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एक कविता रोज: 'कविता आदमी की भाषा में जिंदा रहे, बस'

आज पढ़िए कुंवर नारायण की दो कविताएं.

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प्रतीक्षा पीपी
7 अप्रैल 2016 (Updated: 6 मई 2016, 11:07 AM IST)
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कविता -

कविता वक्तव्य नहीं गवाह है कभी हमारे सामने कभी हमसे पहले कभी हमारे बाद कोई चाहे भी तो रोक नहीं सकता भाषा में उसका बयान जिसका पूरा मतलब है सचाई जिसका पूरी कोशिश है बेहतर इंसान उसे कोई हड़बड़ी नहीं कि वह इश्तहारों की तरह चिपके जुलूसों की तरह निकले नारों की तरह लगे और चुनावों की तरह जीते वह आदमी की भाषा में कहीं किसी तरह ज़िन्दा रहे, बस ***

कविता की जरूरत -

बहुत कुछ दे सकती है कविता क्योंकि बहुत कुछ हो सकती है कविता ज़िन्दगी में अगर हम जगह दें उसे जैसे फलों को जगह देते हैं पेड़ जैसे तारों को जगह देती है रात हम बचाये रख सकते हैं उसके लिए अपने अंदर कहीं ऐसा एक कोना जहाँ ज़मीन और आसमान जहाँ आदमी और भगवान के बीच दूरी कम से कम हो. वैसे कोई चाहे तो जी सकता है एक नितांत कवितारहित ज़िन्दगी कर सकता है कवितारहित प्रेम ***

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