इस बंटवारे में धारावी इलाका अन्ना के हिस्से आया है. मुंबई की टैक्सी ,ऑटो और भिखारियों के रैकेट को ऑपरेट करता है गजराज. बिहारी बाबू. बाकी गैंग लीडर्स से विपरीत गजराज एक आम आदमी की तरह रहता है. सिंपल शर्ट-पैंट और हाथ में पाउच. जिसमें हमेशा बंदूक रहती है. गजराज देखने में तो खतरनाक नहीं लगता लेकिन असल में है बहुत. क्रिकेट मैच फिक्सिंग का एरिया संभालता है मुंबई का बहुत बड़ा फ़िल्म और सीरियल प्रोड्यूसर 'चेयरमैन'. हथियारों और ड्रग्स की तस्करी का जिम्मा है खान का. ऊपरी तौर से तो सभी गैंग्स में सुलह है. लेकिन सब अंदर ही अंदर आरे को कब्ज़ाने और रानी माई को रास्ते से हटाने की मंशा रखते हैं. इन 'सब' में सिर्फ राइवल गैंग नहीं बल्कि कुछ आंग्रे परिवार के लोग भी शामिल हैं. एक तरफ़ गैंगवॉर दूसरी तरफ़ पारिवारिक मतभेदों के बीच रानी माई अपना दबदबा कायम रख पाती हैं या नहीं ये शो में दिखता है.

. रानी आंद्रे उर्फ़ रानी माई और उनके दो भांजे मधु और मेजर.
#कहाँ-कहाँ से प्रेरित है 'कार्टेल'? 'गॉडफ़ादर' से लेकर 'स्कारफ़ेस' और 'सत्या' से लेकर 'वंस अपॉन आ टाइम..' तक. इस शो की कहानी, डायरेक्शन स्टाइल और किरदार इन्हीं फिल्मों से घनघोर प्रेरित लगते हैं. इतना ही होता तो फ़िर भी चल जाता. लेकिन और भी है. ऊपर से शो की मुख्य कहानी के बीच में इतने सारे सब-प्लॉट्स चलने लगते हैं कि पूछो नहीं. शुरूआत में ही एक साथ इतने सारे करैक्टर इंट्रोड्यूस कर दिए जाते हैं कि दिमाग चकरा जाता है. कुछ करैक्टर अच्छे हैं. उनकी अच्छी भली स्टोरी चल रही होती है, दर्शक का ध्यान लगा ही होता है कि वो किरदार दो एपिसोड्स के लिए गायब हो जाता है.
शो का कांसेप्ट तो पहले ही काफ़ी घिसा हुआ है. ऊपर से कहानी से लिंक बार-बार जुड़ता-टूटता रहता है. बहुत सारे सीन ऐसे हैं जो लगता है मानो ज़बरदस्ती 'फिट इन' किए हैं. सिर्फ लेंथ बढ़ाने के लिए. दर्शक को शो से कोई जोड़े रखने में कोई मदद करता है, तो वो हैं कुछ एक्टर्स. जिनकी परफॉरमेंस के कारण ही शो में टूटता इंटरेस्ट फ़िर से जुड़ जाया करता है. 'कार्टेल' में भरत-सौरभ का बैकग्राउंड स्कोर काफ़ी अच्छा है. लेकिन एडिटर ने स्कोर का सही से इस्तेमाल नहीं किया है. 'कार्टेल' की जो सबसे कमज़ोर कड़ी है, वो भी एडिटिंग ही है. शो में प्रशांत पांडा की एडिटिंग बहुत ही निराशाजनक है. सेम फिल्टर/एनीमेशन लगाकर उन्होंने पूरे शो में इतनी बार फ़्लैशबैक सीन घुसाए हैं कि बात ही मत करो. कई गैरज़रूरी सीन शो में ऐसे हैं, जो अगर एडिटिंग टेबल पर छंट जाते तो शो का पेस बढ़ जाता. और दर्शक शो से बंधा रहता.

जितेंद्र जोशी ने किया है शो में दमदार अभिनय.
#मिसलीडिंग मार्केटिंग ट्रेलर में सुप्रिया पाठक के इतने सारे सीन थे कि लगा था सुप्रिया जी इस शो का केंद्र बिंदु हैं और शो में काफ़ी दिखने वालीं हैं. लेकिन पहले एपिसोड में 15 मिनट दिखने के बाद वो सीधे 11वें एपिसोड में नज़र आती हैं. यहां दर्शक के तौर पर हमें बहुत ठगा हुआ महसूस होता है. ये 'MX प्लेयर' की नई मार्केटिंग स्ट्रेटेजी प्रतीत होती है. उनके पिछले भी कई शोज़ में ऐसा ही पैटर्न देखा गया है. जहां एक वेटरन एक्टर को शो में लेकर उसके स्टारडम से शो की अच्छी खासी प्रमोशन करते हैं. लेकिन जब असल सीरीज़ देखो, तो उस में उस एक्टर के नाममात्र ही सीन होते हैं. #एक्टिंग में कितना दम? 'कार्टेल' गॉडमदर रानी माई के किरदार में है सुप्रिया पाठक. सीरीज़ में उनके सीन्स मात्र दस परसेंट ही हैं. और ये सीन्स ही इस शो की हाईलाइट हैं. रानी माई के बड़े भांजे मधुकर म्हात्रे उर्फ मधु भाऊ के रोल में हैं जितेंद्र जोशी. जिनका आप 'सेक्रेड गेम्स' के काटेकर का किरदार अब तक भूले नहीं होंगे. फैमिली मैन गैंगस्टर मधुकर का किरदार जितेंद्र ने शानदार ढंग से पकड़ा है. इस किरदार ने इस शो की बैकबोन का काम किया है. शो में ये करैक्टर अभिनय के 'नवरस' से गुज़रता है. और दाद देनी होगी जितेंद्र की जो किसी भी सिचुएशन में निराश नहीं करते. ख़ासतौर से मेंशन करना होगा उनकी कॉमिक टाइमिंग को, जो बहुत शानदार है. कॉमिक सीन्स में उन्हें देख अलग ही मज़ा आया.
माई के दूसरे भांजे हैं मेजर आंग्रे. गैंग लीडर. इस रोल में हैं 'इनसाइड एज' में काम कर चुके तनुज वीरवानी. एक नज़र से देखें तो तनुज इस शो में लीड करैक्टर हैं. उन्हें काफ़ी स्क्रीन टाइम मिला है. पूरे शो में वो कहीं ज्यादा इम्प्रेस नहीं करते. लेकिन निराश भी नहीं करते. रानी माई के बेटे और लीडर बनने को आतुर अभय आंग्रे के किरदार में हैं ऋत्विक धनजानी. थोड़े टपोरी- थोड़े सनकी अभय आंग्रे का किरदार ऋत्विक ने काफ़ी अच्छे से अदा किया है. हालांकि कई सीन्स में उनका अभिनय 'टोनी मोंटाना' की इमिटेशन लगता है. लेकिन इतना ही कर लेना करियर की शुरुआत में बहुत है.
यहां बिहारी माफ़िया गैंगस्टर का रोल करने वाले शुभ्रज्योति बरात की बात अलग से करनी चाहिए. इनका किरदार बहुत ही ज्यादा कैरीकेचरिश हो सकता था, लेकिन शुभ्रज्योति बारात अपने सधे अभिनय से किरदार को कार्टूनिश होने से बचा लेते हैं. अनिल जॉर्ज का निभाया खान का किरदार तो ऐसा लगता है, जैसे एकदम 'मिर्ज़ापुर' का लाला कॉपी-पेस्ट कर दिया है. कपड़े, हाव-भाव सब एकदम मिर्ज़ापुर वाले लाला जैसा ही लग रहा था अनिल का. शो में समीर सोनी भी नज़र आते हैं. समीर सोनी का रोल छोटा है लेकिन काफ़ी इफेक्टिव है.

एक्टर्स के कंधों पर टिका है ये शो.
#राइटिंग एंड डायरेक्शन में क्या ख़ास? शो का जो कांसेप्ट है वो एकता कपूर का है. जिसमें कुछ ख़ास नयापन तो नज़र नहीं आता. संबित मिश्रा शो के राइटर हैं. जिनका लेखन कमज़ोर रहा है. इतने लंबे शो में कोई भी ऐसा डायलाग या सीन इतना इम्पैक्टफुल नहीं रहा कि दिमाग में घर कर जाए. लेकिन तारीफ़ बनती है यहां 'कार्टेल' के डायरेक्टर पुलकित की. पुलकित ने जिस तरीके से कुछ सीन्स का निर्देशन किया है, वो सराहनीय है. पुलकित इस शो से पहले राजकुमार राव के साथ 'बोस: डेड और अलाइव' बना चुके हैं. पुलकित जल्द ही 'स्कैम 1992' फ़ेम प्रतीक गांधी के साथ भी काम करने वाले हैं. #देखें या नहीं इंटरनेट पर क्राइम बेस्ड शोज़ की भरमार है. ऐसे में इस वक़्त और भविष्य में आने वाले क्राइम शोज़ पर नयेपन का बहुत प्रेशर है. 'कार्टेल' में नयापन तो कुछ नहीं है लेकिन बीच-बीच में कहानी रोचक होती रहती है. हालांकि ये 'रोचक' एलिमेंट कहानी में आता-जाता रहता है. जिस कारण शो में मज़ा बरकरार नहीं रहता और ये शो अच्छे-बुरे के बीच 'एवरेज' की केटेगरी में आकर गिरता है. ये है हमारी राय. बाकी मर्ज़ी आपकी. एक और सूचना दे दूं. ये शो आप सिर्फ अपने एंड्राइड फ़ोन पर ही देख पाएंगे. बाकी लैपटॉप, टीवी या आइफ़ोन वालों के लिए फिलहाल शो उपलब्ध नहीं है.



















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