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'किराए की कोख' पर बनी कृति सैनन की फ़िल्म 'मिमी' कितनी रियल है?

भारत में इस वक्त सरोगेसी का कितना पुराना कानून चल रहा है?

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फिल्म में मिमी एक डांसर होती है, जिसे देखकर विदेशी जोड़ा अपनी सरोगेट बनाने के लिए पसंद कर लेता है. सरोगेट बनने के लिए ये जोड़ा मिमी को 20 लाख रुपये ऑफर करता है, लेकिन भ्रूण में कोई दिक्कत की बात सुनकर वो जोड़ा वहां से भाग जाता है.
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कुसुम
29 जुलाई 2021 (Updated: 29 जुलाई 2021, 06:47 AM IST) कॉमेंट्स
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मिमी. कृति सैनन, पंकज त्रिपाठी की फिल्म. इसी हफ्ते नेटफ्लिक्स और जियो सिनेमा पर रिलीज़ हुई है. ये फिल्म एक लड़की की कहानी है, जो अपने सपनों के लिए कुछ भी करने को तैयार है. इस कुछ भी करने में ऐैसा कुछ हो जाता है कि उसे अपने सपनों को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना पड़ता है. ये फिल्म बात करती है सरोगेसी और मदरहुड पर.
ज्यादा नहीं, कुछ वक्त पहले की ही बात है. तब देश के अलग-अलग इलाकों में सरोगेसी क्लिनिक्स होते थे. इन क्लिनिक्स के बड़े कस्टमर होते थे विदेशी जोड़े. जो सरोगेसी के जरिए बच्चा पैदा करने के लिए भारत आते थे. वजह? वजह थी खर्च. भारत में उनके अपने देश के मुकाबले बहुत कम खर्च में सरोगेसी से बच्चा पैदा किया जा सकता था. भारत में सरोगेसी एक बड़ा बिजनेस बन चुका था. मिमी की कहानी की शुरुआत 2013 से होती है. एक सरोगेसी क्लिनिक दिखता है, यहां दिखती हैं कुपोषित गर्भवती औरतें. और साथ में दिखती हैं कुछ और कुपोषित औरतें जो कुछ पैसों के लिए अपनी कोख किराए पर देने के लिए तैयार होती हैं.
मिमी (कृति सेनन) इनमें से एक नहीं होती. मिमी एक डांसर होती है, फिल्म स्टार बनने का सपना देखती है. एक अमेरिकी जोड़ा उसे देखते ही अपने बच्चे की सरोगेट के तौर पर पसंद कर लेता है. मुंबई जाने के लिए मिमी को चाहिए होते हैं बहुत सारे पैसे और ये जोड़ा लाखों रुपये उसे देने को तैयार होता है. मिमी हां कहती है, अपने परिवार से झूठ बोलती है और सरोगेसी के जरिए बच्चा कंसीव भी कर लेती है. लेकिन, जांच में पता चलता है कि पेट में पल रहे बच्चे को डाउन सिंड्रोम है. ऐसे में अमेरिकी कपल मिमी को प्रेग्नेंट हालत में छोड़कर चला जाता है. ये कहलवाकर कि वो बच्चा गिरा ले. इसके बाद क्या होता, यही इस फिल्म की कहानी है.
Mimi2 Mimi में कृति सेनन ने एक सरोगेट मदर का किरदार निभाया है.
क्या असल ज़िंदगी पर बेस्ड है फिल्म? ये कहा नहीं जा सकता कि किसी एक की ज़िंदगी पर ये फिल्म आधारित है. लेकिन साल 2010 से 2015 के बीच ऐसी कई खबरें आईं जिनमें आपसी दिक्कतों चलते, या फिर बच्चे की मेडिकल कंडीशन के चलते या फिर ऐसे ही विदेशी माता-पिता अपने बच्चे को सरोगेट की कोख में छोड़कर भाग गए. केवल भारत नहीं, साउथ एशिया के दूसरे देशों से भी इस तरह की खबरें आईं. थाईलैंड के बेबी गैमी
की खबर ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा था. बच्चा डाउन सिंड्रोम और दूसरी हेल्थ प्रॉब्लम्स के साथ पैदा हुआ था. ये देखकर उसके ऑस्ट्रेलियाई पेरेंट्स उसे छोड़कर भाग गए. बाद में सरोगेट मां ने उसे पालने का फैसला किया, उसके इलाज के लिए पूरी दुनिया से पैसे इकट्ठे किए गए.
भारत से जुड़ी एक खबर ने भी साल 2014 में चर्चा बटोरी थी. एक ऑस्ट्रेलियाई जोड़े को सरोगेसी के जरिए 2012 में जुड़वां बच्चे हुए. कपल ने दलील दी कि वो दो बच्चे अफोर्ड नहीं कर सकते हैं. और फिर एक बच्चा वो दिल्ली में रहने वाले अपने एक दोस्त के पास छोड़कर चले गए.
Mimi4 मिमी में बच्चे के इसली माता-पिता बच्चे को सरोगेट के गर्भ में ही छोड़कर भाग जाते हैं. उससे बच्चा गिरा देने को कहते हैं.

भारत में सरोगेसी की जब भी बात होगी तब बेबी मंजी के केस पर बात करना ज़रूरी होगा. साल 2007 में एक जापानी कपल भारत आया. सरोगेट के जरिए बच्चा पैदा करने की उम्मीद में. गुजरात के आणंद के एक सरोगेसी क्लिनिक ने इस कपल और एक सरोगेट के बीच कॉन्ट्रैक्ट साइन करवाया. सरोगेसी के लिए स्पर्म पिता बनने के इच्छुक व्यक्ति ने दिया, हालांकि एग एक भारतीय महिला ने डोनेट किया. बच्चे के जन्म से एक महीने पहले उस कपल का तलाक हो गया. पत्नी ने बच्चा रखने से इनकार कर दिया. पिता बच्चा रखना चाहता था, पर वीज़ा एक्सपायर होने की वजह से उसे जापान लौटना पड़ा. इस बीच करीब तीन महीने तक बच्चा अस्पताल में रहा. सिंगल पिता को सरोगेट बच्चे की कस्टडी देने का प्रावधान तब नहीं था, मामला हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट तक गया. आखिर में बच्चे को उसकी दादी की कस्टडी में दिया गया और उसके लिए जापान ने टेम्पररी वीज़ा ईशू किया. जिसके बाद वो जापान जा सका.
हालांकि, दादी को कस्टडी देने के मामले में सत्या नाम के एनजीओ ने राजस्थान हाईकोर्ट में पेटिशन डाला था, साथ में इस बात को हाईलाइट किया था कि भारत में सरोगेसी के लिए सख्त कानून की ज़रूरत है. भारत में क्या हैं सरोगेसी को लेकर कानून? # 3 नवंबर, 2015 से विदेशी जोड़ों के भारत में सरोगेट के जरिए बच्चा पैदा करने पर पूरी तरह बैन. नियम के मुताबिक, किसी भी विदेशी नागरिक या भारत के ओवरसीज़ नागरिक (OCI) को सरोगेसी के लिए भारत आने की इजाज़त नहीं दी जाती है. और न ही सरोगेसी से पैदा हुए बच्चों को उनके विदेशी या OCI पेरेंट्स के साथ भारत छोड़ने की इजाज़त नहीं  दी जाती है.
# हमने बात की डॉक्टर नयना एच पटेल से. वो सरोगेसी और फर्टिलिटी एक्सपर्ट हैं. गुजरात के वडोदरा में उनका अपना क्लिनिक है. डॉक्टर नयना ने बताया कि फिलहाल सरोगेसी के लिए साल 2014 में आया कानून और 2015 में विदेशी नागरिकों की सरोगेसी बैन करने वाला कानून फॉलो किया जाता है.
Mimi3 फिल्म मिमी का एक सीन जिसमें मिमी अपनी दोस्त शमा के साथ अपनी प्रेग्नेंसी का जश्न मना रही है.
2014 का सरोगेसी कानून क्या कहता है? # सरोगेट की उम्र 25 से कम नहीं होनी चाहिए और न ही 35 साल से ज्यादा.
# सरोगेसी के जरिए बच्चा चाहने वाले जोड़े की शादी को कम से कम दो साल पूरे होने चाहिए. ये सुनिश्चित हो कि उस जोड़े ने किसी और सरोगेट के साथ कोई अग्रीमेंट न किया हो. न भारत में, न किसी और देश में.
# जोड़े के पास इस बात का प्रूफ होना चाहिए कि मेडिकल रीज़न्स की वजहों से वो नैचुरली खुद बच्चा पैदा नहीं कर सकते हैं.
# एक महिला तब ही सरोगेट बन सकती है जब उसे चार से ज्यादा बच्चों को जन्म न दिया हो.
# एक बार सरोगेसी के जरिए बच्चा पैदा करने के दो साल बाद ही कोई महिला दोबारा सरोगेट बन सकती है.
# सरोगेट को प्रेग्नेंसी के दौरान मेडिकल ट्रीटमेंट का अधिकार होगा. प्रेग्नेंसी के बाद भी अगर डॉक्टर कोई इलाज बताते हैं तो उसका भी अधिकार उन्हें होगा.
# यदि कोई कपल बच्चे को अपने साथ लेकर जाने के लिए टाइम लेता है तो सरोगेट को कम्पेंसेशन मांगने का अधिकार होगा.
भारत में इस वक्त 2014 का सरोगेसी कानून और 2015 में विदेशी जोड़ों की सरोगेसी पर बैन का जो आदेश आया था वो लागू है. भारत में इस वक्त 2014 का सरोगेसी कानून और 2015 में विदेशी जोड़ों की सरोगेसी पर बैन का जो आदेश आया था वो लागू है.

# पूरी प्रक्रिया में लगने वाला पूरा खर्च वो कपल उठाएगा जो सरोगेट के जरिए बच्चा चाहता है.
# बच्चा चाहने वाले जोड़े को बच्चे का एक गार्डियन भी नियुक्त करना होगा. अगर कोई जोड़ा तलाक, मृत्यु या किसी और वजह से बच्चे को अपने साथ नहीं रख सकता तो बच्चे का ख्याल रखने की जिम्मेदारी उस गार्डियन की होगी.
# राज्यों में सरोगेसी को सुपरवाइज़ करने के लिए बोर्ड्स बने हैं. बच्चा चाहने वाले कपल को सरोगेसी से पहले उन बोर्ड्स के साथ एक अग्रीमेंट साइन करना होगा.
# अगर कोई जोड़ा बच्चा लेने से इनकार करता है तो उसे कम से कम दो साल तक की जेल हो सकती है. यदि कोई व्यक्ति कोई तथ्य छिपाकर सरोगेसी अग्रीमेंट करता है तो उसे भी कम से कम दो साल की जेल हो सकती है. 2019 का सरोगेसी रेगुलेशन बिल क्या कहता है? साल 2014 में लागू हुए सरोगेसी एक्ट के बाद साल 2016 में सरोगेसी रेगुलेशन बिल आया. ये बिल लोकसभा में पास हुआ लेकिन राज्यसभा में पास नहीं हो सका और लैप्स हो गया. इसके बाद साल 2019 में एक और सरोगेसी रेगुलेशन बिल आया. इस बिल में जो प्रावधान हैं, वो इस प्रकार हैं-
# कमर्शियल सरोगेसी यानी पैसे लेकर बच्चे को अपनी कोख में पालना गैर-कानूनी होगा.
# सरोगेसी के लिए वो ही शादीशुदा जोड़ा आवेदन कर सकता है जिसकी शादी को कम से कम पांच साल पूरे हो गए हों और वो नैचुरल तरीके से बच्चा कंसीव कर पाने की स्थिति में न हों.
# सरोगेट का बच्चा चाहने वाले पति या पत्नी से करीबी संबंध होना अनिवार्य होगा.
# सरोगेट का शादीशुदा होना और उसका अपना बच्चा होना अनिवार्य है. कोई महिला अपने जीवन में केवल दो बार सरोगेट बन सकती है.
Pregnant Woman Rep Image Pixabay 700 साल 2019 का सरोगेसी रेगुलेशन बिल में कमर्शियल सरोगेसी पर बैन की बात लिखी है (सांकेतिक तस्वीर: Pixabay)

# इस बिल में सज़ा को बढ़ाया गया है. अगर कोई कमर्शियल सरोगेसी करता या करवाता है या उसका विज्ञापन करता है, सरोगेट को प्रताड़ित करता है, बच्चे को स्वीकार करने से इनकार करता है, सरोगेसी के लिए अगर कोई भ्रूण या एग्स बेचता या इम्पोर्ट करता पाया जाता है तो सज़ा का प्रावधान है. ऐसे मामलों में 10 साल तक की जेल और 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लग सकता है.
हालांकि, इस बिल में कई खामियां थीं. विपक्ष ने सवाल किया कि इस बिल में केवल एक हेटेरोसेक्शुअल जोड़े को शामिल किया गया है. LGBTQ समुदाय का या सिंगल पेरेंट बनने के इच्छुक लोगों का इस बिल में ख्याल नहीं रखा गया था. न ही लिव इन पार्टनर्स को इस बिल में जगह दी गई थी. विरोध इस बात पर भी हुआ कि ये बिल सरोगेट बनने के एक औरत की फ्रीडम ऑफ चॉइस के खिलाफ है, साथ ही ये चिंता भी जाहिर की गई कि अगर कमर्शियल सरोगेसी बैन हुई तो इससे होने वाली कमाई से अपना घर चलाने वाली औरतों का क्या होगा? सवाल ये भी उठे कि क्या इससे सरोगेसी के अवैध व्यापार को बढ़ावा नहीं मिलेगा?
Advocate Devika Gaur देविका गौर, वकील, सुप्रीम कोर्ट/दिल्ली हाई कोर्ट

भारत में सरोगेसी को लेकर कुछ वक्त पहले मेरी साथी लालिमा ने एडवोकेट देविका गौर से बात की थी. उन्होंने बताया था,
“2002 में इंडिया में सेरोगेसी को लीगलाइज़ कर दिया गया था. लेकिन वो सेरोगेसी कमर्शियल थी. 2002 से 2012 तक आते-आते सेरोगेसी इंडस्ट्री ने काफी बूम कर लिया. इस दौरान बच्चों के अधिकारों का नुकसान हो रहा था.  इसके बाद 2019 में सेरोगेसी बिल लाया गया, जो ज़रूरी था. ताकि नियम-कानून बनाए जाएं. लेकिन इसमें भी कई सारी कमिया हैं. जैसे इस बिल में LGBT कम्युनिटी के लोगों के लिए किसी भी प्रकार के प्रावधान की बात नहीं की गई है. कुछ ही समय पहले हमने देखा था कि ट्रांसजेंडर बिल पास हुआ, उसमें भी LGBT कम्युनिटी के लिए बहुत सारी कमियां सामने आईं. इसमें भी एडॉप्शन वगैरह की कोई बात नहीं की गई. ऐसे ही इस बिल के अदंर भी कमियां हैं. नीदरलैंड जैसे देशों में LGBT कम्युनिटी के लोगों को एडॉप्शन और IVF की परमिशन है, जो हमारे देश में अभी नहीं है. इस बिल की सबसे बड़ी कमी यही है कि किसी भारतीय गे कपल, लेस्बियन कपल या ट्रांसजेंडर कपल को अगर सेरोगेसी के लिए जाना है, तो वो इंडिया में अप्लाई नहीं कर सकते.”
इस वक्त देश में एक ऐसे सरोगेसी कानून की ज़रूरत है जो सभी वर्गों को इन्क्लूड करे. और सरोगेट के अधिकारों, उसकी न्यूट्रिशनल ज़रूरतों, मेंटल हेल्थ और आर्थिक ज़रूरतों पर फोकस करे.

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