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फिल्म रिव्यू- 777 चार्ली

'777 चार्ली' एक सिंपल फिल्म है, जो आपको बहुत ज़्यादा एंटरटेन नहीं करेगी. ना ही फिल्म का मक़सद आपको एड्यूकेट करना है. कई बार कहानी कहने का सिर्फ एक ही मक़सद होता है, कहानी को कहना.

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फिल्म के एक सीन में चार्ली को लेकर रोड ट्रिप पर निकला धर्मा. इस फिल्म को किरणराज के ने डायरेक्ट किया है.

जब देसी फिल्ममेकर्स का सारा जोर लार्जर दैन लाइफ और मसालेदार फिल्में बनाने पर लगा हुआ है, उसी दौरान एक कोमल सी, प्यारी सी फिल्म रिलीज़ होती है. इसके मेकर्स के हिम्मत की दाद देनी होगी कि उन्होंने इस सब्जेक्ट की फिल्म को थिएटर्स में रिलीज़ करने का फैसला किया. ये फिल्म आपको एड्रेनलीन रश नहीं देगी. बल्कि वो आपको जीवन को समझने और इस प्रक्रिया में गहरे तक उतरने का मौका देगी. कन्नड़ा भाषा की इस फिल्म का नाम है '777 चार्ली'. 

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'777 चार्ली' की कहानी एक इंसान और कुत्ते के बीच की रिलेशनशिप के बारे में है. धर्मा नाम का एक लड़का है. बड़ा नीरस जीवन जी रहा है. एक फैक्ट्री में काम करता है. किसी से कोई बातचीत नहीं. मोहल्ले के बच्चे उससे डरते हैं. क्योंकि वो उन्हें देखकर कभी स्माइल तक नहीं करता. बच्चों को देखकर छोड़िए, उसे खुद नहीं याद कि वो आखिरी बार मुस्कुराया कब था. बचपन बड़ा ट्रैजिक था उसका. वो उस बचपन को जवानी तक खींच लाया है. त्रासदी से उबरने के लिए एकाकीपन का लाठी लिए फिर रहा है. तभी उसके जीवन में आता है चार्ली. चार्ली, लैब्राडॉर ब्रीड का कुत्ता है. उसका भी बचपन बड़ा दुखभरा रहा है. वो अपने मालिक के यहां से भागकर आया है. धर्मा, चार्ली को अडॉप्ट कर लेता है. चार्ली के आने से धर्मा के जीवन को एक मक़सद मिलता है. उसके भीतर का इंसान एक बार फिर जागता है. मगर फिर उसे चार्ली के बारे में कुछ ऐसा पता चलता है, जो धर्मा को तोड़कर रख देता है. फिल्म का ट्रेलर आप यहां देख सकते हैं:

'777 चार्ली' बड़ी स्वीट फिल्म है, जिसमें ढेर सारा इमोशन है. अगर आपने जीवन में कभी कुत्ते के साथ दोस्ती की है, तो ये फिल्म आपको उसकी याद दिलाएगी. बहुत खुश करेगी. थोड़ा दुख देगी, फिर आपको आपकी रेगुलर दुनिया  में जाने के लिए छोड़ देगी. नाउम्मीदी में प्रेम करना सिखाएगी. क्योंकि प्रेम से ज़्यादा उम्मीदवान आप कभी नहीं होते. खैर, ये फिल्म अपनी गति पर चलती है. इसलिए फिल्म देखते-देखते आप बहुत कुछ सोच रहे होते हैं. ऐसा नहीं है कि फिल्म में आपका इंट्रेस्ट नहीं है. फिल्म ही आपको सोचने पर मजबूर कर रही है.

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'777 चार्ली' की सबसे प्यारी चीज़ है उसमें नज़र आने वाला कुत्ता चार्ली. इस फिल्म में कन्नड़ा फिल्मों के स्टार रक्षित शेट्टी ने काम किया है. मगर फिल्म का नायक वो कुत्ता है. ये बात हम फिल्म देखने के बाद कह रहे हैं. रक्षित को ये बात फिल्म की कहानी पढ़ते वक्त ही पता चल गई होगी. बावजूद इसके उन्होंने इस फिल्म में काम करना चुना. ये सिक्योर एक्टर्स की निशानी होती है, जो करियर में अच्छा काम करना चाहते हैं. चाहे उन्हें कुत्ते के साथ ही सेकंड लीड क्यों न करना पड़े. रक्षित ने धर्मा के कैरेक्टर को अंडरप्ले किया है. क्योंकि वो कैरेक्टर बड़ा ठहरा-ठहरा सा है. उसे किसी चीज़ की जल्दी नहीं है. क्योंकि उसके जीवन में कोई एक्साइटमेंट नहीं है. सिर्फ कहानी ही नहीं परफॉरमेंस वाले फ्रंट भी चार्ली नाम के कुत्ते का काम आपको चौंकाता है. कितना भी ट्रेन कर लो, किसी जानवर से क्यू पर काम करवाना आसान नहीं होता.  

फिल्म के एक सीन में चार्ली और धर्मा. जैसा कि आप देख पा रहे हैं, इस तस्वीर में भी रक्षित बैकग्राउंड में नज़र आ रहे हैं.

मगर मैं रक्षित और चार्ली के बीच की केमिस्ट्री देखकर हैरान था. इंसान एक्टिंग करते हैं. मगर कुत्ते को तो एक्टिंग नहीं आती. वो कैमरे पर जैसे भी बिहेव कर रहा है, वो जेन्यूइन है. मेरी उत्सुकता ये जानने में है कि क्या रक्षित शेट्टी और चार्ली में पहले से कोई कनेक्शन था. या वो इस फिल्म की मेकिंग के दौरान पहली बार मिले.

फिल्म के एक सीन में चार्ली से आजिज आ चुका धर्मा. मगर उनकी दोस्ती जल्द ही ये पड़ाव पार कर जाती है.

'777 चार्ली' एक हार्टवॉर्मिंग सी कहानी दिखाने के साथ एक मैसेज भी देती है. फिल्म ये कहना चाहती है कि आप अगर कुत्ता पालने का सोचने रहे हैं, तो खरीदें नहीं अडॉप्ट करें. Adopt, don't shop. प्यार से कही गई साधारण मगर ज़रूरी बात, जिसके बारे में अमूमन लोग सोचते भी नहीं है. ये फिल्म आपको कई बार इंट्रोस्पेक्ट यानी आत्मवालोकन वाले जोन में ले जाती है. या हो सकता है मैं ओवररीड कर रहा हूं. क्योंकि कई बार आप जिस मूड के साथ फिल्म देखने जाते हैं, आप फिल्म को वैसे ही देखते हैं.

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'777 चार्ली' एक सिंपल फिल्म है, जो आपको बहुत ज़्यादा एंटरटेन नहीं करेगी. ना ही फिल्म का मक़सद आपको एड्यूकेट करना है. कई बार कहानी कहने का सिर्फ एक ही मक़सद होता है, कहानी को कहना. मेरे लिए '777 चार्ली' वैसी ही फिल्म है. इसे देखते वक्त थोड़े भावुक भी होंगे क्योंकि फिल्म में वैसे कई मोमेंट्स हैं. मगर जब ये फिल्म अपने सेकंड हाफ में पहुंचती है, तो कहानी पर इसकी पकड़ थोड़ी कमज़ोर पड़ जाती है. इसी वजह से 2 घंटे 16 मिनट की ये फिल्म बहुत लंबी लगने लगती है. इस फिल्म से मेरी ये इकलौती शिकायत है. समय हो तो ये फिल्म देखी जा सकती है.

वीडियो देखें: फिल्म रिव्यू- विक्रम

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