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पहला इंडियन क्रिकेटर जिसने दुनिया को बैकफुट पर खेलना सिखाया

रणजी ट्रॉफी इन्हीं के नाम होती है जहां शानदार खिलाड़ी तैयार होते हैं. आज ही के दिन पैदा हुए थे.

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10 सितंबर 2017 (Updated: 10 सितंबर 2017, 06:40 AM IST) कॉमेंट्स
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जब गांधीजी पहली बार सन 1889 में पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए थे, उनके पास तीन लोगों का रेफरेंस था. इसमें से एक रेफरेंस रणजीत सिंह के नाम था. भारतीय क्रिकेट इतिहास में ये नाम बड़े अदब से लिया जाता है. भारतीयों में क्रिकेट का जुनून इसी खिलाड़ी ने पैदा किया था. देश के सबसे बड़े फर्स्ट क्लास क्रिकेट टूर्नामेंट ‘रणजी ट्रॉफी’ का नाम इन्हीं के नाम पर रखा गया है. ये पहले ऐसे भारतीय क्रिकेटर थे जो इंग्लैंड की ओर से टेस्ट मैच खेले और पहले ही मैच में सेंचुरी जड़ दी. क्रिकेट में इन्हें 'रणजी' नाम से जाना जाता था. आज इनकी पुण्यतिथि है. हम रणजी की बात उन्हीं के अंदाज़ में करेंगे, टेस्ट क्रिकेट के अंदाज़ में. शुरूआत 'डे वन' सेः

डे वन

रणजी 10 सितम्बर 1872 में गुजरात के काठियावाड़ में पैदा हुए, एक अमीर घराने में. उनकी किस्मत तब और संवर गई जब वहां के शासक ने उन्हें अपना वारिस बना लिया. शासक का नाम था ‘जाम साहिब विभाजि’. बस फिर क्या था, रणजी को इंग्लैंड में पढ़ाई करने का मौका मिल गया. वहां उनके खेल को सुधारने में मदद की सेंट फेथ्स कॉलेज के हेडमास्टर आर एस गुडचाइल्ड ने.

Kumar_Shri_Ranjitsinhji_c1910


रणजी ने स्कूल की पढ़ाई ख़त्म कर केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया. लेकिन उन्हें केम्ब्रिज की टीम में जगह नहीं दी गई. क्योंकि वे एक गुलाम देश से आते थे, भारत से. तब के केम्ब्रिज टीम के कैप्टन एफ.एस. जैक्सन ने भी बाद में ये माना था कि रणजी के टीम में सिलेक्ट न होने के पीछे कारण यही था. खैर, रणजी का बल्ला बोलता रहा और 1893 में लॉर्ड्स में ऑक्सफ़ोर्ड के खिलाफ खेलते हुए उन्हें ‘ब्लू’ अवार्ड दिया गया. ‘ब्लू’ अवॉर्ड केम्ब्रिज और ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी सबसे अच्छे खिलाड़ी को देती हैं.

डे टू

1895 में केम्ब्रिज छोड़ने के बाद रणजी ने ससेक्स की ओर से काउंटी खेलना शुरू किया. पूरे सीज़न में 50.16 की औसत से 1766 रन बनाए. अगले साल भी रणजी ने अपनी फॉर्म बनाए रखी. 1896 के मई में ऑस्ट्रेलिया के उस समय के सबसे ताकतवर तेज़ गेंदबाज़ एरीन जोन्स की उन्होंने खूब धुलाई की. जून महीना आते-आते वे 4 सेंचुरी बना चुके थे. उनकी बेहतरीन फॉर्म को देखते हुए ऐसा लग रहा था कि वो जल्द ही लॉर्ड्स में ओपनर के तौर पर अपना टेस्ट डेब्यू करेंगे.

Ranjitsinh

लेकिन इंग्लैंड की टीम के लिए खिलाड़ी चुनते वक्त एम. सी. सी. के प्रेसिडेंट लॉर्ड हैरिस ने रणजी को टीम में लेने पर ऐतराज़ जताया. हैरिस एम. सी. सी. के प्रेसिडेंट बनने से पहले बॉम्बे (बम्बई) के गवर्नर भी रहे थे. उनका ये कहना था कि रणजी इंग्लैंड में पैदा नहीं हुए हैं और वे एक प्रवासी पक्षी की तरह हैं. इसलिए उन्हें टीम में नहीं लिया जा सकता. साइमन वाइल्ड (जिन्होंने रणजी की बायोग्रफी लिखी) का कहना था कि अगर ऐसा कोई रूल था तो वो हैरिस पर भी लागू होता. हैरिस ने 4 टेस्ट मैच खेले थे और वे खुद वेस्ट इन्डीज़ में पैदा हुए थे. मगर हैरिस की ही चली और रणजी को टीम से ड्राप कर दिया गया.

डे थ्री

लेकिन इस सब के बावजूद रणजी की मेहनत ने रंग लाने में ज़्यादा समय नहीं लिया. दूसरे टेस्ट मैच में हैरिस को किनारे कर लैंकाशायर बोर्ड ने रणजी को टीम में ले लिया. इसके साथ ही रणजी इंग्लैंड के लिए खेलने वाले पहले भारतीय बन गए. ये मैच ओल्ड ट्रेफोर्ड में खेला जाना था. रणजी ने मौके को हाथ से जाने नहीं दिया, और अपने खेल का 'क्लास' सबको दिखा दिया. उन्होंने पहली इनिंग्स में 62 रन बनाए और दूसरी इनिंग्स में 154 पर नॉट आउट रहे. उनके अलावा सिर्फ एक इंग्लिश खिलाड़ी था जो 50 के ऊपर रन बना पाया. मैच ऑस्ट्रेलिया ने जीता लेकिन रणजी ने अपने खेल से सबका दिल जीत लिया. ऑस्ट्रेलिया के महान ऑलराउंडर जॉर्ज ग्रिफ्फिन ने रणजी की पारी को उनकी देखी हुई सबसे बेहतरीन पारी कहा. उन्होंने ये भी कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि रणजी इस युग के क्रिकेट का करिश्मा हैं.

रणजी अपनी बैटिंग टेक्नीक के लिए भी जाने जाते थे. उस समय बल्लेबाज़ फ्रंट-फुट पर ही खेला करते थे. रणजी ने पहल करते हुए फ्रंट-फुट के साथ-साथ बैक-फुट पर खेलना शुरू किया. उन्हें बै्क-फुट पर खेलने में माहिर समझा जाता था.

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ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच 14 दिसम्बर 1897 को खेले गए टेस्ट मैच में रणजी की तबीयत खराब थी. उनके गले में इन्फेक्शन हो गया था. खराब मौसम की वजह से पहले ही मैच 3 दिन लेट था. रणजी ने बीमारी के बावजूद इस मैच में सातवें नंबर पर बैटिंग करते हुए 175 रन बनाए. उनके रनों की वजह से ही इंग्लैंड ने टेस्ट इतिहास में पहली बार 500 से ऊपर रन बनाए.

रणजी ने इंग्लैंड की ओर से कुल 15 टेस्ट मैच खेले. 44.95 की औसत से 989 रन बनाए. इनमें 2 शतक और 6 अर्धशतक शामिल हैं. उन्हें 1897 में ‘विज्‌डन क्रिकेटर ऑफ़ द ईयर’ चुना गया.

डे फोर

टेस्ट के साथ-साथ रणजी ने अपना फर्स्ट क्लास क्रिकेट का सफ़र जारी रखा. उनका फर्स्ट क्लास क्रिकेट रिकार्ड और भी अच्छा है. वे 1899 से 1903 तक ससेक्स के कप्तान भी रहे. उस समय रणजी का नाम ससेक्स की पहचान था. फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 307 मैच में 500 पारियां खेलीं, जिसमें उन्होंने 56.37 की औसत से 24,692 रन बनाए. इनमें 72 शतक और 109 अर्धशतक शामिल हैं. उनका सबसे बड़ा स्कोर 285 रन का था. सन 1900 रणजी के करियर में सबसे ऐतिहासिक था. इसी वर्ष उन्होंने पांच दोहरे शतक और छह शतक बनाए.

रणजी में इंग्लैंड टीम का कप्तान बनने के सभी गुण थे, लेकिन एम. सी. सी. के प्रेसिडेंट लार्ड हैरिस इस के लिए राज़ी नहीं थे. अगर हुनर की बात होती तो रणजी पहले ऐसे भारतीय होते जो इंग्लैंड टीम के कप्तान बनते.

रणजी के भतीजे दुलीप सिंह के नाम भी कई रिकॉर्ड्स हैं, वे भी अपने चाचा की तरह इंग्लैंड के लिए ही खेले. दुलीप ने इंग्लैंड की ओर से 12 टेस्ट मैच खेले. दुलीप सिंह के नाम पर ही ‘दुलीप ट्राफी’ अयोजित कराई जाती है. क्रिकेटर अजय जड़ेजा भी इनके ही खानदान से हैं. जड़ेजा दुलीप सिंह के भाई के पोते हैं.

डे फाइव

सन 1904 में रणजी वापिस इंडिया आ गए. इसके बाद भी 2 साल तक उन्होंने सिर्फ क्रिकेट ही खेला. 10 मार्च, 1907 को वे नवागढ़ के महाराजा बनाए गए. रियासत की ज़िम्मेदारियों की वजह से क्रिकेट से दूरी बढ़ती गईं. फिर भी उन्होंने खेलना जारी रखा. लेकिन चोटों की वजह से वे 1912 का पूरा सीज़न नहीं खेल पाए.


रंजित सिंह (वैनिटी फेयर के अगस्त 1897 अंक से)
रंजित सिंह (वैनिटी फेयर के अगस्त 1897 अंक से)

1915 में यॉर्कशायर में रणजी का एक्सीडेंट हो गया. इसमें उनकी दायीं आंख जाती रही. और इस भारतीय सितारे का फर्स्ट क्लास क्रिकेट करियर ख़त्म हो गया.

रणजी सिंह की आलोचना भी होती रही है. ये कहकर कि इतना महान क्रिकेटर होते हुए भी उन्होंने भारतीय क्रिकेट के लिए कुछ नहीं किया. यहां तक कि वे खुद को भारतीय क्रिकेटर कहलाना तक पसंद नहीं करते थे. वे खुद को इंग्लिश क्रिकेटर ही कहते थे. उन्होंने कभी इंडिया में फर्स्ट क्लास क्रिकेट नहीं खेला. रणजी अपने भतीजे दुलीप सिंह को भी इंग्लैंड की ओर से ही खेलने को कहते रहे. अब ये अनुमान लगाना मुश्किल है कि आज से एक सदी पहले उनका भारतीय क्रिकेट में कितना योगदान रहा होगा. लेकिन ये बात सही है कि सी.के.नायडू जैसे बल्लेबाजों के लिए वे हमेशा प्रेरणास्त्रोत रहे.

1933 में आज ही के दिन रणजी ने अपने जीवन के टेस्ट मैच का आखिरी दिन जिया और इस दुनिया को अलविदा कह दिया. बैक टू पवेलियन. उन्हें दिल की बीमारी थी. रणजी की मौत के 2 साल बाद ही 1935 में पटियाला रियासत के महाराज भूपिंदर सिंह ने रणजीत सिंह के नाम पर ‘रणजी ट्रॉफी’ शुरू की. विसडन ने ठीक ही कहा था “जब भी क्रिकेट के साथ जीनियस शब्द आएगा, तो वो सिर्फ और सिर्फ इस भारतीय बल्लेबाज़ के लिए होगा”.

(*सभी तस्वीरें विकिपीडिया कॉमन्स से)



ये आर्टिकल दी लल्लनटॉप के साथ इंटर्नशिप कर रहे भूपेंद्र ने लिखा है .




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