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योगी के खिलाफ चुनाव लड़ने के पीछे चंद्रशेखर आजाद का असली प्लान ये है?

क्या चंद्रशेखर आजाद गोरखपुर से चुनाव जीत सकते हैं?

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भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर ने यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को चुनौती दे डाली है.
उत्तर प्रदेश चुनाव (up election 2022) में भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद (Chandrashekhar Azad) सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मैदान में उतरेंगे. चंद्रशेखर आजाद ने ऐलान किया है कि वह गोरखपुर सदर सीट से विधानसभा चुनाव लड़ेंगे. गोरखपुर की इसी सीट से योगी आदित्यनाथ मैदान में हैं. चंद्रशेखर की नहीं बनी थी अखिलेश से बात चंद्रशेखर आजाद रावण काफी समय से सपा मुखिया अखिलेश यादव से गठबंधन को लेकर बातचीत कर रहे थे. लेकिन बीते हफ्ते यह बातचीत पटरी से उतर गई. यूपी चुनाव में चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच गठबंधन नहीं हो पाया. इसके बाद चंद्रशेखर ने अखिलेश यादव को दलित विरोधी बता दिया. वहीं अखिलेश यादव का कहना था कि उन्होंने चंद्रशेखर को सीटें दी थीं, लेकिन वो खुद ही पीछे हट गए. चंद्रशेखर आजाद ने योगी के खिलाफ ताल क्यों ठोंकी है? आइए आपको बताते हैं कि वेस्ट यूपी का एक नया नेता आखिर पूर्वांचल जाकर योगी आदित्यनाथ के खिलाफ क्यों चुनाव लड़ रहा है? इसके पीछे की पहली वजह गोरखपुर सदर सीट के जातिगत आंकड़े हैं. 4 लाख से अधिक मतदाताओं वाली इस सीट पर कायस्थ और निषाद वोटर करीब 40-40 हजार हैं. दलित वोटर तकरीबन 50 हजार हैं, जिनमें पासवान समाज की संख्या सर्वाधिक है. इस सीट पर करीब 30 हजार वैश्य, 50 हजार ब्राह्मण और लगभग 50 हजार ही राजपूत वोटर हैं. यहां मुस्लिम वोटर करीब 45 हजार हैं. इसके अलावा गोरखपुर सदर सीट पर 25 हजार से अधिक कुर्मी वोटर भी हैं. माना जा रहा है कि पिछड़े, दलित और मुसलमान वोटर की संख्या देखकर ही चंद्रशेखर आजाद ने सीएम योगी के खिलाफ ताल ठोंकने का मन बनाया है.

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दलित नेता होने के साथ-साथ चंद्रशेखर आजाद का मुस्लिम वोटरों पर भी प्रभाव माना जाता है. क्योंकि सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान, उन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और इसके बाद उन्हें मुस्लिमों का समर्थन भी मिला था. उन्होंने एक नया नारा दिया - जय भीम, जय मीम - जो दलितों और मुसलमानों को एक साथ लाने के लिए अच्छा रहा. इसके बाद चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी ने 2020 में बुलंदशहर में हुए उपचुनाव में अपना उम्मीदवार उतारा. जो भाजपा और बसपा के बाद तीसरे नंबर पर रहा. यहां तक कि सपा-रालोद के संयुक्त उम्मीदवार और कांग्रेस के उम्मीदवार भी चंद्रशेखर के कैंडिडेट से पीछे रहे. इस चुनाव में आजाद समाज पार्टी को काफी संख्या में दलित और मुस्लिम वोट मिला था. पूर्वांचल में लोकप्रियता बढ़ेगी कुछ राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो जातिगत समीकरणों को देखते हुए हो सकता है चंद्रशेखर योगी आदित्यनाथ को फाइट देते दिखें. लेकिन इससे बड़ी बात यह है कि सीधे योगी जैसे बड़े नेता से मुकाबला करने के चलते, वे पूरे यूपी चुनाव के दौरान सुर्ख़ियों में छाए रहेंगे और इससे पूर्वांचल में उनकी लोकप्रियता बढ़ेगी. अगर चंद्रशेखर यह सीट हार भी जाते हैं, तो इससे उनका कद कम नहीं होगा, क्योंकि फिर यह कहा जाएगा कि वे एक योगी जैसे ताकतवर नेता से उसके गढ़ में हारे. गोरखपुर सदर सीट का इतिहास 1989 में गोरखपुर सदर विधानसभा सीट पर पहली बार बीजेपी जीती थी. तब से यहां भगवा पार्टी का कब्जा रहा है. इन 33 सालों में कुल आठ चुनाव हुए, जिनमें से सात बार भाजपा और एक बार हिन्दू महासभा के उम्मीदवार ने जीत हासिल की. हिन्दू महासभा से 2002 में राधामोहन दास अग्रवाल जीते थे, लेकिन बाद में वे भाजपा में शामिल हो गए. तबसे अग्रवाल ही लगातार इस सीट से जीतते आ रहे हैं. राधा मोहन दास अग्रवाल के पहला चुनाव जीतने से लेकर आज तक यह माना जाता है कि इस सीट पर जीत और हार के समीकरण गोरखनाथ मंदिर में तय होते हैं.

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