रेप के कारण हर साल इतनी महिलाएं हो जाती हैं प्रेगनेंट, UN ने दिए डराने वाले आंकड़े
दुनिया में 7 में से 1 व्यक्ति हिंदुस्तानी है. इसी अनुपात के हिसाब से दुनिया में सात में से एक अनचाही प्रेगनेंसी का मामला भारत का है. अलग-अलग रिसर्च से पता चलता है कि अनचाही प्रेगनेंसी की वजह से भारत में मैटरनल मैटर्निटी रेट में बढ़ोतरी हुई है.

UN की एक रिपोर्ट आई है. स्टेट ऑफ़ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट. टाइटल है 'Seeing the unseen: The case for action in the neglected crisis of unintended pregnencies.' ये रिपोर्ट दुनिया के एक बहुत गंभीर और उपेक्षित संकट के बारे में है. Unintended pregnencies यानी वैसी प्रेगनेंसीज़ जिसे प्लान ना किया हो, अनचाही हो. इस रिपोर्ट में ऐसी बातें हैं, जो चौंकाती हैं और चिंता में भी डालती हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में लगभग आधी प्रेगनेंसीज़ अनचाही होती हैं. 48% प्रेगनेंसीज़. 12.1 करोड़.
Report में और क्या है?अनाचाही प्रेगनेंसी की समस्याएं- अनचाही प्रेगनेंसीज़ में बढ़ोतरी. 2015 और 2019 के बीच हर साल वैश्विक स्तर पर लगभग 10 से 12 करोड़ अनचाही प्रेगनेंसीज़ रिकॉर्ड की गई हैं.
- सेफ और मॉडर्न कॉन्ट्रासेप्टिव मेथड्स की सीमित पहुंच. वैश्विक स्तर पर करीब 25.7 करोड़ महिलाएं जो प्रेगनेंसी से बचना चाहती हैं, वो सुरक्षित, आधुनिक कॉन्ट्रासेप्टिव मेथड्स का उपयोग नहीं करती हैं.
- बलात्कार से संबंधित प्रेगनेंसी में बढ़ोतरी. लगभग एक-चौथाई महिलाएं सेक्स को ना कहने में असमर्थ हैं. जिन महिलाओं ने अपने पार्टनर से सेक्शुअल हिंसा को फेस किया है, वो कॉन्ट्रासेप्टिव्स का इस्तेमाल 53 फीसदी कम करती हैं.
- कन्सेनशुअल सेक्स से होने वाली प्रेगनेंसीज़ के मुकाबले रेप के कारण हुई प्रेगनेंसी ज़्यादा होने की आशंका है.
- अनचाही प्रेगनेंसीज़ के 60 फीसदी मामलों से ज़्यादा और टोटल प्रेगनेंसीज़ में से 30 प्रतिशत से ज़्यादा का अबॉर्शन हो जाता है. और दुनिया भर में किए गए अबॉर्शन में से 45 फीसदी असुरक्षित हैं.
- मानवीय संकट के दौरान कई महिलाएं कॉन्ट्रासेप्टिव्स को ऐक्सेस नहीं कर पातीं और कुछ को सेक्शुअल वायलेंस का अनुभव करना पड़ता है, जैसे यूक्रेन में चल रहा युद्ध.
- कोरोना का भी बड़ा इम्पैक्ट पड़ा है. कॉन्ट्रासेप्टिव की सप्लाई और सर्विसेज़ की 'मिस-फंक्शनिंग' की वजह से 14 लाख अनचाही प्रेगनेंसीज़ हुई हैं.
अब यह तो बात हुई कि रिपोर्ट में निकला क्या-क्या. इसके बाद रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अनचाही प्रेगनेंसीज़ की वजहें क्या हैं?
मुख्य कारणों में जेंडर असमानता, सेक्सुअल और रिप्रोडक्टिव हेल्थ की कम जानकारी, सेक्शुअल वायलेंस, कांट्रेसेप्टिव्स के अनुचित तरीक़े. इसके अलावा हेल्थ सर्विसेज़ में जजमेंटल एटीट्यूड और शेमिंग को भी एक फैक्टर माना गया है.
रिपोर्ट में अनचाही प्रेगनेंसीज़ के हेल्थ प्रॉब्लम्स पर भी ज़ोर दिया गया है. अनचाही प्रेगनेंसी स्वास्थ्य के कई जोखिम पैदा कर सकती है, जिससे मां और बच्चे दोनों प्रभावित हो सकते हैं. मां को पोस्ट पार्टम डिप्रेशन और मेंटल हेल्थ इशूज़ डेवेलप हो सकते हैं. बच्चे का जीवन भी प्रभावित होता है. बच्चे की शिक्षा, सामाजिक और भावनात्मक विकास पर असर पड़ता है. मैक्रो लेवल पर, समय से पहले बर्थ रेट में बढ़ोतरी डेमोग्रैफी और अर्थव्यवस्था पर सीधा असर डालती है.
रिपोर्ट में India के लिए क्या है?दुनिया में 7 में से 1 व्यक्ति हिंदुस्तानी है. इसी अनुपात के हिसाब से दुनिया में सात में से एक अनचाही प्रेगनेंसी का मामला भारत का है. अलग-अलग रिसर्च से पता चलता है कि अनचाही प्रेगनेंसी की वजह से भारत में मैटरनल मैटर्निटी रेट में बढ़ोतरी हुई है. राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, ओडिशा और असम में MMR की स्थिति बहुत ख़राब है. बहुत ख़राब मतलब प्रति 1,00,000 जन्मे बच्चों पर 130 या 130 से ज़्यादा मांओ की मौत.
रिपोर्ट में फैमिली प्लानिंग और कॉन्ट्रासेप्टिव्स के सिस्टम में बेहतरी करने को भारत की फ़र्स्ट प्राइरॉरिटी के रूप में सुझाया है.
सोचिए! सोचने वाला मसला हैइस रिपोर्ट में पर्टिकुलर केस स्टडी के सुझाव भी हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि पॉलिसी-मेकर्स को यह सुनिश्चित करना होगा कि हेल्थ केयर सिस्टम में कॉन्ट्रासेप्टिव की पहुंच, स्वीकार्यता, क्वॉलिटी और विविधता को बढ़ाया जाए. रीप्रोडक्टिव हेल्थ की अवेयरनेस बढ़े. लड़कियों को सेक्स, कॉन्ट्रासेप्टिव और मदरहुड के बारे में सकारात्मक फैसले लेने का अधिकार दिया जाए.
UN Population Fund की कार्यकारी निदेशक डॉ नतालिया कनेम ने कहा,
"यह रिपोर्ट एक वेकअप कॉल है. अनचाही प्रेगनेंसी के ये नंबर्स महिलाओं के बेसिक राइट्स को बचाए रखने में हमारी विफलता दिखाते हैं."
हम अक्सर सुनते हैं, UN ने फैमिली प्लानिंग की ये रिपोर्ट निकाली, सेक्शुअल हेल्थ पर इंग्लैंड के किसी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट आई. लेकिन ये रिपोर्ट्स हमारी रोज़मर्रा की बातचीत का सब्जेक्ट नहीं हैं. बय बीस एक साल बाद ज़िक्र आता है कि इस रिपोर्ट में ये तो ये पहले ही बताया था.
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