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क्या है टाटा ग्रुप के झगड़े की पूरी कहानी, जिसको सुलझाने के लिए सरकार को कूदना पड़ा?

Tata Group में फिर से झगड़ा हो गया है. पहले Cyrus Mistry को लेकर था, तो अब Vijay Singh को लेकर हुआ. लेकिन असली मुद्दा कुछ और ही है.

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रतन टाटा के निधन के बाद से टाटा ग्रुप में अंदरूनी कलह जारी है. (India Today)

रतन टाटा के जाने के बाद उनकी कंपनी वाले आपस में ही झगड़ा कर रहे हैं. कंपनी के सबसे पुराने ऑफिस के कमरे में लड़ाई हो रही है. प्लेन पकड़कर टाटा कंपनी के अधिकारी दिल्ली चले आ रहे हैं. वो कभी गृहमंत्री अमित शाह से मिल रहे हैं .कभी वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन से मिल रहे हैं. गुहार एक - हमारे घर में झगड़ा बहुत है. लेकिन झगड़ा सुलझा नहीं, साम्राज्य और ज्यादा ही टूट गया. अंदर ही अंदर.

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टूटा ऐसा कि देश का सबसे भरोसेमंद कारोबारी साम्राज्य बचेगा या नहीं, या बचेगा तो कैसे बचेगा, ऐसी बातें चलने लगीं. तो क्या है टाटा का झगड़ा. आज इस पर बात करेंगे. और बात शुरू करते हैं मुंबई से.

मुंबई शहर में चर्चगेट के पास एक चौराहा है. इस चौराहे का नाम है - हुतात्मा चौक. बड़े-से फव्वारे से इस चौराहे की पहचान होती है. यहीं पर एक 4 मंज़िला बिल्डिंग है. साल 1924 में ये बिल्डिंग बनकर रेडी हुई. बिल्डिंग का नाम रखा गया - बॉम्बे हाउस. ये कोई औनी-पौनी बिल्डिंग नहीं थी. भारत के सबसे गौरवशाली बिजनेस ग्रुप का ऑफिस बनी ये बिल्डिंग. ग्रुप का नाम - टाटा समूह. लंबे समय तक इस बिल्डिंग के कोने वाले एक कमरे में रतन टाटा ने खुद बैठकर काम सम्हाला था. 

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कट टू 10 अक्टूबर, 2025. 

इसी बॉम्बे हाउस में एक खास मीटिंग चल रही थी. देश का एक बड़ा वर्ग इस मीटिंग की डीटेल्स का इंतजार कर रहा था. क्या हो रहा था इस मीटिंग में? टाटा समूह के अंदर चल रहे सबसे बड़े झगड़े का निबटारा होना था. लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ. कंपनी के रोज़मर्रा के कामकाज पर चर्चा हुई, और असली मैटर मुल्तवी कर दिया गया. लेकिन इसी कालखंड में एक और जगह एक मीटिंग चल रही थी. देश की राजधानी नई दिल्ली में. जगहें थीं दो - केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह और केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन के दफ्तर. टाटा से जुड़े अधिकारी सीधे सरकार का दखल चाह रहे थे, ताकि मामले को निबटाया जा सके. अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर ये लड़ाई क्या है, और क्यों इतनी बड़ी है कि सरकार तक बीच में कूद पड़ी? टाटा ग्रुप की कहानी की मदद से डिकोड करते हैं. 

टाटा ग्रुप 26 लाख करोड़ का समूह है. और इस ग्रुप के अंदर हैं 400 से ज्यादा कंपनीज़, और लाखों की संख्या में कर्मचारी. इस पूरे ग्रुप को ऑपरेट करने की जिम्मेदारी है टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड के पास.  टाटा संस के पास ही ये अधिकार है कि वो टाटा ब्रांड का इस्तेमाल कर सके.

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अब ये जो टाटा संस है, उसकी 66 परसेंट की हिस्सेदारी टाटा समूह के ही कुछ ट्रस्ट्स के पास है.
जैसे - 
- सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट - 27.98% हिस्सेदारी 
- सर रतन टाटा ट्रस्ट - 23.56% हिस्सेदारी
- जेआरडी टाटा ट्रस्ट - 4.01% हिस्सेदारी 

इन सबको मिलाकर कहते हैं टाटा ट्रस्ट. टाटा ट्रस्ट के लोग मिलकर टाटा संस का चेयरमैन बनाते हैं. और टाटा संस का जो चेयरमैन होता है, वो पूरे टाटा समूह का भी सर्वेसर्वा है. ये जरूरी नहीं कि टाटा संस की चेयरमैनशिप की कुर्सी टाटा परिवार के मेम्बर के पास ही जाए. साइरस मिस्त्री और एन चंद्रशेखरन के पास ये कुर्सी गई तो थी ही. यानी बाहर के लोगों के पास भी ये कुर्सी जा सकती है. टाटा संस के अलावा टाटा इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड भी है, जो नए बिजनेस ventures का काम देखती है.

यानी आप समझ ही गए हैं कि टाटा की अधिकांश कंपनियों को टाटा संस चलाता है. और टाटा संस को चलाता है टाटा ट्रस्ट. और इन्हीं दोनों के बीच हो रही है रस्साकशी. और इस मुसीबत की शुरुआत हुई 11 सितंबर 2025 को. इस दिन टाटा ट्रस्ट के छह ट्रस्टीज़ की मीटिंग हुई. मीटिंग का एजेंडा - टाटा संस के डायरेक्टर विजय सिंह का reappointment. मतलब फिर से नियुक्ति. Reappointment इसलिए क्योंकि रतन टाटा के निधन के बाद टाटा ग्रुप ने एक नई पॉलिसी बनाई - उम्र 75 साल होने के बाद, हर साल नॉमिनी डायरेक्टर्स की नियुक्ति पर फिर से डिसिज़न लिया जायेगा. और विजय सिंह की उम्र हो गई 77 साल. वो 2012 से टाटा संस के डायरेक्टर रहे हैं

मीटिंग में reappointment के मामले पर वोटिंग शुरू हुई. टाटा ट्रस्ट के 4 मेम्बर्स ने वोट किया कि विजय सिंह की नियुक्ति फिर से नहीं होनी चाहिए  - 
- मेहली मिस्त्री
- प्रमित झावेरी
- जहांगीर एचसी जहांगीर 
- डारियस खंबाटा 

वहीं दो मेम्बर्स - नोएल टाटा और वेणु श्रीनिवासन ने विजय सिंह को फिर से नियुक्त करने का समर्थन किया.वोटिंग में 4-2 से विजय सिंह को हार मिली और उन्होंने खुद ही इस्तीफा दे दिया.कायदे से देखे, तो यहाँ पर कोई विवाद नहीं दिखता है. लेकिन विवाद हुआ, और कायदे से हुआ. और वो समझने के लिए आपको एक कहानी सुननी होगी. कहानी साइरस मिस्त्री की. और साइरस मिस्त्री की कहानी उनके पिता पल्लोनजी मिस्त्री से शुरू होती है. वो शापूरजी पल्लोनजी ग्रुप के चेयरमैन थे. उन्हें "फैंटम ऑफ बॉम्बे हाउस" कहा जाता था. मतलब बॉम्बे हाउस के भूत, क्योंकि वे मीडिया से दूर रहते थे.

उनका परिवार दशकों से टाटा ग्रुप से जुड़ा रहा है. पल्लोनजी के पिता शापूरजी ने 1930 में टाटा संस के शेयर खरीदना शुरू किए थे. धीरे-धीरे उनकी हिस्सेदारी बढ़ती गई और 2011 तक पल्लोनजी ग्रुप के पास टाटा संस में 18.4% शेयर हो गए. उस समय ये यह टाटा संस में सबसे बड़ी individual हिस्सेदारी थी.इस स्थिति में सबसे बड़े शेयरहोल्डर के पास सबसे बड़ी कुर्सी जानी चाहिए थी. वैसा हुआ भी. साल 2012 में पल्लोनजी के बेटे साइरस मिस्त्री टाटा संस के छठे चेयरमैन बने. ये बहुत बड़ा फैसला था क्योंकि पहली बार कोई टाटा फैमिली के बाहर का इंसान चुना गया था. इस नियुक्ति के पीछे रतन टाटा की बड़ी भूमिका थी. वो 2007 से ही साइरस को इस रोल के लिए तैयार कर रहे थे. लेकिन ये रिश्ता ज्यादा दिन नहीं टिका. 

24 अक्टूबर 2016. रतन टाटा ने साइरस मिस्त्री से इस्तीफा देने को कहा. मिस्त्री ने इस्तीफ़ा देने से मना कर दिया. एक बोर्ड मीटिंग हुई, 9 में से 7 डायरेक्टर्स ने मिस्त्री को हटाने का फैसला लिया. साल 2017 में टाटा संस की कुर्सी पर बैठ गए एन चंद्रशेखरन. गैर-पारसी समुदाय से आने वाले पहले सर्वेसर्वा.लेकिन सबकी आँखों के तारे साइरस मिस्त्री की कुर्सी गई क्यों? ये जानने के लिए दोनों पक्षों के बयान समझने होंगे.  टाटा संस का कहना था कि साइरस के लीडरशिप में कई कंपनियों का प्रदर्शन खराब रहा. वे ग्रुप की ऑपरेटिंग कंपनियों पर ज्यादा कंट्रोल चाहते थे. और यह टाटा के काम करने के तरीके के खिलाफ था. वहीं साइरस मिस्त्री ने आरोप लगाया कि उनके साथ गलत व्यवहार किया गया. उन्हें बोर्ड की ज़रूरी मीटिंग्स से बाहर रखा गया.और कंपनी के माइनॉरिटी शेयरहोल्डर्स यानी छोटे हिस्सेदारों के साथ भी गलत किया जा रहा था. उन्होंने ये भी कहा कि कई कंपनियों की वित्तीय हालत ठीक नहीं थी, जिसे छुपाया जा रहा था.

खुद को हटाए जाने के खिलाफ साइरस मिस्त्री ने National Company Law Tribunal (NCLT) में अपील की. जैसे लीगल झगड़ों में हम कोर्ट जाते हैं, वैसे कंपनियों के झगड़ों को सुलझाने के लिए, NCLT जाते हैं. लेकिन 2018 में NCLT ने टाटा संस के पक्ष में फैसला दिया. फिर 2019 में National Company Law Appellate Tribunal (NCLAT) ने उल्टा फैसला दिया, साइरस मिस्री के पक्ष में दिया. NCLAT वो कोर्ट है जहां, NCLT के डिसिशन पर अपील की जाती हैं. NCLAT ने कहा कि मिस्त्री को चेयरमैन रखा जाए. इस फैसले ने पूरे कॉर्पोरेट जगत में हलचल मचा दी. लेकिन बात यहाँ नहीं रुकी. फिर मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया. सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2020 में NCLAT के आदेश पर रोक लगा दी. मार्च 2021 में टाटा संस के पक्ष में ही अंतिम फैसला सुनाया. यानी साइरस मिस्त्री को चेयरमैन के पद से हटाना सही था. एन चंद्रशेखरन की कुर्सी बरकरार रही.
कुछ महीनों बाद, 4 सितंबर 2022 को साइरस मिस्त्री की एक कार एक्सीडेंट में मौत हो गई.

दो साल बाद 9 अक्टूबर 2024 को रतन टाटा का निधन हुआ. दो दिन बाद  - 11 अक्टूबर को रतन टाटा के सौतेले भाई, नोएल टाटा को टाटा ट्रस्ट का नया चेयरमैन बनाया गया. नोएल इसके पहले वेस्टसाइड और टाइटन जैसी कंपनियों से जुड़े रहे थे. उनकी पत्नी का नाम है आलू मिस्त्री, जो साइरस मिस्त्री की बहन हैं. कहा जाता है कि जब नोएल चेयरमन बने, टाटा ट्रस्ट में गुटबाजी शुरू हुई. दो गुट बन गए. 

पहला गुट नोएल टाटा का है, जिसमें उनके अलावा वेणु श्रीनिवासन और टाटा संस वाले एन. चंद्रशेखरन हैं. दूसरा गुट मेहली मिस्त्री का है, जिनके साथ प्रमित झावेरी, जहांगीर एचसी जहांगीर और डारियस खंबाटा आते हैं. और आपको जानना चाहिए कि ये मेहली मिस्त्री और कोई नहीँ, बल्कि टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री के कज़िन ब्रदर हैं. इन दो गुटों में चार मुद्दों पर मतभेद खुलकर सामने आए-

एक - टाटा इंटरनेशनल की फंडिंग का मामला. नोएल टाटा की टाटा इंटरनेशनल को 1000 करोड़ रुपए की फंडिंग मिली. इसपर मेहली मिस्री के गुट ने आरोप लगाया कि साफ़-साफ़ बताए बिना यह काम हुए. उन्हें डिसिशन में शामिल नहीं किया गया.
दो - नोएल टाटा चाहते थे कि एक नया पद बने- डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर का. उस पर भी दूसरे गुट की सहमति नहीं थी
तीन - मेहली मिस्त्री गुट ने कहा कि उन्हें टाटा संस बोर्ड की ज़रूरी जानकारियों से बाहर रखा गया.
और चौथा कारण सबसे रीसेन्ट है. वो जुड़ा है विजय सिंह के इस्तीफे के बाद के घटनाक्रम से.

खबरें चलीं कि इस्तीफे के बाद मेहली मिस्त्री खुद टाटा संस के बोर्ड डायरेक्टर की कुर्सी पर बैठना चाहते थे, लेकिन नोएल टाटा और वेणु श्रीनिवासन ने इसे रोक दिया. नोएल टाटा गुट का कहना रहा कि मेहली मिस्त्री का गुट "सुपर बोर्ड" बनाना चाहता है. और नोएल टाटा की लीडरशिप को कमजोर करने की साजिश रच रहा है. उन्होंने तर्क दिया कि टाटा के मूल्यों के हिसाब से ही फैसले होने चाहिए. 

जवाब में मेहली मिस्त्री गुट ने कहा कि टाटा ट्रस्ट में पारदर्शिता की कमी है. एक "टॉप-हेवी स्ट्रक्चर" बन रहा है, यानि सिर्फ कुछ लोग ऊपर से सारे फैसले ले रहे हैं. 
कहा कि गवर्नेंस यानी कंपनी के काम करने का तरीका, जमाने के हिसाब से बदलना जरूरी है.
कंपनी से जाते हुए विजय सिंह ने भी कहा - "अब शायद टाटा ग्रुप की सोच बदल रही है."
विजय सिंह के इस्तीफे के बाद ये गतिरोध बढ़ गया. बॉम्बे हाउस में हुई मीटिंग्स, ईमेल और मैसेजेस का कोई हल नहीं निकला. देश का एक बड़ा बिजनेस ग्रुप स्टैंडस्टिल की स्थिति में आ गया था.

इस बीच 7 अक्टूबर, 2025 को टाटा ट्रस्ट के सदस्य दिल्ली आए. टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन नोएल टाटा, वेणु श्रीनिवासन, एन. चंद्रशेखरन और डारियस खंबाटा. यानी नोएल गुट के तीनों मेम्बर, और मिस्त्री ग्रुप से बस एक. दिल्ली में उन्होंने भारत के गृह मंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात की. दखल देने की गुहार लगाई. सरकार ने साफ कहा कि इस लड़ाई से टाटा संस के काम-काज पर असर नहीं पड़ना चाहिए. सूत्रों के हवाले से आई खबरों ने कहा - जल्द से जल्द सब नार्मल किया जाए. सरकार ने ये भी इशारा दिया कि अगर ज़रूरत पड़ी तो वो किसी भी ट्रस्टी को हटा सकते हैं.

अब लगा कि सब ठीक हो जाएगा. लेकिन कुछ नहीं हुआ. 10 अक्टूबर को जो मीटिंग हुई, उसके बाद एक और बड़ा घटनाक्रम सामने आया. मेहली मिस्त्री के गुट ने प्रस्ताव रखा कि अब टाटा संस का IPO कराया जाए. यानी वह कंपनी जिसे हमेशा टाटा परिवार ने अपने और दोस्तों के बीच रखा, उसमें पब्लिक की हिस्सेदारी लाने की कवायद शुरू हो गई. इसमें RBI की भी एंट्री हुई. RBI ने साल 2022 में टाटा संस को NBFC यानी Non-Banking Financial Company घोषित कर दिया. NBFC मतलब ऐसी कंपनियां जो बैंक तो नहीं होती हैं, लेकिन वो लोगों या कंपनियों को लोन देती है. अब नियम कहते हैं कि NBFC की जिस कैटेगरी में टाटा संस को रखा गया था, उस कैटेगरी की सारी कंपनी को स्टॉक मार्केट में लिस्ट होना पड़ता है. यानी उनके शेयर वगैरह आते हैं. 

RBI ने टाटा संस को 30 सितम्बर 2025 तक शेयर मार्किट में लिस्ट होने के लिए कहा. मेहली मिस्त्री वाला गुट चाह रहा था कि IPO आ जाए, स्टॉक मार्केट का रास्ता खुल जाए. लेकिन खबरें बताती हैं कि नोएल टाटा गुट को ये मंजूर नहीं था. अब आपको पता ही है कि जो टाटा ट्रस्ट है, उसमें एक रतन टाटा ट्रस्ट का भी एक हिस्सा है. जब शेयर मार्केट और NBFC का झमेला शुरू हुआ, तो रतन टाटा ट्रस्ट ने नोएल गुट से ताल्लुक रखने वाले, और टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन से कहा कि कंपनी को पब्लिक होने से रोका जाए. हुक्म की तामील हुई. साल 2024 में टाटा संस ने अपना NBFC का लाइसेंस सरेंडर कर दिया. लेकिन जनवरी 2025 में RBI ने फिर से कंपनियों की लिस्ट निकाली. उसमे टाटा संस और टाटा कैपिटल दोनों का नाम था. टाटा कैपिटल तो पब्लिक हो चुकी हैं. उसका IPO आ चुका है. लेकिन टाटा संस का खेल अटका हुआ है. और अटका हुआ टाटा संस का भविष्य भी. सवाल है कि सब कब ठीक होगा? 
 

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