जेल में बंद मुसलमान ज़कात के पैसों से छुड़ाए जाएंगे
जमीयत उलमा-ए-हिंद नाम का संगठन जकात के जरिए पैसे जुटा रहा है. ताकि आतंकवाद के आरोप में फंसे मुसलमानों को बचा सकें.
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फोटो क्रेडिट- वाइस
किसी ने कहा है सौ कसूरवार छूट जायें पर किसी बेकसूर को सजा न हो. फिर भी हर साल बहुत से बेकसूर मुसलमान आतंकवादी होने के शक पर गिरफ्तार किये जाते हैं. और केस लड़ने के लिए पैसे न होने के चलते बरसों जेल में पड़े रहते हैं. छूट नहीं पाते. न सजा होती है. न बरी होते हैं.
कुछ दिनों पहले निसारउद्दीन अहमद नाम के लड़के का ऐसा ही केस आया था. 1993 में हुए बम धमाकों के आरोप में इसे अरेस्ट किया गया था. तब वो फार्मेसी का स्टूडेंट था. उम्र थी करीब 20 साल. छूटा तो उम्र थी 43 साल. 23 साल जेल में बंद रहा, बिना किसी गुनाह के. इस बीच एक जनरेशन बीत गई.
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इंडियन एक्सप्रेस के हवाले से खबर आई है. एक प्रमुख इस्लामिक ग्रुप ज़कात का इस्तेमाल ऐसे ही मुस्लिम लड़कों को बचाने के लिए करने वाला है. जमीयत उलमा-ए-हिंद नाम का ये संगठन देश भर के उन मुस्लिमों के केस लड़ने को पैसों का जुगाड़ करेगा. जिन्हें आतंकवादी गतिविधियों के शक में गिरफ्तार किया गया है. इस साल के पैसों के जुगाड़ के लिए ये संस्था शुक्रवार की नमाज के बाद मस्जिद से बाहर निकलते लोगों से चंदा करके मदद के पैसे जुटाएगी.
इस्लाम के पांच अहम कर्तव्यों में ज़कात भी एक है. ज़कात एक अरबी शब्द है. जिसका मतलब होता है 'पवित्र करने वाला.' माने इस्लाम में खुद को पवित्र करने के मकसद से ज़कात दिया जाता है. सालाना लिया जाने वाला ये रिलीजियस टैक्स इनकम के हिसाब से तय होता है. इसे रमजान के महीने में इकट्ठा किया जाता है. बाद में इसे जरूरतमंदों के बीच बांट दिया जाता है.
जमीयत उलमा-ए-हिंद के हेड गुलज़ार आज़मी बताते हैं, कुरान और हदीस के हिसाब से आठ तरह से ज़कात का यूज किया जा सकता है. इसमें एक तरीका ये भी है कि ज़कात के पैसों से उनकी मदद करें, जो कैद में हैं. बहुत से गरीब मुस्लिम बस इसलिए जेलों में बंद हैं क्योंकि उनके पास केस लड़ने के लिए पैसे नहीं हैं. पहले हम ज़कात की रकम को दवाओं और एजुकेशन पर खर्च करते थे. पर अब ये केस लड़ने पर खर्च होगी.
इस संगठन ने पिछले साल 2 करोड़ से ज्यादा रुपये 410 मुसलमानों के केस लड़ने में खर्च किए थे. ये 410 लोग 52 केसों से जुड़े हुए थे. इनमें से 108 लोग बरी हो गए. यानी चौथाई से ज्यादा लोगों का फायदा हुआ.
संस्था का कहना है भारत में 17 करोड़ से ज्यादा मुसलमान हैं. इनमें से अगर 10 फीसदी मुसलमान भी कम से कम तय ज़कात देते हैं. तो इसका मतलब 7,500 करोड़ रुपये की रकम इकट्ठी हो जाएगी.
ज़कात का पैरामीटर ये है कि कोई भी मुसलमान जिसके पास 75 ग्राम से ज्यादा सोना हो, अपना खर्चा निकालने के बाद अपनी बचत का 2.5 फीसदी ज़कात के रूप में देता है. ज़कात किसी जरूरतमंद या किसी संस्था को दिया जा सकता है. अक्सर इसे गरीबों को खाना खिलाने या मदरसों में धार्मिक शिक्षा देने के काम में लाया जाता है. भारत में बहुत से ग्रुप ज़कात जुटाते हैं और उसका यूज लोगों की भलाई के कामों में करते हैं.
जमीयत के सदस्य मुस्लिम मोहल्लों और मस्जिदों में जाकर उन्हें अपने काम के बारे में बता रहे हैं. और इस तरह पैसे जुटा रहे हैं. संस्था के हेड जमीयत आज़मी कहते हैं, हमारे पास कम्युनिटी के लिए दो मैसेज हैं. पहला ये कि वो ऐसी किसी बुरी ताकत के प्रभाव में ना आयें. जो उनको शांति और सौहार्द के रास्ते से दूर ले जाए. दूसरा, कि लोग जागें और मुसलमान नवयुवकों को अत्याचार से बचाने के लिए कानूनी गतिविधियों के बारे में उनकी जानकारी बढ़े.