एक कविता रोज: 'ये शहर है न मुंबई'
आज पढ़िए रूपेश कश्यप की कविता.
फोटो - thelallantop
रुपेश कश्यप का जीवन वृत्त कुछ यूं है. झारखंड में स्कूलिंग. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी और फिर जामिया मिलिया से पढ़ाई की. शुरुआती दौर में टीवी और रेडियो किया. फिर ऐड वर्ल्ड में जम गए. और जमे ही हुए हैं. कविताओं की एक किताब आ चुकी है. हिंद युग्म पब्लिकेशन से. अलगोजा के नाम से. आज आप इनकी एक कविता पढ़िए .
ये शहर है न मुंबई
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ये शहर है न मुंबई
यहां भीड़ बहुत है
इसलिए यहाँ हर एक शख़्स को लगता है
उसकी अपनी एक पहचान हो
इसी पहचान की ख़ातिर
वो भीड़ को चीरता है, उठता, कभी गिरता है
कभी लोकल में, कभी सेडान में
कभी चॉल में, कभी मॉल में
जनता बार से शुरू होकर, टोटोज़ से आगे बढ़कर
फाइवस्टार्स में हंस-हंसकर
पेज 3 में छप-छपकर
वह तरक्की के सर्कल बदल-बदलकर
हर एक नयी भीड़ में खोजाता है
एक दिन भीड़ ही हो जाता है
ये शहर है न मुंबई
हम सब पर यूं ही चुपचाप मुस्कुराता है
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