कसाब ने आखिरी वक्त में क्या कहा, बताया सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर ने
2008 में हुए मुंबई हमलों के दोषी आतंकवादी कसाब को यकीन नहीं था कि उसे फांसी होगी.
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मुहम्मद अजमल कसाब 2008 में हुए मुंबई आतंकी हमलों का दोषी था. जिन आतंकियों ने इन हमलों को अंजाम दिया था, उनमें बस अजमल ही जिंदा पकड़ा जा सका. अटैक की रात मुंबई पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया. उस पर 80 से ज्यादा इल्जाम लगे. कोर्ट में केस चला. उसे अपना कानूनी बचाव करने का मौका भी दिया गया. ट्रायल के अंतर में कोर्ट ने उसे दोषी माना और फांसी की सजा सुनाई (फोटो: AP)
21 नवंबर, 2012. सुबह का वक्त. 2008 में हुए मुंबई हमलों के दोषी अजमल कसाब को इसी दिन फांसी मिली थी. इससे करीब एक दिन और दो पहर पहले, 19 नवंबर को आधी रात के आस-पास की बात है. आतंकवादी कसाब ने कहा था-
आप जीत गए, मैं हार गया.उसने ये बात कही थी सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर रमेश महाले से. ये नवंबर 2012 की बात है. हमें ये मालूम चला 'हिंदुस्तान टाइम्स' की एक रिपोर्ट से.
इस रिपोर्ट में 'हिंदुस्तान टाइम्स' ने काफी ब्योरे से बताया है कि किस तरह रमेश महाले ने कसाब से पूछताछ की. कैसे उसका मुंह खुलवाया. 26 नवंबर, 2008 को हुए मुंबई हमले की रात जब मुंबई पुलिस ने कसाब को पकड़ा, तब से लेकर उसे फांसी चढ़ाए जाने के दिन तक की कई डिटेल्स बताई हैं.
महाले के जिम्मे 26/11 हमलों की जांच का काम था. जिस समय अटैक हुआ, तब वो मुंबई की क्राइम ब्रांच यूनिट 1 के मुखिया थे. आर्थर जेल रोड में बंद किए जाने से पहले तकरीबन 81 दिनों तक कसाब क्राइम ब्रांच की कस्टडी में था. महाले 2013 में रिटायर हो गए. उन्होंने 'हिंदुस्तान टाइम्स' को बताया-
जब तक कोर्ट ने उसका डेथ वॉरंट नहीं थमाया, तब तक कसाब को यही लगता रहा कि वो हिंदुस्तान के कानून से बचकर निकल जाएगा. उसे इस बात का पूरा भरोसा था.

नवंबर 2008 में पकड़े जाने और नवंबर 2012 में फांसी चढ़ाए जाने के बीच कसाब पहले कुछ दिन मुंबई क्राइम ब्रांच की गिरफ्त में रहा. फिर मुंबई की आर्थर रोड जेल में उसके लिए एक खास बुलेटप्रूफ कोठरी बनाई गई. ये हाई-सिक्यॉरिटी सेल थी. ये उसी जेल की तस्वीर है (फोटो: रॉयटर्स)
कसाब के मुंह से चीजें निकलवाने के लिए क्या ट्रिक अपनाई? महाले ने बताया कि वो और उनकी टीम जानते थे कि कसाब इतनी आसानी से नहीं टूटेगा. इसीलिए उससे पूछताछ करने को उन्होंने अलग तरकीब आजमाई. उसे सहज महसूस करवाया और उसके टूटने का इंतजार किया. महाले ने यूं जताया कि वो रहमदिली दिखा रहे हैं. उन्होंने कसाब को नए कपड़े दिए. इस तरह कसाब ने खुलना शुरू किया. महाले बताते हैं-
हमारे पास उसे आए हुए डेढ़ महीने हुए थे. मैं उससे बात कर रहा था. उसने कहा कि उसने जो गुनाह किया है, उसके लिए उसे फांसी हो सकती है. मगर ऐसा नहीं होगा. क्योंकि भारत की न्याय व्यवस्था फांसी को घृणा से देखती है. कसाब ने संसद पर हुए हमले में दोषी पाए गए अफजल गुरु की मिसाल दी. कहा कि भारतीय अदालतों ने उसे फांसी की सजा सुना दी थी. इसके बावजूद आठ सालों तक उसे फांसी नहीं दी गई.

ये कसाब है. 3 फरवरी, 2009 को CNN IBN ने ये विडियो चलाया था. इस वक्त कसाब मुंबई पुलिस की कस्टडी में था (फोटो: रॉयटर्स)
कोर्ट को झूठी कहानी सुनाई महाले बताते हैं कि जांच और पूछताछ के दौरान कसाब ने कई बार उन लोगों को चौंकाया. कई मौकों पर वो गोल-गोल बातें करता था. सीधी जवाब नहीं देता था. झूठ भी बोलता था. उसने कोर्ट से कहा कि वो पाकिस्तानी नागरिक है. वो वैध वीज़ा लेकर भारत आया था, ताकि अमिताभ बच्चन को एक नजर देख सके. वो अमिताभ के जुहू वाले बंगले के बाहर खड़ा था, जब रॉ के लोगों ने उसे पकड़ लिया और मुंबई पुलिस को सौंप दिया. पुलिसवालों ने जेल में डालने से पहले उसकी बांह में गोली मारी. चार दिन बाद पुलिस ने उसे 26/11 हमलों का आरोपी बना दिया.
...और फिर कसाब की सारी उम्मीदें टूट गईं 11 नवंबर, 2012 को स्पेशल कोर्ट ने कसाब का डेथ वॉरंट जारी किया. उस समय मुंबई पुलिस के कमिश्नर थे सत्यपाल सिंह. जो कि अब बीजेपी नेता हैं. सत्यपाल सिंह ने कसाब को पुणे की यरवदा जेल शिफ्ट करने का काम खास महाले को सौंपा. 21 नवंबर, 2012 को इसी जेल के अंदर उसे फांसी दिए जाने का फैसला किया गया था. 19 नवंबर को आधी रात के करीब महाले कसाब को लेने उसकी जेल की कोठरी में पहुंचे. इस मौके पर उन्होंने कसाब को याद दिलाया. कि कैसे वो ये सोचने की गलती करता था कि वो फांसी से बच जाएगा. महाले ने कसाब से कहा-
याद है? चार साल भी नहीं हुआ. चार साल पूरा होने में अभी एक हफ्ता बाकी है.इस पर कसाब ने जवाब दिया-
आप जीत गए. मैं हार गया.

ये 21 नवंबर, 2012 की फोटो है. इसी दिन कसाब को फांसी चढ़ाया गया था. भारत में जगह-जगह पर लोगों ने इसकी खुशी मनाई. ये अहमदाबाद से आई ऐसी ही एक तस्वीर है (फोटो: रॉयटर्स)
इसके बाद महाले और उनकी टीम कसाब को लेकर पुणे के लिए रवाना हुई. साढ़े तीन घंटे के सफर में कसाब बिल्कुल चुप रहा. जिंदा बच जाने का उसका यकीन अब टूट चुका था. उम्मीद की जगह डर ने ले ली थी. महाले कहते हैं कि जब कसाब को फांसी मिल गई, तो शायद सबसे ज्यादा खुशी उन्हें ही मिली थी. महाले उस पल को अपनी जिंदगी का सबसे खुशनुमा वक्त मानते हैं.
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