एक कविता रोज: 'मैं डर रहा था, जिस तरह सब डर रहे थे'
आज पढ़िए श्रीकांत वर्मा की तीन कविताएं.
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3 अप्रैल 2016 (Updated: 6 मई 2016, 11:09 AM IST)
आज पढ़िए श्रीकांत वर्मा की तीन कविताएं.
कलिंग
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केवल अशोक लौट रहा है
और सब
कलिंग का पता पूछ रहे हैं
केवल अशोक सिर झुकाए हुए है
और सब
विजेता की तरह चल रहे हैं
केवल अशोक के कानों में चीख़
गूँज रही है
और सब
हँसते-हँसते दोहरे हो रहे हैं
केवल अशोक ने शस्त्र रख दिये हैं
केवल अशोक
लड़ रहा था.
***
प्रक्रिया
-
मैं क्या कर रहा था
जब
सब जयकार कर रहे थे?
मैं भी जयकार कर रहा था -
डर रहा था
जिस तरह
सब डर रहे थे.
मैं क्या कर रहा था
जब
सब कह रहे थे,
'अजीज मेरा दुश्मन है?'
मैं भी कह रहा था,
'अजीज मेरा दुश्मन है.'
मैं क्या कर रहा था
जब
सब कह रहे थे,
'मुँह मत खोलो?'
मैं भी कह रहा था,
'मुँह मत खोलो
बोला
जैसा सब बोलते हैं.'
खत्म हो चुकी है जयकार,
अजीज मारा जा चुका है,
मुँह बंद हो चुके हैं.
हैरत में सब पूछ रहे हैं,
यह कैसे हुआ?
जिस तरह सब पूछ रहे हैं
उसी तरह मैं भी
यह कैसे हुआ?
***
प्रतीक्षा
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दीख नहीं पड़ते हैं अश्वारोही लेकिन
सुन पड़ती है टाप;
-- झेल रहा हूं शाप.