हम 21वीं सदी में हैं. अमृतकाल में हैं. हम ही वो लोग हैं जो कल - यानी 14 जुलाई -को चंद्रयान-3 लॉन्च करने वाले हैं. इस मिशन से चंद्रमा की सतह को और बेहतर तरीक़ेसे समझने में मदद मिलेगी. हम चंद्रमा फतह करने की जुगत में हैं. जो बिलाशक ज़रूरीहै. लेकिन हम अपने शहरों के प्रति कितने सजग हैं? हर साल हम इस मोड़ पर कैसे आ जातेहैं कि ये चर्चा हो? और, क्या ये चर्चा केवल चर्चा तक ही महदूद रहती है या कुछज़मीनी और बुनियादी बदलाव भी होते हैं. जो ज़रूरी हैं?आज दिन की बड़ी ख़बरे में बात होगी यमुना के "क़हर" की. ये समझेंगे कि क्या वाक़ईक़हर है या हमारे शहरों का होमवर्क कमज़ोर है?