नाजियों के दांत खट्टे करने वाली वो मासूम लड़की, जिसका किरदार राधिका आप्टे निभा रही हैं
नूर इनायत खान, जिनका चेहरा ब्रिटिश नोटों पर छपने की बात हुई थी.
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बाईं तरफ- नूर इनायत खान, दाईं तरफ राधिका आप्टे उन्हीं का किरदार निभाते हुए. (तस्वीर: विकिमीडिया/IFC फिल्म्स)
नियति को मंजूर था जासूस बन जाना. और इसी में अपनी जान एक ऐसी लड़ाई में खो देना, जो इतिहास का हिस्सा बनी. ऐसी लड़ाई, जो 1930 के दशक से शुरू हुई और द्वितीय विश्व युद्ध पर आकर ख़त्म हुई.
लड़की का नाम था नूरुन्निसा इनायत खान. उर्फ़ नूर. उर्फ़ नोरा बेकर.
लड़ाई थी उभरते आ रहे नाज़ी जर्मनी के खिलाफ.
अब एक फिल्म आ रही है. 'अ कॉल टू स्पाई' के नाम से. उसमें राधिका आप्टे नूर का किरदार निभा रही हैं.
कौन थीं नूर?
1914 में जन्म हुआ. मॉस्को में. ये रशिया नाम के देश की राजधानी है. इनके पिता इनायत खान भारतीय मूल के थे. उनका बड़ा नाम था. सूफी गायक. भारतीय मुस्लिम घराने की पैदाइश. उनकी मां यानी नूर की दादी सीधे टीपू सुल्तान के खानदान से जुड़ी थीं. इनायत की पत्नी ओरा रे बेकर (पीरानी अमीना बेगम). इन दोनों के चार बच्चे. विलायत. हिदायत. इनायत. और खैर उन निसा.
इनायत खान ने अपने बच्चों को गांधी के अहिंसा के सिद्धांतों और सूफी संगीत की रौ में बहाकर पाला-पोसा. इनके चारों बच्चों में नूर सबसे बड़ी थी. नूर के जन्म के फ़ौरन बाद इनका परिवार रशिया से लंदन चला गया था. उसके बाद वो लोग फ्रांस चले गए थे. जब इनायत खान की मौत हुई, तो परिवार की जिम्मेदारी नूर ने उठा ली. दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत के बाद जब जर्मनी ने फ्रांस पर आक्रमण कर दिया, तो नूर का परिवार वापस भाग कर इंग्लैंड आ गया.
यहीं नूर ने अपने जीवन का सबसे बड़ा फैसला लिया. फैसला था ब्रिटिश सरकार के लिए काम करने का.

पहली महिला वायरलेस ऑपरेटर
1940 में Women’s Auxilliary Air Force जॉइन किया इनायत ने. वहां पर वो वायरलेस ऑपरेटर बनीं. ऑपरेटर्स महत्वपूर्ण जानकारी को मोर्स कोड में बाहर भेजते थे, ऐसे कि किसी को पता न चल पाए. आपने अगर 'राजी' फिल्म देखी हो, तो उसमें आपने आलिया भट्ट के किरदार सहमत को सन्देश भेजते हुए देखा होगा. टिक-टिक करते हुए एक मशीन पर. वो मोर्स कोड होता है. उसी का इस्तेमाल करके नूर महत्वपूर्ण जानकारी भेजती थीं.
1942 में नूर ने तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल द्वारा शुरू किए गए प्रोग्राम स्पेशल ऑपरेशन्स एग्जीक्यूटिव (SOE) को जॉइन किया. उनका नेचर ऐसा नहीं था कि वो जासूस बन सकतीं. बड़ी ही लापरवाह टाइप थीं. कोड की किताबें खुली छोड़ देती थीं. लेकिन मुंह बंद रखना जानती थीं और काफी समझदार थीं. उनकी ट्रेनिंग काफी तगड़ी वाली हुई. SOE के जो अंडरकवर एजेंट होते थे, उनका काम था यूरोप के भीतर हो रही छोटी-छोटी क्रांतियों को बढ़ावा देना, ताकि वहां से जर्मनी का कंट्रोल कमजोर पड़ जाए. उनका कोड नेम मैडेलाइन (Madelein) था.

1943 में वो पेरिस में SOE बनकर जाने वाली पहली महिला थीं. उनके पेरिस पहुंचते ही गेस्टापो (हिटलर की सीक्रेट पुलिस. जैसे स्कॉटलैंड यार्ड या इजरायल का मोसाद है, वैसे ही) ने बड़ा छापा मारा था, और वो इकलौती ऑपरेटर बच गई थीं. अगले तीन महीनों तक नूर अपना हुलिया बदलती, गेस्टापो को चकमा देती रहीं. पूरी खबर लन्दन भेजती रहीं. आखिरकार एक डबल एजेंट ने धोखा देकर उन्हें पकड़वा दिया. जिस नेटवर्क में जासूस महीने भर मुश्किल से बच पाते थे, उस नेटवर्क में नूर तीन महीने बच गई थीं.
जब उन्हें पकड़ा गया, तब भी उन्होंने बचकर भाग निकलने की पूरी कोशिश की. छह तगड़े पुरुष लगे उनको पकड़ने में. तिस पर भी बार-बार नूर ने भागने की कोशिश की. एक बार बाथरूम की खिड़की से निकलकर ड्रेन पाइप के जरिये. लेकिन गार्ड्स ने शोर सुनकर उनको पकड़ लिया. जब नूर ने एक बार और भागने की कोशिश की, तो उन्हें जंजीरों में बांधकर अकेले कैद कर दिया गया. उनको टॉर्चर करते हुए सवाल पूछे गए. जो औरत प्रैक्टिस में सवालों से डर जाती थी, उसने पूरे प्रोसेस में मुंह तक नहीं खोला.
एक साल तक कैद रहने के बाद नूर को दचाऊ कंसंट्रेशन कैम्प में भेज दिया गया. उनके साथ आने वाले लोगों को तुरंत मौत के घाट उतार दिया गया. नूर को 13 सितम्बर, 1944 को गोली मार दी गई. जो लोग वहां मौजूद थे, उनके हिसाब से जब नूर को गोली मारी गई, तो उनका आखिरी शब्द था ‘Liberte’
यानी आज़ादी.
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