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पूर्वांचल NDA के साथ जाएगा या गठबंधन के? जानिए लोकसभा चुनाव 2024 में पूर्वांचल का सियासी गणित

Lok Sabha Election 2024: यूपी की हॉट सीट वाले पूर्वांचल में पिछले 3 लोकसभा चुनाव का ब्यौरा, जातीय-क्षेत्रीय समीकरण, लोकसभा सीटों की सांठ-गांठ और मुद्दे क्या हैं?

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पूर्वी यूपी में दो ऐसी लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम आबादी रिजल्ट तय करती है. (फोटो- द लल्लनटॉप)

साल 1962, देश की आजादी के बाद पहली बार संसद में कोई पूर्वांचल की (यूपी का पूर्वी हिस्सा) बात कर रहा था. गाजीपुर से कांग्रेस सांसद विश्ननाथ सिंह 'गहमरी' संसद में इलाके के हालात बयां करने के लिए पिछड़ा ,बिगड़ी, बेकारी जैसे शब्दों का खूब इस्तेमाल कर रहे थे. उस समय देश के प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश से ही थे, पं जवाहर लाल नेहरू. 'गहमरी' उन्हीं के सामने भावुक होकर उत्तर प्रदेश के पूर्वी इलाकों की बदहाली की कहानी कह रहे थे. उन्होंने कहा था,

'यहां हर साल बीमारियां आती है उनकी रोकथाम क्यों करते हैं ? रोज घुट घुट कर मरने से एक दम मर जाना बेहतर है. कांग्रेस के लिए कलंक है कि एक लैंडलेस लेबर दिन भर काम कर के 2 आने पैसे और एक लोटा रस पाता है. लोग एक वक्त खाना खाते हैं क्योंकि 2 वक्त की रोटी मयस्सर नहीं होती. गाय के गोबर से अनाज बीनकर लोग आटे की रोटी खाते हैं. शिकायत करने पर नेहरू कहते हैं छोटी छोटी बातें मत करिए. सूबे की बात मत करो. हम कहते हैं आप खुद चलिए और सच्चाई देख लीजिए.'

ये सब सुनकर नेहरू की आंखें सजल हो चुकी थीं. पूर्वांचल के पिछड़ेपन का ठीकरा कांग्रेस सांसद विश्ननाथ सिंह ‘गहमरी’ ने अपनी ही पार्टी पर फोड़ दिया था. सदन में हर कोई हैरान था. इसके बाद नेहरू ने जांच के लिए पटेल कमीशन के गठन का आदेश दिया था. जिसे इलाके में निरीक्षण करने के बाद रिपोर्ट सौंपने का जिम्मा दिया गया.

अब थोड़ा आगे आइए. 80 से 90 के दशक के बीच. जब रेलवे के ठेके पर वर्चस्व की लड़ाई को लेकर बाहुबली नेताओं ने पूर्वांचल के माथे पर लकीर खींच दी थी. अपराधी अब राजनीति में एंट्री लेने लगे थे.  तब हरिशंकर तिवारी, बृजेश सिंह, मुख्तार अंसारी, धनंजय सिंह जैसे माफियाओं का नाम चलता था. बताया जाता है कि पूर्वांचल के रेल मुख्यालय गोरखपुर स्टेशन पर जब ट्रेन रुकती थी तो लोग खिड़की बंद कर लेते थे. टिकट घरों पर उस रूट की टिकट मांगी जाती थी जिस पर गोरखपुर न पड़े.

अब आते हैं सीधे वर्तमान में. फिलहाल यूपी के पूर्वी इलाके की राजनीति और अहमियत इसी बात से साफ हो जाती है कि पीएम मोदी ने चुनाव लड़ने के लिए गंगा किनारे बनारस को चुना. बीजेपी के कद्दावर नेता और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का गढ़ भी पूर्वांचल का गोरखपुर है.

स्वागत! यहां तक पहुंचे माने भोजपुरिया बेल्ट में एंट्री हो चुकी है. अब लोकसभा सीटों की सैर से पहले इलाके को समझना होगा. क्योंकि भाषा बोली के हिसाब से सीमांकन तो कर दिया गया है. लेकिन पूर्वांचल में कितने शहर शामिल हैं? ये थोड़ा विवादास्पद  है. ठोक पीटकर पूर्वांचल में 17 शहरों पर नक्की हुई. 5 मंडल और 17 शहर.

मंडलजिला
गोरखपुर मंडलगोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर और महाराजगंज
वाराणसी मंडलवाराणसी, जौनपुर , गाजीपुर, चंदौली
मिर्जापुर मंडल  मिर्जापुर , सोनभद्र, संत रविदास नगर
बस्ती मंडल बस्ती, संत कबीर नगर,  सिद्धार्थनगर 
आजमगढ़ मंडलआज़मगढ़, मऊ और बलिया

इन जिलों में कुल 17 लोकसभा सीटें आती हैं. महराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, गोरखपुर, बांसगांव, गाजीपुर,वाराणसी, जौनपुर, चंदौली, मछली शहर, आजमगढ़, डुमरियागंज, सलेमपुर, घोसी, बलिया, मिर्जापुर, और रॉबर्ट्सगंज. हालांकि बस्ती से अवध की छाप शुरू हो जाती है.

पूर्वांचल की सोशल इंजीनियरिंग

#पिछड़ा इलाका होने के बावजूद यहां बिरादरी फर्स्ट, दल सेकंड और मुद्दा लास्ट है. विश्लेषक कहते हैं कि जातियों में गुंथी यहां की राजनीति में हर सवाल का जवाब जाति ही है. फिर चाहे रोजगार, आरक्षण, विकास या कोई दूसरा मुद्दा हो. पूर्वांचल  पिछड़ी, अति पिछड़ी, सवर्ण, दलित और MY समीकरण  का कॉकटेल है. यूं कहें छोटी-बड़ी राजनीतिक पार्टियों की लेबोरेटरी. गोरखपुर (ग्रामीण), संतकबीरनगर में निषाद जाति की मौजूदगी है. वहीं जौनपुर, आजमगढ़, कुशीनगर, देवरिया, बस्ती, वाराणसी में समुदाय की उपजातियां जैसे मांझी, केवट, बिंद, मल्लाह मिलती हैं. ये मछुआरों और नाविक समुदाय के लोग हैं.

#गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलित भी कई इलाकों में प्रभावशाली हैं और अक्सर चुनाव के नतीजे तय करते हैं. जिनमें राजभर, कुर्मी, मौर्य, चौहान, पासी, और नोनिया शामिल हैं. हालांकि, राजभर समुदाय राज्य के कुल मतदाताओं का केवल 4% है. लेकिन  पूर्वांचल के कई जिलों खासतौर पर वाराणसी, आज़मगढ़, जौनपुर, मऊ, बलिया में इसके 12% से 23% वोटर हैं.

#इसी तरह जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) नोनिया समुदाय पर प्रभाव रखती है. यूपी की आबादी का लगभग 2 प्रतिशत हिस्सा. चंदौली, मऊ, गाज़ीपुर और बलिया जैसे पूर्वी यूपी के कुछ जिलों में 10- 15% वोटर हैं.अपना दल का आधार कुर्मियों के बीच है. जो पूर्वांचल की आबादी का 9 प्रतिशत हैं और यादवों के बाद दूसरा सबसे बड़ा OBC हिस्सा हैं. अपना दल (कमेरावादी ) ने हाल ही में 'INDIA' गठबंधन का साथ छोड़ दिया है. वहीं अपना दल (सोनेलाल ) का गठबंधन NDA के साथ है.

#यूपी में लगभग 20% आबादी मुस्लिमों की है. आज़मगढ़, मऊ, बलिया, गाजीपुर, जौनपुर में इनकी संख्या ज्यादा है. इन इलाकों में MY समीकरण चलता है, और दावेदारी  SP और BSP की. बलिया विपक्ष की लिस्ट में इसलिए शामिल है क्योंकि 2019 लोकसभा चुनाव में यहां बीजेपी से SP की हार का अंतर बहुत कम था.

ब्राह्मण वोट किधर जाएगा?

पूर्वांचल में देवरिया, गोरखपुर, कुशीनगर और खलीलाबाद वो लोकसभा सीटें हैं जहां बीजेपी ने ब्राहमण नेताओं को मौका दिया है. इंडिया टुडे से जुड़े आशीष रंजन की रिपोर्ट के मुताबिक 1993 से 2004 तक जब किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था, तब यही समुदाय था जिसने सूबे में बीजेपी का पूरा समर्थन किया. चाहे विधानसभा चुनाव हों या संसदीय चुनाव.

लोकनीति-CSDS सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक, 2004 तक आधे से ज्यादा ब्राह्मण मतदाताओं ने हमेशा बीजेपी को वोट दिया था. हालांकि, 2007 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के लिए समुदाय का समर्थन 40%  से नीचे गिर गया. तब बसपा ने बहुमत हासिल किया था. हालांकि ,2014 के लोकसभा चुनाव में सारे समीकरण बदल गए. बीजेपी को ब्राह्मणों का भी भारी समर्थन मिला. अनुमान है कि 2014 में 72%  ब्राह्मणों ने बीजेपी को वोट दिया था. 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनावों में फिर से यही देखने को मिला. पूर्वांचल की राजनीति पर करीब से नजर रखने वाले आज तक के पत्रकार ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने हमें बताया,

"ब्राह्मण वोट भी इस बार BJP के ही साथ है. बीजेपी ने इलाके में जाति समीकरण को पीछे छोड़ दिया है.कांग्रेस, सपा के पास पूर्वांचल में तो कोई मुद्दा नहीं है. यहां जो 10 साल पहले आया था वो अब आकर देखे. योगी सरकार ने सड़कों का जाल बिछा दिया है. पिछड़े तबकों को पीएम आवास योजना, मुख्यमंत्री आवास योजना समेत तमाम योजनाओं का लाभ मिला है. बीजेपी ने अपनी योजनाओं से पिछड़ी जातियों को आकर्षित किया है. बीजेपी यहां इस बार भी ज्यादातर सीटों पर जीत रही है. इस बात को लेकर कोई दो राय नहीं है."

पूर्वी यूपी में दो ऐसी सीटें हैं जहां मुस्लिम आबादी बड़ी संख्या में है. आजमगढ़ में 29.06% और गाजीपुर में 26. 77 %. 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने पूर्वी यूपी में गाजीपुर, जौनपुर और घोसी सीटें जीतीं थीं. मुस्लिम आबादी को लेकर उन्होंने आगे कहा, 

"पूर्वांचल में मुस्लिमों के मन में डर है. कई मुस्लिम कहते हैं कि हम 'बाबा' के साथ जाएंगे. लेकिन आमतौर पर ऐसा होता नहीं है. ये बात नगर निकाय चुनाव में देखने को मिल चुकी है. जिन मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में ज्यादातर मुस्लिमों ने योजनाओं का लाभ उठाया वहां वोट सबसे ज्यादा सपा को मिले. दूसरे नंबर पर कांग्रेस और तीसरे नंबर पर बीजेपी थी."

अब टेबल से समझिए पिछले 3 लोकसभा चुनाव में किन पार्टियों ने कितनी सीटों पर जीत दर्ज की. 

पूर्वांचल के सीटों की सांठ-गांठ

पिछले कई चुनावों को देखें तो पूर्वांचल के वोटर्स कभी किसी एक पार्टी के नहीं रहे हैं. फ्लैशबैक में जाएं तो विश्ननाथ सिंह गहमरी ने भी 60 के दशक में कहा था कि यहां सोशलिस्ट और कम्युनिस्ट पार्टियों के उम्मीदवार जीतते हैं क्योंकि पिछड़ेपन की वजह से लोगों में असंतोष है. यानी समय-समय पर अलग-अलग पार्टियों ने लोहा मनवाया है. लोकसभा सीटों के चुनावी मैथ्स की बात की जाए तो फिलहाल गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर,बांसगांव, महाराजगंज, बस्ती, डुमरियागंज, सलेमपुर, वाराणसी, चंदौली वो इलाके है जहां बीजेपी की पैठ पहले से ही मजबूत है. संत कबीर नगर से NDA के घटक दल निषाद पार्टी को लोकसभा टिकट मिला है.

घोसी लोकसभा सीट पर बीजेपी ने सुभासपा नेता ओमप्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर को मैदान में उतारा है. चुनाव से पहले नाराज चल रहे ओमप्रकाश राजभर को योगी मंत्रिमंडल में शामिल कर मना लिया गया है. पिछले चुनाव में यहां से BSP के अतुल राय ने बीजेपी प्रत्याशी हरिनारायण को हराया था. इस सीट के बारे में खास बात ये है कि यहां हर चुनाव में अलग अलग दल का कैंडिडेट जीतता आया है.

गाजीपुर लोकसभा सीट पर SP ने इस बार मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी पर हाथ आजमाया है. 2019 के चुनाव में SP-BSP के गठबंधन से अफजाल अंसारी ने यहां बीजेपी के कद्दावर नेता मनोज सिन्हा को हराया था. गोरखपुर के वरिष्ठ पत्रकार टी पी शाही का बताते हैं,

"पिछली बार SP- BSP गठबंधन के बाद सामाजिक समीकरण ने BJP को पीछे छोड़ दिया था. लेकिन इस बार BJP अपने घटक दलों के साथ यहां भी मजबूत है".

पूर्वांचल में BJP की सहयोगी पार्टी अपना दल (एस) का मिर्जापुर, वाराणसी, जौनपुर, भदोही, चंदौली, सोनभद्र जिलों के पटेल बाहुल्य इलाकों में अच्छी पकड़ है. मिर्जापुर में 2019 में SP-BSP के गठबंधन के बाद भी अनुप्रिया पटेल को आधे से ज्यादा वोट मिले थे. बगल में रॉबर्ट्सगंज लोकसभा सीट पर भी अपना दल का कंट्रोल है. सांसद हैं पकौड़ी लाल. हाल ही में केंद्र सरकार ने एहतियातन अनुप्रिया की सुरक्षा अपग्रेड कर के Z सिक्योरिटी कर दी है. खबर है कि अपना दल (कमेरावादी) की पल्लवी पटेल भी मिर्जापुर लोकसभा सीट से इस बार चुनाव लड़ने की जद्दोजहद में हैं. अगर ऐसा होता है तो दो बहनें आमने सामने होंगी.

जौनपुर की लोकसभा सीट से धनंजय सिंह ने अपनी उम्मीदवारी का एलान किया था. लेकिन आपराधिक मामले में दोषी पाए जाने पर वो जेल भेज दिए गए. फिलहाल BJP ने पूर्व कांग्रेस नेता कृपा शंकर सिंह को यहां से अपना प्रत्याशी घोषित किया है, जिन्होंने राजनीति तो मुंबई से की लेकिन उनकी जड़ें जौनपुर में मजबूत हैं.

वहीं 2019 लोकसभा चुनाव में मछलीशहर लोकसभा सीट पर  कांटे की टक्कर देखने को मिली थी. केवल 181 वोट से हार जीत का फैसला हुआ. BSP के त्रिभुवन राम ने दूसरे नंबर पर अपनी जगह बनाई थी.

अब बात यूपी की उस हॉट सीट की जिस पर मुस्लिम-यादव समीकरण का जोर है. यहां यादव और मुस्लिम कैंडिडेट के जीतने का इतिहास है. यानी कि समाजवादी पार्टी का मजबूत किला. जिसे ध्वस्त करने के लिए बीजेपी ने भोजपुरी एक्टर दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को दोबारा मौका दिया है. 2022 में नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के बाद अखिलेश यादव ने आजमगढ़ लोकसभा सीट को छोड़ा था. जिसके बाद हुए उपचुनाव में निरहुआ ने यहां से जीत दर्ज की थी. 

फिर आता है पूर्वांचल का आखिरी शहर. ब्रिटिश राज में यहां के लोगों के विद्रोही तेवर की वजह से शब्द मिला बागी. तो बना बागी बलिया. अंग्रेजों से सबसे पहले आज़ाद होने वाला ज़िला. बलिया से बीजेपी के वीरेंद्र सिंह मस्त सांसद हैं. लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में SP प्रत्याशी सनातन पांडे ने उन्हें कड़ी टक्कर दी थी. दोनों के बीच वोटों का बहुत कम अंतर था.

PDA फॉर्मूला, लोहिया -अंबेडकर के विचार

इस बार समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव का फोकस PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले पर है. मीडिया से बातचीत में वो हर बार इसे दोहराते नजर आते हैं. 2024 चुनाव को लेकर सपा के उम्मीदवारों की लिस्ट में भी यही देखने को मिला. पिछले साल कोलकाता में सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी ने बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों को भी मान्यता  देने की बात कही थी. इसके लिए सपा ने बाबा साहब वाहिनी फ्रंटल संगठन गठित किया. इसकी कमान बसपा में 29 साल तक रहे नेता मिठाई लाल को दी गई  है. आगामी लोकसभा चुनाव के लिए  कांग्रेस - सपा में गठबंधन को  लेकर सीट शेयरिंग पर मुहर लग चुकी है. पूर्वांचल में कांग्रेस बांसगांव, महाराजगंज, देवरिया  सीट  से दांव आजमा रही है. वहीं BJP ने अपने पुराने दावेदारों पर ही भरोसा जताया है.

वहीं BSP सभी सीटों पर उम्मीदवार उतार रही है. पिछली बार SP के साथ गठबंधन में दोनों पार्टियों के हाथ 15 सीटें आई थीं. यूपी की राजनीति पर सक्रिय नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार टीपी शाही ने बताया,

“BSP अप्रासंगिक हो गई है. यूपी में कभी बहुमत में रही पार्टी के पास अब केवल 1 सीट है. कई कद्दावर नेताओं ने पार्टी छोड़ दी है. उन्हें रोकने की कोशिश भी नहीं की गई. कभी पार्टी में कई कद्दावर नेता हुआ करते थे. लेकिन अब मायावती का कैडर ध्वस्त हो गया है. किसी को BJP ले गई तो किसी को चंद्रशेखर की पार्टी. मायावती पर पैसे लेकर टिकट देने का आरोप लगता रहा है.”

पूर्वांचल में मुद्दे क्या हैं?

जैसा कि मिर्जापुर वेब सीरीज में कालीन भैया ने कहा था कि जिसका कंट्रोल पूर्वांचल पर होता है वो पूरे यूपी में राज करता है. जापानी इंसेफेलाइटिस पर काबू पाना, हर जिले में AIMS-मेडिकल कॉलेज बनाना, गोरखपुर में सालों से बंद पड़ा खाद कारखाना कभी पूर्वांचल का अहम मुद्दा हुआ करता था. BJP सरकार ने इसे पूरा कर पूर्वांचल को साधे रखा है. यहां हाल ही में किए गए कुछ विकास की लिस्ट में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, रुद्राक्ष केंद्र, कुशीनगर इंटरनेशनल एयरपोर्ट का उद्घाटन,पूर्वांचल एक्सप्रेस वे, सिद्धार्थनगर सहित पूर्वांचल के 7 जिलों में मेडिकल कॉलेज का उद्घाटन, आजमगढ़ में स्टेट यूनिवर्सिटी का शिलान्यास जैसी तमाम योजनाएं शामिल हैं. हाल ही मेंधुरियापार के ऊसर में पूर्वी उत्तर प्रदेश और गोरखपुर के पहले सीबीजी (कंप्रेस्ड बायोगैस) के लोकार्पण से अब किसानों को गाय के गोबर और पुआल का भी मूल्य मिलेगा. जल्द ही इलाके को पूर्वांचल एक्सप्रेस-मार्ग के लिंक एक्सप्रेस-मार्ग से गीडा को जोड़ने की भी बात कही गई है.

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गोरखपुर के वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप श्रीवास्तव के मुताबिक 'पूर्वांचल में लगातार बंद हो रहीं चीनी मिले वहां के गन्ना किसानों के लिए सबसे  बड़ी समस्या हैं. चीनी मिल कर्मचारियों ने कई बार वेतन, एरियर, बोनस, पीएफ सहित कई चीजों के लिए आंदोलन भी किया है. इसके अलावा कई राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि क्षेत्र में बेरोजगारी और महंगाई भी बड़े मुद्दे हैं.

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