आपकी कार के साथ कुछ भी हो जाता है. मसलन कार चोरी हो जाए या दुर्घटना हो जाए, तो भरोसा रहता है कि इंश्योरेंस क्लेम ले लेंगे. लेकिन शायद हमेशा ऐसा नहीं होता. आज हम ऐसे ही एक शख्स के बारे में बात करेंगे. जिन्हें अपनी कार चोरी का क्लेम लेने में 22 साल का समय लग गया. आपने सही सुना 22 साल. अब 2025 में उन्हें अपनी कार चोरी का क्लेम कोर्ट से मिला है. क्योंकि इंश्योरेंस कंपनी ने शख्स को भुगतान करने से मना कर दिया था. आपको पूरा मामला बताते हैं.
22 साल बाद मिला चोरी हुई कार का इंश्योरेंस क्लेम, कहीं ये गलतियां आप भी तो नहीं कर रहे
Alto Car Theft Insurance Claim: 2003 में एक शख्स की कार चोरी हुई थी. इसकी जानकारी उसने बीमा कंपनी को दी थी. लेकिन बीमा कंपनी ने ये कहते हुए क्लेम देने से इनकार कर दिया कि कार चोरी शख्स की लापरवाही की वजह से हुई. अब इस मामले पर गाजियबाद DCDRC ने शख्स के पक्ष में फैसला सुनाया है.

दरअसल, पुनीत अग्रवाल नाम के एक शख्स की कार 22 साल पहले चोरी हो गई थी. उन्होंने 10 मार्च 2003 को Alto कार खरीदी थी. कार खरीदने के लिए उन्होंने दिल्ली के झंडेवालान में ICICI Bank से लोन लिया. उसी दिन उन्होंने गाड़ी का 1.9 लाख रुपये का इंश्योरेंस भी कराया. कुछ दिनों बाद वे परिवार के साथ छुट्टियां मनाने हरिद्वार गए. लेकिन 6 अप्रैल 2003 को उनकी गाड़ी हर की पौड़ी से चोरी हो गई.
इसके तुरंत बाद उन्होंने पुलिस थाने में FIR दर्ज कराई और बीमा कंपनी और बैंक को चोरी की जानकारी दी. ताकि उन्होंने इंश्योरेंस क्लेम करने में परेशानी न हो. उन्होंने जनवरी 2004 तक सभी जरूरी दस्तावेज भी बीमा कंपनी को दे दिए थे. लेकिन नेशनल इंश्योरेंस कंपनी ने उनका दावा खारिज कर दिया. साथ ही कहा कि अग्रवाल ने अपनी कार को सेफ्टी के साथ पार्क नहीं किया था. उन्होंने अपनी कार की सही देखभाल नहीं की.
इसके बाद अग्रवाल ने राष्ट्रीय बीमा कंपनी को चार बार लेटर लिखा. ये तारीख हैं 2 मई 2005, 24 जुलाई 2005, 18 अप्रैल 2006 और 17 जुलाई 2006. लेकिन उन्हें न तो क्लेम मिला और न ही किसी चिट्ठी का जवाब. इसके बाद उन्होंने गाजियाबाद जिला कंज्यूमर विवाद निवारण आयोग (DCDRC) में अपील की. लेकिन कमीशन ने इस मामले में फैसला लेने के अधिकार क्षेत्र के अभाव का हवाला देकर अग्रवाल की याचिका खारिज कर दी.

इसके बाद अग्रवाल ने 2011 में उत्तर प्रदेश के लखनऊ स्थित राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (SCDRC) का रुख किया. अब एक दशक से भी ज्यादा लंबे समय के बाद फरवरी 2025 में SCDRC ने तय किया कि गाजियबाद DCDRC को ही इस मसले पर फैसला सुनाना चाहिए. इसके बाद मामले की सुनवाई हुई और जुलाई 2025 में गाजियबाद DCDRC ने अग्रवाल के पक्ष में फैसला सुनाया.
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गाजियबाद DCDRC ने अग्रवाल को 1.43 लाख रुपये देने के लिए कहा. ये राशि 2003 के इंश्योर्ड डिक्लेयर्ड वैल्यू (IDV) 1.9 लाख रुपये का 75 प्रतिशत थी. बता दें कि कोर्ट ने इंश्योरेंस कंपनी पर 5 हजार रुपये का अतिरिक्त भी जुर्माना लगाया. ये जुर्माना मानसिक पीड़ा और मुकदमे के खर्च के लिए लगाया गया. फैसले में ये भी कहा गया कि अगर नेशनल इंश्योरेंस कंपनी 45 दिन के अंदर पैसा नहीं देती है. तो उस पर 6 प्रतिशत हर साल की दर से साधारण ब्याज भी लगाया जाएगा. जब तक पूरी राशि का भुगतान नहीं हो जाता.
क्लेम न देने की ये भी वजहेंये अपने किस्म का ना तो पहला मामला है और ना ही आखिरी. अब पुनित अग्रवाल को तो उनकी गाड़ी का क्लेम मिल गया. लेेकिन बीमा कंपनियां कई वजह से आपका क्लेम रिजेक्ट कर सकती हैं. जैसे कि आपकी गाड़ी चोरी हो गई लेकिन चाबी कार के अंदर ही थी. दूसरी वजह हो सकती है कि अगर आप दोनों चाबियां नहीं दे पाएं (कार खरीदते समय 2 चाबियां मिलती है), तब भी आपको क्लेम नहीं मिलेगा. तीसरा, अगर आपने गाड़ी की चाबी खो जाने या चोरी होने पर दूसरी चाबी बनवाई. गाड़ी का लॉक चेंज करवाया. लेकिन इसकी जानकारी बीमा कंपनी को नहीं दी, तब भी आपका क्लेम रिजेक्ट हो जाएगा.
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