'आप सभ्य हैं क्योंकि धान से भरी आपकी कोठी'
एक कविता रोज़ में आज भवानी प्रसाद मिश्र की कविता पढ़िए.
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फोटो - thelallantop
सरल और सहज रहते हुए भवानी बाबू ने अपनी कविता में गहरी और जमीनी सच्चाइयों को बयान किया. देश में गुलामी, तानाशाही और आपातकाल सब कुछ देखने-झेलने वाले भवानी बाबू ‘निराशा में भी सामर्थ्य’ के कवि हैं. कविता-संग्रह ‘बुनी हुई रस्सी’ के लिए साहित्य अकादेमी से सम्मानित भवानी बाबू का यकीन हालात कैसे भी हों, हमेशा जूझते और लिखते रहने में था. एक कविता रोज़ में आज पढ़िए भवानी प्रसाद मिश्र को.
जाहिल मेरे बाने
मैं असभ्य हूं क्योंकि खुले नंगे पांवों चलता हूं मैं असभ्य हूं क्योंकि धूल की गोदी में पलता हूं मैं असभ्य हूं क्योंकि चीरकर धरती धान उगाता हूं मैं असभ्य हूं क्योंकि ढोल पर बहुत ज़ोर से गाता हूं
आप सभ्य हैं क्योंकि हवा में उड़ जाते हैं ऊपर आप सभ्य हैं क्योंकि आग बरसा देते हैं भू पर आप सभ्य हैं क्योंकि धान से भरी आपकी कोठी आप सभ्य हैं क्योंकि ज़ोर से पढ़ पाते हैं पोथी आप सभ्य हैं क्योंकि आपके कपड़े स्वयं बने हैं आप सभ्य हैं क्योंकि जबड़े ख़ून सने हैं
आप बड़े चिंतित हैं मेरे पिछड़ेपन के मारे आप सोचते हैं कि सीखता यह भी ढंग हमारे मैं उतारना नहीं चाहता जाहिल अपने बाने धोती-कुरता बहुत ज़ोर से लिपटाए हूं याने!
विडियो- एक कविता रोज: जब वहां नहीं रहता

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