एक कविता रोज़ में आज इक़बाल की ये कविताबच्चों की दुआलब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी,ज़िन्दगी शमा की सूरत हो ख़ुदाया मेरी.दूर दुनिया का मेरे दम से अंधेरा हो जाएहर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाए.हो मेरे दम से यूं ही मेरे वतन की ज़ीनत,जिस तरह फूल से होती है चमन की ज़ीनत.ज़िन्दगी हो मेरी परवाने की सूरत या रब!इल्म की शमा से हो मुझ को मुहब्बत या रब!हो मेरा काम ग़रीबों की हिमायत करना,दर्दमंदों से, ज़ईफ़ों से मुहब्बत करना.मेरे अल्लाह, बुराई से बचाना मुझ को,नेक जो राह हो, उस रह पे चलाना मुझ को.--------------------------------------------------------------------------------कुछ और कविताएं यहां पढ़िए:‘पूछो, मां-बहनों पर यों बदमाश झपटते क्यों हैं’‘ठोकर दे कह युग – चलता चल, युग के सर चढ़ तू चलता चल’‘मैं तुम्हारे ध्यान में हूं!'‘जिस तरह हम बोलते हैं उस तरह तू लिख'‘दबा रहूंगा किसी रजिस्टर में, अपने स्थायी पते के अक्षरों के नीचे’--------------------------------------------------------------------------------नवम्बर 2016 में 'आज तक' ने दो दिवसीय साहित्य उत्सव का आयोजन किया. इसके अंतर्गतलल्लनटॉप कहानी प्रतियोगिता भी रखी गई. देश के अलग-अलग कोने से आए कहानीकारों नेइसमें हिस्सा लिया. पेश है उसी प्रतियोगित से चुनी गईं 16 लल्लनटॉप कहानियां:लल्लनटॉप कहानियों को खरीदने का लिंक: अमेज़न