बार-बार बीमार पड़ना, दर्द? मतलब आप में खून की कमी है
सिकल सेल एनीमिया एक ऐसी बीमारी है जिसमें रेड ब्लड सेल यानी RBC में डिफेक्ट होता है.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
'आप एनीमिक हैं'. हो सकता है आपके डॉक्टर ने कभी न कभी आपसे ये कहा हो. हिंदुस्तान में एनीमिया एक बहुत ही आम कंडीशन है. आम भाषा में इसे कहते हैं खून की कमी. दरअसल ये खून की कमी नहीं होती है. ये खून में पाए जाने वाले रेड ब्लड सेल्स यानी RBC की कमी होती है. ये तो हुई बात एनीमिया की. एक और कंडीशन होती है जिसे कहते हैं सिकल सेल एनीमिया. ये एक तरह का एनीमिया है, जिसमें रेड ब्लड सेल्स दराती का शेप ले लेते हैं. महाराष्ट्रा, ओडिशा और मध्य प्रदेश में सबसे ज़्यादा इसके केसेज पाए जाते हैं.
इंडिया की तीन प्रतिशत आदिवासी जनता इससे पीड़ित है और 23 प्रतिशत इस कंडीशन की कैरियर है. यानी उनके बच्चों को ये बीमारी हो सकती है. अव्वल तो सिकल सेल एनीमिया एक ऐसी बीमारी है, जिसका पता पैदा होने से पहले ही चल जाता है. पर ज़्यादातर लोगों को ये बात पता नहीं है. इसलिए वो इसका टेस्ट भी नहीं करवाते. खैर, इलाज से पहले डॉक्टर्स से जान लेते हैं सिकल सेल एनीमिया क्या होता है और किन लोगों को हो सकता है.
सिकल सेल एनीमिया क्या होता है?ये हमें बताया डॉक्टर आरुषि अग्रवाल ने.

-सिकल सेल एनीमिया एक ऐसी बीमारी है जिसमें रेड ब्लड सेल यानी RBC में डिफेक्ट होता है.
-नॉर्मल रेड ब्लड सेल बहुत ही आराम से ब्लड वेसेल में बह सकता है.
-लेकिन सिकल सेल एनीमिया में जब ये रेड ब्लड सेल किसी ब्लड वेसेल से निकलता है, ख़ासतौर पर कोई छोटी ब्लड वेसेल से.
-जैसे कैपिलरी तो वहां पर ऑक्सीजन की मात्रा कम होने के कारण ये अपना आकार बदल लेता है.
-ये सिकल यानी दराती का आकार ले लेता है.
-जिसके कारण ये वहां फंस जाता है.
-फिर उस ब्लड वेसेल को ब्लॉक कर देता है.
-इसके कारण सिकल सेल एनीमिया के लक्षण दिखने लगते हैं.
कारण-सिकल सेल एनीमिया एक जेनेटिक डिसऑर्डर है.
-यानी DNA में म्यूटेशन हो जाता है.
-हीमोग्लोबिन दो प्रोटीन से बना होता है.
-अल्फ़ा और बीटा चेन्स.
-बीटा प्रोटीन चेन्स में अगर म्यूटेशन हो जाए तो इसके कारण सिकल हीमोग्लोबिन बन जाता है.
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-अगर माता-पिता दोनों में सिकल कैरियर हों तो 25 प्रतिशत चांस हैं कि बच्चा सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित होगा.
-ये कैरियर दुनिया में सबसे ज़्यादा अफ़्रीका में पाए जाते हैं.
-लेकिन और भी देशों में ये मिलते हैं.
-इंडिया में सिकल सेल एनीमिया के केसेज सबसे ज़्यादा महाराष्ट्रा और ओडिशा में हैं.
लक्षण-सबसे आम लक्षण है दर्द.
-ये दर्द हाथों, पैरों की हड्डियों में होता है.
-जोड़ों में दर्द होता है.
-रीढ़ की हड्डी में दर्द हो सकता है.
-यहां तक कि 6 महीने के बच्चे में भी हाथ-पैरों में दर्द हो सकता है, सूजन के साथ.
-इसके अलावा आम लक्षण है एनीमिया.
-इसमें हीमोग्लोबिन कम होता है.
-सिकल सेल एनीमिया में हीमोग्लोबिन 10 से कम ही रहता है.
-लेकिन कभी-कभी ये हीमोग्लोबिन बहुत ज़्यादा भी गिर सकता है.
-जिससे जान को ख़तरा हो सकता है.
-तीसरा सबसे आम लक्षण है इन्फेक्शन.
-सिकल सेल एनीमिया के मरीज़ बार-बार बीमार पड़ते रहते हैं.
-जिसकी वजह से उन्हें अस्पताल में भर्ती होने की ज़रुरत पड़ सकती है.

-ऐसे मरीजों में हेल्थ रिस्क काफ़ी रहते हैं.
हेल्थ रिस्क-चेस्ट इन्फेक्शन के कारण निमोनिया हो जाता है.
-पेशाब के इन्फेक्शन के कारण किडनियां ख़राब हो जाती हैं.
-आंखें ख़राब हो सकती हैं.
-रेटिनोपैथी हो जाती है.
-स्ट्रोक पड़ सकता है.
-जिससे पैरालिसिस हो जाता है.
-आगे चलकर पैरों में अल्सर बन सकते हैं.
-या हार्ट भी फ़ेल हो सकता है.
-ये सारी बीमारियां आगे जाकर जानलेवा साबित हो सकती हैं.
बचाव-सिकल सेल एनीमिया से बचाव संभव है.
-शादी से पहले अपने पार्टनर की मेडिकल हिस्ट्री पता करिए.
-पता करिए कि उन्हें सिकल सेल एनीमिया या उसके लक्षण तो नहीं.
-ख़ासतौर पर उन लोगों में जो सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित जगहों से आते हैं.
-जैसे महाराष्ट्रा और ओडिशा.
-सिकल सेल एनीमिया है या नहीं, ये पता करने के लिए एक सिंपल सा ब्लड टेस्ट होता है.
-हीमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफोरेसिस टेस्ट.
-इससे पता चल जाता है कि इंसान सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित तो नहीं.

-बच्चा पैदा करने से पहले भी मां-बाप हीमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफोरेसिस टेस्ट करवा सकते हैं.
-लेकिन अगर प्रेग्नेंसी हो चुकी है तो प्रेग्नेंसी के बीच में एंटी-नेटल टेस्टिंग करवा सकते हैं.
-जैसे कोरियोनिक विलस सैंपलिंग या एमनियोसेंटेसिस.
-ये दोनों की बहुत सेफ़ टेस्ट होते हैं, जिनसे बच्चे को कोई ख़तरा नहीं होता.
-इन टेस्ट से पता चल जाता है कि आगे जाकर बच्चा सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित होगा या नहीं.
इलाज-इलाज को दो भांगो में बांट सकते हैं.
-एक होता है सपोर्टिव दूसरा होता है क्यूरेटिव.
-सपोर्टिव इलाज का मतलब है कि ऐसे मरीज़ों में बार-बार खून चढ़ाने की ज़रुरत पड़ती है.
-क्योंकि इस बीमारी में बहुत ज़्यादा दर्द होता है.
-ऐसे मरीज़ों को बहुत ज़्यादा स्ट्रॉग पेन किलर देने की ज़रुरत पड़ती है.
-साथ ही ऐसे पेशेंट्स में इन्फेक्शन होना बहुत आम है.
-इसलिए इन मरीज़ों को इंजेक्शन के द्वारा एंटीबायोटिक दी जाती हैं.
-जिसके लिए बार-बार अस्पताल में एडमिट भी होना पड़ सकता है.
-पक्का इलाज इसका अभी तक एक ही है, जो है बोन मैरो ट्रांसप्लांट.
- बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए डोनर की ज़रुरत पड़ती है.
-डोनर का DNA मैच करके देखा जाता है कि वो डोनेट करने के लिए कितना सूटेबल है.

-अगर फ़ुल मैच है तो काफ़ी अच्छे चांसेस होते हैं.
-अगर आप किसी अच्छे सेंटर पर जाएं तो 80-90 प्रतिशत चांस है कि सिकल सेल एनीमिया पूरी तरह से ठीक हो जाएगा.
-आगे जाकर बच्चा बिलकुल नॉर्मल ज़िंदगी जी सकता है.
-लेकिन अगर पूरा मैच नहीं है तो भी काफ़ी अच्छे चांसेस होते हैं कि इलाज पूरी तरह हो जाएगा.
-डरे नहीं लेकिन जागरूकता होना ज़रूरी है.
सिकल सेल एनीमिया क्या होता है, ये तो आपको समझ में आ गया होगा. सबसे ज़रूरी बात ये है कि इसका पता पहले ही लग सकता है, अगर आप एक सिंपल सा टेस्ट करवा लें तो. जहां तक रही बात इलाज की तो बोन मैरो ट्रांसप्लांट के ज़रिए इसका इलाज हो सकता है.
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