लाल किले में उस दिन अदालत बुलाई गई थी. आजाद हिन्द फौज के तीन अफसरों पर मुक़दमा चलरहा था. मुकदमा जिसका हासिल सबको पता था. इन तीन अफसरों और फांसी के बीच खड़ा था एकवकील. जिसकी तबीयत नासाज थी. इतनी नासाज कि जिंदगी सिर्फ चंद महीनों की मेहमान थी.वो वकील जो कभी कांग्रेस का बड़ा नेता हुआ करता था और जिसे कांग्रेस ने दग़ाबाज़ी केइल्जाम में किनारे लगा दिया था. इसके बावजूद जब बुलावा आया तो 68 साल का वो बुजुर्गएक बार फिर बिस्तर से उठ खड़ा हुआ. और काले कोट और लाल पगड़ी में लाल किले में पहुंचगया. उसने 10 घंटे लगातार जिरह की. दो दिन लगातार. वो भी बिना नोट्स के. नतीजा हुआकि दिल्ली से लेकर कराची तक हंगामा मच गया. अंग्रेज़ों को बगावत के डर से फांसीटालनी पड़ी. ये कहानी है 1945 में हुए आजाद हिन्द फौज के मुक़दमे की. और उस वकील कीजो कहता था, नेताजी अभी जिंदा हैं.आज 13 अक्टूबर है. और आज ही के दिन साल 1877 मेंजन्म हुआ था भूलाभाई देसाई का.