो. जितना पूछा जाए उतना जवाब दो. रिकॉर्ड्स में तो नहीं है. लेकिन क्या कभी किसी जुर्म के सिलसिले में जेल गए हो?" "हम का हमारे मामा तक नहीं गए साब. पुलिस पकड़ न पाई." "क्या कहा था मैंने? जितना पूछा जाए उतना जवाब दो. सरकार में विश्वास रखते हो?" "ना साब सरकार तो चोर है. जेही बात से तो हम सरकारी नौकरी ना कर फ़ौज में आये. जे देश में आर्मी छोड़ सब का सब चोर." "देश के लिए जान दे सकते हो?" "हां साब ले भी सकते हैं. देश-जमीन तो हमाई मां होती है. मां पर कोई उंगली उठाये तो का चुप बैठेंगे?' "फ़ौज का मतलब होता है अनुशासन. तुम्हारा कोई बड़ा अफ़सर तुम्हें कोई भी आदेश दे उसे पूरा करना होता है. तुम्हें जो भी आदेश मिले उसे पूरा करोगे?" "साब. हमें तो चौथी कक्षा फेल हैं. अभी हम तो किताब कम आदमी ज़्यादा पढ़े हैं. अब आप जैसा अफ़सर आदेस देगा, जान लगा देंगे. पर साब, जे बटालियन में कछु ऑफिसर सिर्फ नाम के ही हैं. किसी काम के नहीं हैं. बेकार. अब ये आदेश देंगे तो कछु सोचनो पड़ेगो साब."
#4

"पान सिंह रुक. तेरे लई गल करनी एक." "का कही?" "ओये यार तू मेरी बात का बुरा मत मानियो. तू ऐसा कर, ये 5 हजार मीटर की दौड़, ये तू छोड़ दे." "छोड़ दें?" "हां." "5 हजार छोड़ दूं?" "सर जेई के लिए तो मेजर साब ने हमें यहां भेजा है." "ओये मैंने तेरे वास्ते कुछ और सोचा हुआ है. तू अच्छा दौड़ता है. तेरा स्टेमिना भी बहुत है. ओ मैं तुझे दूसरी इम्पोर्टेन्ट दौड़ देता हूं न." "सर जी इतने महीनों से मैं यही तो प्रेक्टिस कर रहा हूं अभी दो महीने बाद तो डिफ़ेंस मीट है जिसमें हमको मेडल लाना है." "ओ यार तू डिफ़ेंस मीट की बात कर रहा है मैं तुझे नेशनल चैम्पियन बनाने की बात कर रहा हूं." "हां तो आप 5 हजार में बना दो." "मेरी गल सुन. ऐसा है तू 5 हजार दौड़ेगा तो गुरबीर हारेगा." "हां तो उसका...उसका मेरे से क्या लेना-देना?" "ओ बात समझा कर यार. मेरी बेटी गुरबीर के भाई के साथ ब्याही हुई है. मेरी बेटी उस तरह ही वहां पर... गुरबीर हारेगा तो उसका भाई उसके हारने का बदला मेरी बेटी से लेगा यार. तू..." "समझ गया...समझ गया... बात जब गुरु की बेटी की है, अब तो आप अंगार पे दौड़ने को कहोगे दौड़ जायेंगे कोच सर जी."
#5

"ए हनुमंता. जाओ बेटा लेमनचूस खा आओ. और ये वाली दुकान पे बेकार मिलती है एकदम. वो बस-स्टॉप वाली है न. वहां पे अच्छी मिलती है. इसको भी ले जाओ. जाओ बेटा जाओ." ********** "अब तुम्हाए लिए तो कछु लाए नहीं हम शहर से. जरा मालपुआ-आलपुला खिला दो फिर हम तुम्हें सुनाए खुसखबरी." "पहले खुसखबरी सुनाओ. फिर खिलाएंगे मालपुआ. अगर खबर अच्छी न लगी तो?" "अरे तरक्की है गई हमाई. अब तुम हुई सूबेदारनी. नैसनल रिकाड तोड्डालो हमने." "अरे! अबकी का तोड़ आए? जब भी बाहर जाते हो कछु न कछु तोड़ आते हो." "तू गंवार ही रह गई. रिकाड तोड़नो को मतलब होतो है रेस में अव्वल आनो." "अच्छा? जे हमें का पतो?"
#6

"साब!" "पान सिंह, विश्राम. बोलो." "साब सभई मोर्चा पर जा रहे हैं. हम काए नहीं?" "फ़ौज का कानून है. खिलाड़ियों को मोर्चे पे नहीं भेजते." साब. साब हम एक पॉइंट बोल रहे हैं साब." "साब वहां गांव में घर में का मुंह रह जाएगा दिखाने को साब? साब एक पॉइंट बोलते हैं. जे आर्मी हमाए सारे मेडल ले ले. हम स्पोर्ट्स छोड़ देते हैं सब. सब जे एक मौका मिला है साब. जे हम जाने नहीं देंगे. साब एक बार हमको मोर्चा पर भेज दो साब." "तुम यहीं रहोगे. मूव..."
#7

"रोटी खाओगे? जे मटन बड़ो गजब को बनतो है." (रसोइया खाने का एक कौर खाता है.) "जी इनने पहले क्यूं खाया? खाना जूठा कर दिया आपका." "हमाय जिंदगी ऐसी ही है. चौबीस घंटो चौकस रहनो पड़तो है. खाने में जहर है तो खाने वाले पहले मरेगो. मटन बड़ो गजब को है. सर्माओ नहीं. खा लो. आओ." "ठीक है. हम भी कह सकेंगे लोगन से. कि दाऊ के साथ रोटी तोड़ी." "रहेन देओ. मटन तुम्हारे लिए ठीक नहीं है. थोड़ा दौड़-वौड़ सुरु करो. छरहरे हो जाओ. फिर लेना."
#8

"साब जे इनन के परिवार के पास सात सात लाइसेंसी बंदूकें हैं. हमारे परिवार को जान को खतरो है. तो जब तलक फैसला न हो जावे तब तलक इनकी बन्दूकन जो है थाने में जबत करवा दो आप." "देखो, मसान ने कहा तो मैं यहां पर आया न? आया या नहीं? देखो तुम अपने आप देखो ये सब चीज़ें ठीक है? समझ गए?" "साब आपके हाथ में है साब. आप तो कर सकत हैं. ये ये बंदूकन के जोर पर सुअर बने भए हैं." भंवर सिंह: "फउजी होक बंदूक से डर? खाली हाथ लड़ के देख लउ." हनुमंता: "ए ताऊ. गुस्सा न दिलाओ. एकै गोली में मैटर फिनीस." "बाप ने न मारी मेंढक की और बेटा तीरंदाज! हैं? तुम्हारे बाप तो जंग पे ना गए कभी. अगर तुम्हें जंग को सौक चढ़ रो है न तो सुनो. हमाओ इतनेक बड़ो परिवार है कि अगर सब खड़े होक मूत दें न तो बह जाओगे."
#9

"पर सबूत का है? के तुमई हो? जे का लिखा है? स्टीपल चेज. चेज?" "हउ." "कौन किसको चेज़ करतो है?" "न कउ किसी को चेज न करतो साब. जे तो बाधा दौड़ होत है. 3 हजार मीटर की. बाधा ऐसे लांघ कर पार करते हैं. ये सबसे मुश्किल दौड़ होत है कम्पटीसन में." "सबूत का है?" "जे सबूत तो है न साब. जे हमई तो हैं. जे हमई हैं. जे भी हमई हैं." "हम्म. जवान हते तब. विदेश में मोड़ा मोड़ी सब इत्ते कम कपड़े काहे पहनत हैं? तुमने तो खूब आंखें ठंडी करी हैंगी?" "अब..." "अच्छा जे बताओ. गए कैसे? हवाई जहात्ते या पानी के जहात्ते." "अरे साब जे बात अभी हम कैसे बताएं? हमारे मोड़ो को जान पर बनी है साब. जे इत्ते मेडल मिले हैं. हमने देश को नाम ऊंचो किया है. नेशनल चैम्पियन रहे हैं. जे आपई के तरह तो फ़ौज में रहे. अभी हमाई न सरपंच सुन रओ है. न पटवारी सुन रओ है. जे हम जाएं तो कहां?" "अरे यार. ये जमीन फ़सल-वसल को काटो को केस हतो. जब तक दो चार लाशन न टपकेंगी का करेंगे जाके?" "हम कह रहे हैं जे आप..." "अरे जे मुरैना जिलो हते. इते पुलिस की कछु इज्जत है." "हम कह रहे जे आप..." "अब बिना काम के गांव में पुलिस इधर-उधर घूमेगी अच्छो लगेगो?" "हम न कह रहे जमीन के ऐसे निपटारा करो आप. हम जे कह रहे हमारे मोड़ो को इत्तो मारो है इत्तो मारो है, जे खटिया पे पड़ो है. खून बह रहो है. बा हिल डुल न पा रहो." "अरे तो सांस तो चल रही बा की? मरो तो न अभी तक?" "जे मर जाए तभई आएं? जे मर जाए त तभई आएं? देस के लिए फालतू भागे हम?" "अरे तो बा के लिए मिले तो जे मेडल. हटो. हटाओ. चलो. हटो. मेडल. हट्ट!" "जनता की रच्छा की नौकरी है तुमाई." "तौ?" "चिता पे रोटी सेंकने की ना है." "ऐ... का? का कही?" "कह देई. सुनाई न देई? कि कां बंद हो रक्खे तुमाए? हराम की खा-खा के पेट फूल रहो है तन्ना रहा है तुम्हाए." "हेई!" "रंडी का भड़वा को तुम्हारी जगह बिठा दे जनता की रच्छा अच्छी कल्लेगा." "ऐ फौजी!" "हट्ट पुलिस का कुत्ता." "ज्यादा टिपिर टिपिर नई. अभी मार-मार के डंडा से. भक्क साले. साले इत्तो मार पड़ेगी ना, बदन सुजो रहेगो. जिंदगी भर." "साले वर्दी उतर जाए तुम्हाई रंडी के भड़वे का काम नई मिलेगा तुम्हें." "भक्क साले पागल. हट्ट साले."
#10

"सूबेदार साहब. सवा लाख का इंतजाम नहीं हो पाया. सब घर बार बेच दिया. चाहे तो घर की तलाशी ले लो." "अपना मोड़ा के लिए मोल-तोल कर रहा है बताओ." "देखो लाला हम बाग़ी हैं. बिज़नेसमैन नहीं. जित्ता हुआ उत्ता दे देओ. एक हफ्ता बाद मोड़ा घर पहुच जाओगो." "एक हफ़्ते बाद?" "काहे? तुमने मुखबरी कर दई तो?" "अरे! मेरी का हिम्मत जो पुलिस से मुखबिरी कर दूं." "ए गोबर्धन. गिन के ले लेओ. जाओ हटो. जाओ." "बस किरपा रखना सूबेदार." ********** "हम बताएं कहां से उठा के लाए तुमको? जे लंगोट का कच्चो होतो तुम्हाओ मोड़ो. मुजरा देख रहो तो हमने वहीं धल्लओ." "मुजरा? साले तुम मुजरा देखो? और हम तुम्हें बचाए की खातिर घर बार बेच दिए? मुजरा देखो तुम?" "हम बताएं सूबेदार चच्चा को तुम्हाई करतूत? बताएं?" '"का का?" "वो घनश्याम चक्की के बगल वाली की छमिया के बारे में." "हां हां बोलो बोलो." "बा के लिए दस दस हजार रुपया महिना कर के भिजवाते हो. बताएं सूबेदार चच्चा को?" "सूबेदार साब. मार देओ साले के. साले हमसे जबान लड़ाते हो?" "हमारे लाने पचास हजार कम लाए हो?" "हम तुम्हाए बाप हैं बाप." "अरे काहे के बाप? बाप है के ऐसी करतूत?" "ए लल्ला इते आओ." "अब रोवे से का फायदा?" "ऐसी कपूती संतान पैदा करी... सूबेदार साहब मार देओ. मार देओ सारे को." "क्यूं लाला? हमसे मक्कारी? बाप छलकावे जाम और बेटा बांधे घुंघरू? अब देखो. 75 तो बिसके. औ 75 तुम्हाए. डेढ़ लाख रुपइय्या गिन के दे देओ और अपना और मोड़ा का जान बचाय लेओ." "सूबेदार साब. माफ़ कर देओ." "हम नाच नचाना शुरू कर दें तो फिर तुम्हारा भोंपू से बज जाओगो. समझ गए? बांध देओ दोनों के हाथ. बड़ा चकर चकर चकर चकर. बीहड़ का सांति भंग कर दी."
#11

"हमको डर न है. आप लोगन को डर है तो आप काए नहीं कर देते हो सरेंडर?" "जा लड़कपन वाली बात तो कर न तू. तू सरेंडर कर देगो. सब ठीक ठाक है जा गो." "बाबा! आप कभी रेस दौड़े हैं? बाबा रेस को एक नियम होतो है. एक बार रेस सुरु है गई, फिर आप आगे हो कि पीछे हो, रेस को पूरो करनो पड़तो है. वो दूर. वो फिनिस लाइन. बा को छूनो पड़तो है. सो हम तो हमाई रेस पूरी करेंगे. हम हारें चाहे जीतें. आपका रेस आप जानो. बाबा."
ये भी पढ़ें: