बीच मैच अंपायर को कहा मूर्ख और चैंपियन बन गया!
क़िस्सा जॉन मैकेनरो के गुस्से का.
ये दुनिया बहुत बड़ी है. और इसमें कई तरीके के लोग रहते हैं. रंग, धर्म से अलग व्यवहार में भी. कुछ खीरे जैसे ठंडे होते हैं, और कुछ मिर्ची जैसे एकदम आग-बबूला. और जब ये वाले लोग मैदान पर उतरते हैं, तब बमुश्किल ही अपने इस व्यवहार को छुपा पाते हैं. और फिर उनके इस व्यवहार की कहानियां प्रचलित होनी शुरू हो जाती हैं.
सभी खेलों में आपको ऐसे कई उदाहरण मिलेंगे. और आज हम उन्हीं में से एक का क़िस्सा सुनाएंगे. ये प्लेयर टेनिस के लेजेंड माने जाते हैं. और इनका नाम है जॉन मैकेनरो. मैदान में इनका व्यवहार काफी हद तक शुरुआती दौर के विराट कोहली जैसा था.
ऑन योर फेस वाला. लेकिन कई दफ़ा मैकेनरो इन हरकतों में विराट से कहीं आगे निकल जाते थे. और इनकी वो मशहूर ‘You can not be serious’ वाली लाइन तो आपने सुनी ही होगी. जब मैदानी अंपायर के फैसले से नाखुश होकर मैकेनरो जोर-जोर से चिल्लाने लगे थे. चलिए इनके जन्मदिन पर हम आपको सिली पॉइंट में इस सुपरब्रैट का एक ऐसा ही क़िस्सा सुनाते हैं.
ये बात साल 1984 की है. नवंबर के महीने में जॉन, स्टॉकहोम ओपन में खेल रहे थे. वो सेमीफाइनल मुकाबले तक पहुंच गए थे. और यहां उनका सामना लोकल बॉय एंडर्स जैरिड से हो रहा था. इस मैच में जॉन एक सेट से पीछे चल रहे थे. लेकिन अगले सेट में उन्होंने वापसी शुरू कर दी थी.
इसी दिशा में जॉन आगे बढ़ रहे थे. लेकिन तभी अंपायर ने जॉन की सर्व को आउट ऑफ लाइन बता दिया. भड़के जॉन ने पलटकर अंपायर लीएफ अके नीलसन को कहा,
‘इस मैच में अभी तक कोई गलती नहीं हुई, राइट? आपने कोई फैसला नहीं बदला. एक भी गलती नहीं. कुछ नहीं.’
इतना सुनने के बाद अंपायर ने उनसे वापस जाकर खेलने को कहा तो जॉन और भड़क गए. इस बार वो बोले,
‘मेरे सवाल का जवाब दो. मेरा सवाल मूर्ख.’
जॉन के गाली देने पर अंपायर ने एक पॉइंट उनके राइवल एंडर्स को दे दिया. इस बात से जॉन और खफ़ा हो गए. गुस्साए जॉन अपनी सीट की तरफ गए. और इस बार गुस्से में अपना टेनिस रैकेट स्पोर्ट्स बैग पर देकर मारा. और साथ में रखी सोडा कैन को भी तोड़-फोड़ दिया. ये देख अंपायर ने एक और पॉइंट एंडर्स को दे दिया.
इस हरकत से और भड़के जॉन ने अंपायर से कहा,
‘हो गया? हम मैच को खत्म क्यों नहीं कर देते? हो गया, ये एक गेम ही तो है.’
जॉन के इस रवैये को देख, मैच देखने बैठी ऑडियंस ने भी उनको डिसक्वॉलिफाई करने की मांग उठा दी. लेकिन किसी तरह मैच फिर शुरू हुआ और जॉन ने अपने जलवे दिखाते हुए इस मैच को अपने नाम किया. वो फाइनल में पहुंचे. और वहां उनका सामना मैट्स विलेंडर से हुआ. जॉन ने ये फाइनल भी जीता.
लेकिन सेमी-फाइनल मुकाबले में हुई इस बहस के लिए जॉन पर 2100 डॉलर का जुर्माना लगा. इसमें एक क्लॉज ऐसा भी था, कि अगर ये जुर्माना हटता तो जॉन को सस्पेंशन का सामना करना पड़ता. अब इसमें एक पेच ये फंस रहा था कि अगर किसी खिलाड़ी पर एक साल में 7500 डॉलर से ज्यादा का जुर्माना लगता है, तो उसे 24 से 42 दिनों के लिए सस्पेंड किया जाता है.
हर केस में जॉन का सस्पेंड होना तय था. और न्यू यॉर्क टाइम्स के मुताबिक, जॉन ने फाइन वाले फैसले के खिलाफ अपील करने का फैसला किया. उन्होंने यह भी कहा कि अंपायर ने जिस तरीके से मैच को हैंडल किया था, उससे वह खुश नहीं थे. इस घटना पर जॉन ने कहा,
‘इम मोमेंट में, मैं मानसिक रूप से थक गया हूं. ये एक कारण है कि मैं अपना गुस्सा काबू नहीं कर पाया.’
जॉन ने मैदान पर पहली बार तो अपना आपा खोया नहीं था. वो पहले भी कई दफ़ा ऐसा कर चुके थे. इस बार उनके गुस्से को देख रहे एंडर्स ने जॉन के बारे में कहा था,
‘मैकेनरो जैसा व्यवहार करने वाले प्लेयर के खिलाफ़ खेलना बहुत मुश्किल होता है.’
जॉन मैकेनरो इसके अलावा भी कई बार ऐसा कर चुके थे. कभी वो मैच देखने आए दर्शकों से भिड़ जाते थे, कभी मैदान पर मौजूद अपने राइवल से. एक बार तो उनको उनके गुस्से के कारण ऑस्ट्रेलियन ओपन से ही बाहर का रास्ता दिखा दिया था. और एक बार उनको ऑल इंग्लैंड लॉन टेनिस क्लब ने मेम्बरशिप देने से इनकार भी कर दिया था.
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