नई पीढ़ी को अपने जैसे संघर्ष से बचाने के लिए सालों खेलता गया ये स्पिनर
सुनील जोशी के बर्थडे पर कर्नाटक क्रिकेट में उनके योगदान की कहानी.

कर्नाटक ने इंडिया को कई दिग्गज क्रिकेटर्स दिए हैं. इन क्रिकेटर्स ने इंडियन क्रिकेट में अपनी अलग पहचान बनाई है. यहां से भारत को कई बल्लेबाज और गेंदबाज मिले. क्रिकेट को कम फॉलो करने वाले भी कर्नाटक से आने वाले राहुल द्रविड़, अनिल कुंबले, जवागल श्रीनाथ और केएल राहुल जैसे तीन-चार नामों को तो जानते ही होंगे. लेकिन यहां से कुछ ऐसे क्रिकेटर्स भी हुए, जिनका इंटरनेशनल करियर बहुत लंबा नहीं रहा. हालांकि इसके बाद भी उन्होंने ऐसे काम किए, जिनके दम पर दुनिया आज भी उन्हें याद रखती है.
और ऐसे ही नामों में से एक हैं टीम इंडिया की सेलेक्शन कमेटी के मेंबर सुनील जोशी. ये कहानी उन्हीं सुनील जोशी की है. जिन्हें हमेशा ये मलाल रहा कि अगर उनके पास कोई सही दिशा दिखाने वाला सीनियर रहा होता, तो उन्हें क्रिकेट की दुनिया में पांच से छह साल पीछे नहीं चलना पड़ता.
राहुल द्रविड़ से उम्र में ढाई साल बड़े सुनील जोशी का फर्स्ट-क्लास डेब्यू, द्रविड़ के फर्स्ट-क्लास डेब्यू से लगभग ढाई साल बाद हुआ. हालांकि इन दोनों कर्नाटक स्टार्स ने इंटरनेशनल डेब्यू एक ही साल में किया. यह साल 1996 था. लेकिन एक तरफ जहां इस डेब्यू के बाद द्रविड़ चलते ही गए, वहां जोशी के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए.
और इन्हीं उतार-चढ़ावों में वो रिकॉर्ड्स भी आते हैं, जो जोशी के नाम के साथ हमेशा जुड़े रहेंगे. पहला साल 2000 में साउथ अफ्रीका के खिलाफ वनडे मैच में छह रन देकर पांच विकेट लेने का. वहीं दूसरा, एक ही टेस्ट में पांच विकेट वाला बेस्ट बोलिंग फिगर और 92 रन का अपना सबसे बड़ा टेस्ट स्कोर.
# Sunil Joshi
लेकिन इन दो पॉज़िटिव बातों के अलावा एक नैगेटिव चीज़ भी जोशी जी के बारे में कही गई. जोशी को लेकर हमेशा कहा गया कि उन्होंने भारतीय टीम से बाहर होने के बाद सालों तक रणजी ट्रॉफी में जूनियर्स का रास्ता रोककर रखा. लेकिन क्या ये सच है? इस पर खुद सुनील जोशी क्या कहते थे? जोशी ने साल 2000 में आखिरी बार भारत के लिए टेस्ट मैच खेला. इसके बाद वो सालों साल डॉमेस्टिक क्रिकेट खेले लेकिन इंडिया की प्लेइंग इलेवन में दोबारा शामिल नहीं हो सके. बस इसी वजह से लोगों ने कहना शुरू कर दिया,
'बस कर ना यार.'
और इसी का जवाब सुनील जोशी ने 2007 में दिया था. जब भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया दौरे पर रवाना होने वाली थी. सुनील जोशी बैंगलोर में नेट्स में प्रैक्टिस कर रहे थे. वहीं उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी. राहुल द्रविड़ की. द्रविड़ ने कहा,
'जो(जोशी), द लोन वॉरियर.'
सुनील जोशी मुस्कुराए और द्रविड़ से कहा,
'नहीं-नहीं ऐसा नहीं है. बस मुझे लगता है कि इस कर्नाटक टीम को अभी मेरी ज़रूरत है.'
जहां लोग उनसे कह रहे थे कि बहुत हुआ जोशी. वहीं राहुल द्रविड़ ने उनसे कहा कि अभी उन्हें कम से कम दो साल और कर्नाटक की इस टीम के लिए खेलना चाहिए. वो उस टीम के लिए क्यों ज़रूरी थे. ये द्रविड़ समझते थे और खुद सुनील जोशी भी. जोशी ने एक बार नेशनल क्रिकेट अकेडमी में ये बात समझाई थी कि आखिर वो क्यों खेले जा रहे हैं.
शायद ही कोई ऐसा खिलाड़ी होगा, जो डॉमेस्टिक क्रिकेट खेलते हुए टीम इंडिया में वापसी की उम्मीद नहीं लगाता होगा. लेकिन जोशी के केस में इस चीज के साथ एक और चीज़ थी जो उन्हें कर्नाटक के लिए खेलने पर मजबूर कर रही थी. जोशी को कर्नाटक टीम में वही स्थिति दिख रही थी, जो 1992 में डेब्यू के वक्त उन्होंने देखी थी. यानी सीनियर्स द्वारा जूनियर्स को एकदम से अकेला छोड़ देना. जोशी कर्नाटक क्रिकेट एसोसिएशन के युवा खिलाड़ियों को मेंटॉर करना चाहते थे. उन्हें सही मार्गदर्शन देना चाहते थे.
वो कभी ये नहीं चाहते थे कि उनके साथ जो हुआ, वो कर्नाटक के लिए खेलने आ रहे युवा खिलाड़ियों के साथ हो. यानी युवा खिलाड़ियों के आने पर सीनियर्स का एकदम से टीम से चले जाना. जैसा जोशी के केस में हुआ था. जब वो टीम में आए तो रघुराम भट्ट और कार्तिक जसवंत जैसे कर्नाटक क्रिकेट के सीनियर्स ने संन्यास का ऐलान कर दिया. जिसके बाद जोशी को क्रिकेट को समझने और खुद को इंटरनेशनल क्रिकेट के लिए तैयार करने में सालों लग गए.
जोशी ने कर्नाटक के कई युवा खिलाड़ियों को मोटिवेट किया. शुरुआती समय में बिशन सिंह बेदी को जो चीज़ सुनील जोशी में दिखती थी. वही चीज़ जोशी युवा लेफ्ट आर्म स्पिनर के.पी. अपन्ना में देखते थे. क्योंकि जोशी जानते थे कि जब मुश्किल वक्त आता है तो आपके पास एक ऐसा दोस्त, आइडल या मेंटॉर होना चाहिए जो आपकी मदद कर सके.
जोशी उन खिलाड़ियों के साथ प्लेइंग इलेवन में खेल रहे थे. इस पर भी लोगों ने कहा कि अगर उन्हें खिलाड़ियों को मेंटॉर करना है तो बाहर से करें. लेकिन जोशी ने अपना ही उदाहरण देकर बताया कि जब वो टीम में जगह बना रहे थे. तो कार्तिक जसवंत और रघुराम भट्ट के साथ उनका कॉम्पटीशन था. तब रघुराम भट्ट ने भी जोशी को लेकर कहा था,
'हां मुझे पता है कि सुनील जोशी उभरता हुआ खिलाड़ी है. लेकिन मेरी जगह लेने के लिए उसे मेरे और क़रीब आना होगा. उन्हें लगातार और हर मैच में परफॉर्म करना होगा.'
जोशी ने भी उन आलोचकों को और खिलाड़ियों से यही कहा कि वो जोशी से बेहतर प्रदर्शन करें और उन्हें टीम से बाहर कर दें.
ये बात बिल्कुल सही थी. क्योंकि सिर्फ उम्र जोशी के खिलाफ थी. लेकिन उनकी गेंदें लगातार बोल रही थी. 2007-08 के रणजी ट्रॉफी सीज़न में उन्होंने 34 विकेट्स निकाले. जो कि छठे सबसे अधिक थे. 2006-07 में उन्होंने प्रज्ञान ओझा के बराबर और अश्विन से सिर्फ दो विकेट्स कम, यानी कुल 29 विकेट्स निकाले.
जोशी ने जैसा कहा, वैसा किया भी. कर्नाटक के लिए खेलते हुए उन्होंने केसी अपन्ना जैसे युवा खिलाड़ी को मेंटॉर भी किया. और उनसे कहा भी कि जिस तरह से उन्होंने मैच्योर होने में 5-6 साल गंवाए. वो नहीं चाहते कि अपन्ना भी अपनी लाइफ के वो अहम साल गंवाए. जोशी भले ही 2000 के बाद फिर कभी भारत के लिए मैदान पर नहीं उतर सके. लेकिन उन्होंने लगातार भारत और कर्नाटक क्रिकेट के लिए अपना योगदान बरकरार रखा है.
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