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जब मैच के बीच खाना खाने के लिए लाइन में लग गए पार्थिव पटेल

ये कहानी है स्टार पार्थिव पटेल की सादगी की.

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पार्थिव पटेल. फोटो: Getty Images
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विपिन
10 दिसंबर 2020 (Updated: 9 दिसंबर 2020, 04:13 AM IST)
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साल 2014 तक पार्थिव पटेल का नाम अंजाना नहीं था. 2002 में 17 साल की उम्र में डेब्यू किया. इसके बाद भारत के लिए टेस्ट, वनडे और टी20 हर फॉर्मेट में खेले. 2014 तक आईपीएल में भी लगभग 80 मैच उन्होंने खेले. पार्थिव पटेल भारतीय क्रिकेट का एक जाना माना चेहरा बन चुके थे. लेकिन एक बड़ा नाम होते हुए भी वो 2014 में एक इनविटेशन टूर्नामेंट बुचीबाबू ट्रॉफी में खेलने चले गए. बुचीबाबू ट्रॉफी अच्छा खासा जाना पहचाना टूर्नामेंट है. इस टूर्नामेंट की पहचान तो बहुत है लेकिन इसे फर्स्ट-क्लास दर्जा प्राप्त नहीं है. इस टूर्नामेंट में अकसर वो खिलाड़ी खेलते हैं. जिन्होंने अपनी पहचान बनाने की शुरुआत करनी होती है या फिर स्टेट टीम में जगह बनानी होती है. साल 2014 में इन दोनों में से किसी भी कैटेगिरी में पार्थिव नहीं आते थे. न तो उन्हें अपना नाम बनाना था और ना ही स्टेट टीम में जगह बनानी थी. वो पहले ही भारत के लिए खेल चुके थे, स्टेट के लिए खेलते थे और आईपीएल में भी उनकी अच्छी खास डिमांड थी. parthiv-patel-820 लेकिन गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के निवेदन पर पार्थिव बुचीबाबू ट्रॉफी खेलने के लिए चले गए. टूर्नामेंट के कुछ मुकाबले चेन्नई के मुरुगप्पा क्रिकेट ग्राउंड पर भी खेले जा रहे थे. खिलाड़ियों और पत्रकारों के लिए लंच एक ही जगह पर रखा जाता था. खाना लेने का प्रोसेस ये होता था कि पहले खिलाड़ियों को खाना लेना होता था. उसके बाद पत्रकार जाकर खाना लेते थे. अब हुआ ये कि सभी खिलाड़ी खाना लेकर एक तरफ हो गए तो पत्रकार खाना लेने के लिए बढ़े. खाना खाने वाले इतने लोग थे कि वहां पर एक कतार लग गई. लाइन में पत्रकार खाने के लिए लगे हुए थे कि अचानक से किसी ने देखा कि 6-7 पत्रकारों के पीछे पार्थिव पटेल भी आकर खड़े हैं. तभी एक पत्रकार ने देखा और कहा,
'अरे पार्थिव आप हम लोगों से पीछे लगे हैं, जाइये आप जाकर पहले खाना लीजिए.'
पत्रकार ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि पार्थिव मैच का हिस्सा थे और खिलाड़ी के पास मैच के बीच लंच का एक सीमित समय होता है. लेकिन पत्रकार के कहने पर भी पार्थिव ने उनसे और लाइन में लगे बाकी पत्रकारों से पहले जाकर खाना लेने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा,
'नहीं, आप पहले लीजिए. जैसे मैं अपना काम कर रहा हूं, वैसे ही आप भी अपना काम कर रहे हैं.'
पार्थिव का ये व्यवहार देखे सभी पत्रकार इस बात से काफी प्रभावित हुए. इतना ही नहीं कई पत्रकारों ने तो इसकी चर्चा गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन में भी की. इस दौर में पार्थिव का बल्ला भी खूब अच्छा चल रहा था. बुचीबाबू में वो शानदार शतक ठोक चुके थे. जिसके बाद गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन ने पार्थिव को पूरी तरह से गुजरात टीम का कप्तान नियुक्त कर दिया. साल 1950 से खेल रही गुजरात की टीम ने साल 2016-17 के रणजी ट्रॉफी सीज़न में इतिहास रचा और पार्थिव की कप्तानी में पहली बार रणजी ट्रॉफी भी जीती. उन्होंने मैच में 90 और 143 रनों की पारियां खेली.

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