एक कविता रोज़: मैं नीर भरी दुःख की बदली
परिचय इतना इतिहास यही, उमटी कल थी मिट आज चली.

मैं नीर भरी दुःख की बदली, स्पंदन में चिर निस्पंद बसा, क्रंदन में आहत विश्व हंसा, नयनो में दीपक से जलते, पलकों में निर्झनी मचली, मैं नीर भरी दुःख की बदली !
मेरा पग पग संगीत भरा, श्वांसों में स्वप्न पराग झरा, नभ के नव रंग बुनते दुकूल, छाया में मलय बयार पली, मैं नीर भरी दुःख की बदली !
मैं क्षितिज भृकुटी पर घिर धूमिल, चिंता का भर बनी अविरल, रज कण पर जल कण हो बरसी, नव जीवन अंकुर बन निकली, मैं नीर भरी दुःख की बदली !
पथ न मलिन करते आना पद चिन्ह न दे जाते आना सुधि मेरे आगम की जग में सुख की सिहरन हो अंत खिली, मैं नीर भरी दुःख की बदली !
विस्तृत नभ का कोई कोना मेरा न कभी अपना होना परिचय इतना इतिहास यही उमटी कल थी मिट आज चली, मैं नीर भरी दुःख की बदली !
अब सुनिए प्रतीक्षा पीपी की आवाज में महादेवी वर्मा की ये कविता
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