एक कविता रोज: दूध का दांत आधा तुड़वाए, आधा बचाए, बच्चा
एक कविता रोज में आज पढ़िए अंकित दुबे की कविता.
Advertisement

फोटो - thelallantop
अंकित दुबे जेएनयू में हिंदी से एम. ए. कर रहे हैं. फक्कड़ हैं. मन लगा तो जम गए. मन हटा तो उखड़ गए. संवेदनशील हैं. कविताएं लिखते हैं. आज 'एक कविता रोज' में पढ़िए भारत में गरीबी के बचपन पर असर को दिखाती उनकी ये दिल छू लेने वाली कविता -गुलाम भारत नहींइलाहबाद का पथ भी नहीं और ना हीं महाकवि निराला हैं न प्रौढ़ महिला है और ना हीं हथौड़ा पास में तरुमालिका अट्टालिका भी नहीं
तो क्या है ?ऑड-इवन और विकास पर्व वालीआज की आज़ाद दिल्ली हैकहीं पहुँचने की बेताबी में मैं हूँ औरदो जून की गर्म साँझ हैनन्हा सा एक दरख़्त हैऔर बग़ल में डीडीए केकम ऊँचे फ्लैट्ससामने कुछ दूधिया दाने वालेभुट्टे हैंऔर दूध का दाँत आधा तुड़वाएआधा बचाएबच्चा है जो दो जून की रोटी ख़ातिरबेजान स्याह टुकड़ों मेंफूँक मारता हैजान फूँकता है
अगर आप भी कविता/कहानी लिखते हैं, और चाहते हैं हम उसे छापें, तो अपनी कविता/कहानी टाइप करिए, और फटाफट भेज दीजिए lallantopmail@gmail.com पर. हमें पसंद आई, तो छापेंगे.और हां, और कविताएं पढ़ने के लिए नीचे बने ‘एक कविता रोज़’ टैग पर क्लिक करिए.

.webp?width=60)

