एक कविता रोज: रमाशंकर यादव विद्रोही की 'औरतें'
आज आप विद्रोही की कविता पढ़िए जो आखिर तक चीखने लगती है. बिना आवाज ऊंची किए.
फोटो - thelallantop
जेएनयू एक तिलिस्म की तरह है. और विद्रोही इसका वो अय्यार, जो कभी झाड़ी बन जाता है, तो कभी पोस्टर. कभी नारा बन जाता है, तो कभी पत्थर.मगर ये सब लिखना. शब्दों का शातिरपना है. बात खुरदुरी हो. तो भली है.विद्रोही खरा आदमी था. 'जल जंगल जमीन और मानूष' का कवि था. औरतों-दलितों-किसानों का कवि था. कविता 'कहता' था. 'लिखता' नहीं था. ये जो 'कहने' में टटकापन है. वो 'लिखने' की कतर ब्यौंत से मुक्त है. ये बनैले पशु की गुर्राहट सा है. ये आवाज है. पालतूपन के खिलाफ.आज आप रमाशंकर यादव उर्फ विद्रोही की कविता पढ़िए. औरतें. ये आखिर तक चीखने लगती है. बिना आवाज ऊंची किए.शायद इसी वजह से कहा गया है. कि कवि अमर है.विद्रोही की देह अब नहीं है. मगर श्रुति, शब्द और संकल्प, जिन्हें वह देह दे गया. अमरौती पा चुके हैं. उन्हें प्रणाम.
औरतें
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कुछ औरतों ने अपनी इच्छा से कूदकर जान दी थीऐसा पुलिस के रिकॉर्ड में दर्ज हैऔर कुछ औरतें अपनी इच्छा से चिता में जलकर मरी थींऐसा धर्म की किताबों में लिखा हुआ हैमैं कवि हूँ, कर्त्ता हूँक्या जल्दी हैमैं एक दिन पुलिस और पुरोहित दोनों को एक साथऔरतों की अदालत में तलब करूँगाऔर बीच की सारी अदालतों को मंसूख कर दूँगामैं उन दावों को भी मंसूख कर दूंगाजो श्रीमानों ने औरतों और बच्चों के खिलाफ पेश किए हैंमैं उन डिक्रियों को भी निरस्त कर दूंगाजिन्हें लेकर फ़ौजें और तुलबा चलते हैंमैं उन वसीयतों को खारिज कर दूंगाजो दुर्बलों ने भुजबलों के नाम की होंगी.मैं उन औरतों कोजो अपनी इच्छा से कुएं में कूदकर और चिता में जलकर मरी हैंफिर से ज़िंदा करूँगा और उनके बयानातदोबारा कलमबंद करूँगाकि कहीं कुछ छूट तो नहीं गया?कहीं कुछ बाक़ी तो नहीं रह गया?कि कहीं कोई भूल तो नहीं हुई?क्योंकि मैं उस औरत के बारे में जानता हूँजो अपने सात बित्ते की देह को एक बित्ते के आंगन मेंता-जिंदगी समोए रही और कभी बाहर झाँका तक नहींऔर जब बाहर निकली तो वह कहीं उसकी लाश निकलीजो खुले में पसर गयी है माँ मेदिनी की तरहऔरत की लाश धरती माता की तरह होती हैजो खुले में फैल जाती है थानों से लेकर अदालतों तकमैं देख रहा हूँ कि जुल्म के सारे सबूतों को मिटाया जा रहा हैचंदन चर्चित मस्तक को उठाए हुए पुरोहित और तमगों से लैससीना फुलाए हुए सिपाही महाराज की जय बोल रहे हैं.वे महाराज जो मर चुके हैंमहारानियाँ जो अपने सती होने का इंतजाम कर रही हैंऔर जब महारानियाँ नहीं रहेंगी तो नौकरानियां क्या करेंगी?इसलिए वे भी तैयारियाँ कर रही हैं.मुझे महारानियों से ज़्यादा चिंता नौकरानियों की होती हैजिनके पति ज़िंदा हैं और रो रहे हैंकितना ख़राब लगता है एक औरत को अपने रोते हुए पति को छोड़कर मरनाजबकि मर्दों को रोती हुई स्त्री को मारना भी बुरा नहीं लगताऔरतें रोती जाती हैं, मरद मारते जाते हैंऔरतें रोती हैं, मरद और मारते हैंऔरतें ख़ूब ज़ोर से रोती हैंमरद इतनी जोर से मारते हैं कि वे मर जाती हैंइतिहास में वह पहली औरत कौन थी जिसे सबसे पहले जलाया गया?मैं नहीं जानतालेकिन जो भी रही हो मेरी माँ रही होगी,मेरी चिंता यह है कि भविष्य में वह आखिरी स्त्री कौन होगीजिसे सबसे अंत में जलाया जाएगा?मैं नहीं जानतालेकिन जो भी होगी मेरी बेटी होगीऔर यह मैं नहीं होने दूँगा.
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