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एक कविता रोज़: इन बेहद उत्तेजक दिनों में संगीत मुझ पर चोट करता है

आज एक कविता रोज़ में पढ़िए अब्दुल रहमान रचित 'संदेश रासक' के बारे में.

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अविनाश
5 फ़रवरी 2017 (Updated: 5 फ़रवरी 2017, 08:14 AM IST)
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प्रिय पाठको, आज एक कविता रोज़ में बातें अब्दुल रहमान के रासो काव्य ‘संदेश रासक’ की. यह संयोग है कि अब्दुल रहमान के बारे में जानकारी कम मिलती है, उनके ‘संदेश रासक’ के बारे में ज्यादा. कहते हैं कि अपभ्रंश यानी पुरानी वाली हिंदी में लिखी यह रचना मुल्तान इलाके से संबंधित है जो इन दिनों पाकिस्तान में है. यों भी माना जाता है कि तब जब की यह रचना है मुल्तान से मतलब ‘मूल स्थान’ रहा होगा. ‘संदेश रासक’ में 223 पद-छंद हैं. इनमें विप्रलंभ श्रृंगार रस को महसूस किया जा सकता है. अब आप पूछेंगे कि यह विप्रलंभ श्रृंगार रस क्या होता है तो बताते चलते हैं कि जब प्रेम बहुत बढ़ जाए, लेकिन अपने प्रिय को पा न पाए, तब इसे विप्रलंभ श्रृंगार रस कहते हैं. ‘संदेश रासक’ में कुछ इस प्रकार के ही रस से पीड़ित एक प्रिया अपने प्रियतम को संदेश भेजने के लिए बहुत बेचैन है. इस बेचैनी के बीच में एक राहगीर आ जाता है और यह प्रिया अपनी तकलीफ उसे सुनाने लगती है. राहगीर उससे पूछता है कि उसका प्रियतम किस मौसम में गया है तो वह इसके जवाब में गर्मी से शुरू कर सारे मौसमों में उसे हुए कष्ट सुनाने लगती है.इस रचना का अंत तब सुखांत हो जाता है, जब इस वर्णन के खत्म होते ही राहगीर जाता है और प्रियतम वापस आता है. ‘संदेश रासक’ के छंदों की तुलना उन मुक्त मोतियों से की जाती है जो एक धागे में पिरो दिए जाएं तो गले की शोभा बन जाते हैं और अगर बिखर जाएं तो भी सुंदर और कीमती बने ही रहते हैं.आम भाषा में कहें तो सोने से कम नहीं और खो जाएं तो गम नहीं... इन्हें पाकर कोई भी खुश रहेगा. *
अब पढ़िए ‘संदेश रासक’ में आए वसंत-वर्णन वाले ये कुछ छंद :rasak अर्थात् : जंगल में पत्तों को जला कर सर्द मौसम चला गया गया है. अब वसंत का सुंदर मौसम सामने है. मन में प्यार वाली हवाएं बराबर चल रही हैं. ये हवाएं वियोगियों को भी लगेंगी ही. वसंत देह में संकोच और मन में सुख पैदा करता है. सब तरफ प्यार ही प्यार है. फूल अलग-अलग रंग के हो गए हैं. झीलें सुंदर लगने लगी हैं. स्त्रियां खूब सज कर अपनी सहेलियों के साथ गीत गा रही हैं. rasak 2 अर्थात् : इन बेहद उत्तेजक दिनों में संगीत मुझ पर चोट करता है. हे राहगीर! मैं बहुत दुखी हूं. विरह में जल रही हूं. मैंने अब तक जो कुछ भी कहा है उसमें से कठोरता को हटा कर तुम मेरी बात आगे बढ़ाना. बाद इसके राहगीर जाता है और दक्षिण दिशा की तरफ से प्रिया का प्रियतम आता दिखाई देता है. वह बहुत खुश हो जाती है. वसंत उसे भी अच्छा लगने लगता है. इस प्रकार आरंभ और अंत सबकी जय-जय होती है और सब यह गाने-गुनगुनाने लगते हैं : https://www.youtube.com/watch?v=jyRdXrokvVM *** इनके बारे में भी पढ़ें :

कालिदासराजशेखरभर्तृहरिसरहपा

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