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माफ करो विराट कोहली, हम तुम्हें डिज़र्व ही नहीं करते

हमें खलनायक क्यों लगते हैं कोहली?

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Virat Kohli, इनसे प्यार करें या नफरत... आप इन्हें इग्नोर नहीं कर सकते (पीटीआई फाइल फोटो)
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सूरज पांडेय
31 दिसंबर 2020 (Updated: 31 दिसंबर 2020, 03:06 PM IST) कॉमेंट्स
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24 दिसंबर 2009. कोलकाता का ईडन गार्डन्स. पांच मैचों की सीरीज में 2-1 से पीछे चल रही श्रीलंका ने चौथे वनडे में टॉस जीता. पहले बैटिंग का फैसला किया. उपुल थरंगा की सेंचुरी के दम पर श्रीलंका ने 315 रन बनाए. भारत चेज़ करने उतरा. सुरंगा लकमल ने कप्तान विरेंदर सहवाग और सचिन तेंडुलकर को सिर्फ 23 के टोटल पर लौटा दिया. 3.4 ओवर्स में ही सचिन-सहवाग आउट. अब क्रीज पर खड़े गौतम गंभीर का साथ देने आया 21 साल का उनका रणजी टीममेट. नाम विराट कोहली. इंडियन बैटिंग का भविष्य करार दिया गया लड़का. जो 13 वनडे खेलने के बाद भी सेंचुरी की तलाश में था. अगले तीन घंटे तक इस लड़के ने गंभीर के साथ मिलकर श्रीलंकाई बोलर्स को चौतरफा धुना. अंत में कोहली जब आउट हुए, टीम इंडिया आसान जीत की ओर बढ़ चली थी. 39.2 ओवर्स में भारत का स्कोर 247-3 था. कोहली के नाम 114 गेंदों में 107 रन थे. पहली सेंचुरी के 11 साल बाद आज कोहली के नाम 70 इंटरनेशनल सेंचुरी हैं. वनडे में 43 और टेस्ट में 27. ICC ने हाल ही में कोहली को दशक का सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर चुना है. साथ ही वह दशक के सर्वश्रेष्ठ वनडे क्रिकेटर भी चुने गए. वनडे में पिछले एक दशक के उनके आंकड़े कमाल हैं.

# कमाल के कोहली

वनडे में कोहली ने 43 शतक मारे हैं, इनमें से 35 बार भारत जीता है. यानी कोहली की 81 पर्सेंट सेंचुरीज़ ने टीम इंडिया को जीत दिलाई है. इन 43 में से 26 सेंचुरी उन्होंने चेज़ करते हुए लगाई हैं. जाहिर है कि चेज़ करते हुए ज्यादा प्रेशर होता है. लेकिन ये प्रेशर भी कोहली को थाम नहीं पाया. कोहली ने 9 अलग-अलग देशों के खिलाफ शतक लगाए हैं. कोहली के कुल वनडे शतकों में से 56 पर्सेंट भारत से बाहर आए हैं. यानी कोहली घर के शेर नहीं हैं. कोहली ने 43 में से 21 शतक कप्तानी करते हुए लगाए हैं. यानी उन पर कप्तानी का प्रेशर भी कभी नहीं आया. अब इससे पहले कि सामने वाली टीमों के बोलर्स की क्वॉलिटी का सवाल उठे. जान लीजिए, कोहली की 81 पर्सेंट सेंचुरी इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, वेस्ट इंडीज़, पाकिस्तान, श्रीलंका और न्यूज़ीलैंड के खिलाफ आई हैं. इसमें अगर वेस्ट इंडीज़ को थोड़े बेहतर बोलिंग अटैक वाली साउथ अफ्रीका से रिप्लेस कर दें तो भी यह आंकड़े 70 पर्सेंट से ज्यादा हैं. 251 मैचों में 59.31 का ऐवरेज रखने वाले कोहली इस मामले में भी बाकियों से काफी आगे हैं. 100 से ज्यादा वनडे खेलने वाला कोई भी बल्लेबाज इस मामले में उनसे आगे नहीं है. टेस्ट में कोहली की सिर्फ 7 सेंचुरी हारे मैचों में आई हैं. अच्छे लेखकों का मानना है कि कुछ लिखते वक्त बहुत ज्यादा आंकड़ों के प्रयोग से बचना चाहिए. लेकिन जब लोगों को चीजें समझ ना आएं, तो आंकड़े पटकने के सिवा कोई चारा नहीं बचता.

# किस बात की जलन?

भारत के कुछ एहसान फरामोश क्रिकेट प्रेमी हर छोटी बात पर कोहली को ट्रोल करने लगते हैं. हर दूसरे दिन उन्हें किसी और से कंपेयर किया जाता है. कभी कप्तानी के लिए तो कभी बैटिंग के लिए. बैटिंग के लिए विराट को किसी से कंपेयर करने वालों से बस सहानुभूति जाहिर की जा सकती है. क्योंकि उन्हें नहीं पता, वो क्या कर रहे हैं. लेकिन कप्तानी के लिए विराट को कभी रोहित शर्मा, कभी धोनी तो आजकल अजिंक्य रहाणे से कंपेयर किया जा रहा है. क्या सच में इसकी जरूरत है? कोई भी देश अपने महानतम एथलीट्स में से एक के साथ ऐसा करता है? हर दूसरे दिन उसके महान होने का सबूत मांगता है? विराट की कप्तानी में टीम की जीत का पर्सेंटेज सबसे बेहतर है. विराट की कप्तानी में टीम ने ऑस्ट्रेलिया में पहली बार टेस्ट सीरीज जीती. 2017 चैंपियंस ट्रॉफी का फाइनल और 2019 वर्ल्ड कप का सेमीफाइनल खेला. इन दोनों मैचों में भारत हार गया तो इससे कोहली बुरे हो गए? यही कोहली 2014 और 2016 T20 वर्ल्ड कप के प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट थे. तब भी भारत नहीं जीता था. इस बात से समझ नहीं आता कि कमी किधर है? कोहली चलते हैं तो भारत जीतता है, कोहली नहीं चलते तो भारत हार जाता है. प्लेयर कोहली अगर टीम के लिए अपना 200 पर्सेंट देने के बाद लोगों से इतने की ही उम्मीद रखता है तो उसकी कप्तानी टॉक्सिक क्यों हो जाती है? अपने साथियों से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद रखना टॉक्सिक होना है? क्या आधुनिक क्रिकेट में मुंहतोड़ जवाब देने की कोशिश करना गलत है? कोई खेल लोगों को खुद को एक्सप्रेस करने से रोकता है? ICC का कोई नियम टूटे तो उसके लिए सजा का प्रावधान है. हम कौन होते हैं किसी को ये बताने वाले कि उसे मैदान के अंदर कैसे रहना चाहिए?

# दोहरा रवैया क्यों?

ऑस्ट्रेलिया के कुख्यात प्लेयर्स को उन्हीं की भाषा में जवाब देने के लिए लोग गांगुली की तारीफ करते हैं. और यही काम जब कोहली करते हैं तो लोग आलोचना करते हैं. ये दोहरा रवैया क्यों? अगर कोहली सिर्फ बड़बोले होते तो बात अलग थी. लेकिन कोहली मैदान के अंदर अपने एक्शन से ज्यादा आक्रामक अपने खेल से हैं. फिर दिक्कत क्या है? अगर यही एटिट्यूड उन्हें आगे धकेल रहा है तो हमें तो इसका और समर्थन करना चाहिए. फायदा हमारी टीम का ही होगा. सॉफ्ट लीडर्स शॉर्ट टर्म में अच्छे लगते हैं, लॉन्ग टर्म में जब टीम का प्रदर्शन गिरता है तो हम सबसे पहले उनके व्यवहार पर उंगली उठाते हैं. कि इसको तो देखकर ही लग जाता है कि ढीला है, इससे कुछ होगा नहीं. दरअसल कमी हमारे ही अंदर है. हम दब्बू लोगों को आक्रामक और आक्रामक लोगों को दब्बू बनाने की दबी इच्छा वाले लोग हैं. हमें ये बात पचती ही नहीं कि कोई हमारी इच्छा के उलट कैसे हो सकता है. बस इतनी सी बात पर हम कोहली को ट्रोल करने लगते हैं. हर कोई समझता है कि कैसे उनका व्यवहार गरिमाविहीन है. मेरा सीधा सवाल है, मैदान के अंदर कोहली कोई नियम तोड़ रहे हैं? नहीं. फिर क्या दिक्कत है? क्या गरिमामयी व्यक्तित्व हमें मैच जिता सकता है? मैच वो जिताता है जिसके बल्ले से रन निकलें. कोहली के बल्ले से निकल रहे हैं. ICC या BCCI ने उन्हें मैदान के अंदर किसी नियम को तोड़ने का दोषी नहीं माना है. ऐसे में हमें जनताना अदालत बैठाने की जगह उनके खेल के मजे लेने चाहिए. ऑलरेडी 32 के हो चुके कोहली जल्दी ही सचिन की तरह इतिहास बन जाएंगे. ऐसे में वह जब तक हमें मैच जिता रहे हैं, हम लोगों को पूरे दिल से उनका सपोर्ट करना चाहिए.

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