The Lallantop
Advertisement

CWG 2022 में भारत को मेडल दिलाने वाली बॉक्सर जैसमिन लैंबोरिया की कहानी

जैसमिन ने शुरुआती सालों में लड़कों के साथ ही ट्रेनिंग की क्योंकि और कोई महिला बॉक्सर नहीं थी

Advertisement
jasmine lamboriya
(फोटो - ट्विटर)
font-size
Small
Medium
Large
6 अगस्त 2022 (Updated: 6 अगस्त 2022, 03:18 IST)
Updated: 6 अगस्त 2022 03:18 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

बर्मिंघम में चल रहे कॉमनवेल्थ खेलों (Commonwealth Games) में भारत की बॉक्सर जैसमिन लैंबोरिया ने 60 किलोग्राम वर्ग में ब्रॉन्ज़ मेडल जीत लिया है. ये Jasmine Lamboria का पहला कॉमनवेल्थ गेम्स मेडल है. इससे पहले वो एशियन गेम्स में कांस्य पदक जीत चुकी हैं. चलिए जानते हैं क्या है जैसमिन की कहानी, जिन्होंने कॉमनवेल्थ गेम्स में मेडल जीतकर देश का मान बढ़ाया है.

अब्बा नहीं मान रहे थे

जन्म 30 अगस्त, 2001 को हुआ. हरियाणा के भिवानी में. पिता जयवीर लंबोरिया होमगार्ड के रूप में काम करते हैं और मां जोगिंदर कौर गृहिणी हैं. जैसमिन के चाचा संदीप और परविंदर, दोनों ही बॉक्सर हैं. कुछ रिश्तेदार कुश्ती भी करते थे. भिवानी को 'लिटल क्यूबा' भी कहते हैं, क्योंकि हरियाणा के इस शहर ने भारत को एक से एक बॉक्सर दिए हैं. अमूमन खिलाड़ियों के परिवार और ऐसे किसी शहर में पैदा होने का मतलब होता है कि खेल वाला माहौल होगा. सभी को खेलने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, लेकिन जैसमिन के केस में ऐसा नहीं हुआ.

घर में खेल का माहौल था, तो जैसमिन को शुरू से ही एथलेटिक्स और क्रिकेट में इंट्रेस्ट आ गया. जब उसने बॉक्सिंग में आगे जाने का फ़ैसला किया तो पिता ने घर के बड़ों और समाज का हवाला दे कर मना कर दिया. पिता ने कहा, 'कोई और खेल चुन लो!' लेकिन जैसमिन मानी नहीं. ऐसे में जैसमिन ने अपने चाचाओं से बात की. दोनों ने जैसमिन के पिता को मनाया.

फिर जैसमिन के चाचा संदीप उन्हें ट्रेनिंग के लिए भिवानी से बाहर ले गए. झोल ये था कि जैसमिन के साथ ट्रेन करने के लिए कोई महिला बॉक्सर नहीं मिलीं. ऐसे में संदीप जैसमिन को वापस ले आए और लैम्बोरिया बॉक्सिंग अकादमी जॉइन करवा दी. लेकिन यहां भी झोल वही था. सभी खिलाड़ी लड़के थे. फिर जैसमिन ने लड़कों के साथ ही ट्रेनिंग शुरू कर दी. एक इंटरव्यू में जैसमिन ने बताया कि शुरुआती 2-3 साल वो लड़कों के सामने बहुत मुश्किल से ही टिक पाती थीं, लेकिन भारी मुक्कों को झेलते हुए उनका डिफेंस काफ़ी मज़बूत हो गया. धीरे-धीरे अटैक भी अच्छा होता गया और कुछ दिनों में लेवल-प्लेयिंग फ़ील्ड पर आ गईं. फिर वो क्लीशे लाइन हैं न, जैसमिन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

बैग्राउंड में 'दंगल' फ़िल्म का 'धाकड़' बजता रहा और जैसमिन एक के बाद एक टूर्नामेंट जीतती गईं. असल कमाल किया उन्होंने साल 2019 में. जैसमिन 18 साल की एक रूकी थीं. कई लोकल चैंपियनशिप्स जीती थीं, लेकिन किसी जाबड़ खिलाड़ी से पाला नहीं पड़ा था. इस बार सामने थीं एशियन चैंपियनशीप में ब्रॉन्ज़़ जीतने वाली मनीषा मोउन. इस मुक़ाबले में जैसमिन ने मनीषा को हरा दिया. ये वो वाली जीत थी जिसका अंदाज़ा किसी ने नहीं लगाया था. फिर उसी साल मई में IBA वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए हुए ट्रायल में जैसमिन ने पूर्व विश्व चैंपियनशिप की ब्रॉन्ज़ मेडलिस्ट सिमरनजीत कौर को मात दे दी. कुछ ही टाइम में दो बढ़िया खिलाड़ियों को हराने की वजह से जैसमिन का ठीक-ठाक नाम हो गया.

इन-फ़ैक्ट कॉमनवेल्थ गेम्स के क्वॉलिफिकेशन में जैसमिन ने एक बार फिर सिमरनजीत को हराया था.

भारत को बॉक्सिंग में पहला ओलम्पिक्स मेडल दिलाने वाले विजेंद्र सिंह भी जैसमिन के शहर  से ही हैं

जैसमिन के कोच भास्कर भट्ट कहते हैं,

"जैसमिन एक दृढ़ बॉक्सर है. अगर वो अपना टारगेट सेट कर ले, तो हर तरह के डिस्ट्रैक्शन को तज कर उसके पीछे पड़ जाती है. उसको बॉक्सिंग के अलावा किसी चीज़ से कोई मतलब ही नहीं है."

जाते-जाते एक ट्रिविया और जान लीजिए. सीनियर लेवल के शुरुआती दिनों में जैसमिन 57 किलो वेट कैटेगरी में खेलती थीं. इस कैटेगरी में उन्होंने कई पदक भी जीते. जैसे, स्पेन में सिल्वर मेडल और पिछले साल दुबई में हुए एशियन बॉक्सिंग चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज़़ मेडल. लेकिन फिर उन्हें कोविड हो गया, जिसकी वजह से वो कमजोर हो गईं. और, रिकवरी के दौरान उनका वेट 63 किलो हो गया. तो अब वो 60 किलो वेट कैटेगरी में खेलती हैं. 

भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने कनाडा से ये कौन सा बदला निकाला है?

thumbnail

Advertisement

election-iconचुनाव यात्रा
और देखे

Advertisement

Advertisement

Advertisement