The Lallantop
Advertisement

इस बार संसद का शीतकालीन सत्र नहीं बुलाया जाएगा, पहले कब-कब ऐसा हुआ?

मोदी सरकार ने कोविड महामारी को वजह बताया है.

Advertisement
संसद का शीतकालीन सत्र ना बुलाने पर विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार पर सवाल उठाया है. फोटो:
संसद का शीतकालीन सत्र ना बुलाने पर विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार पर सवाल उठाया है. फोटो:
font-size
Small
Medium
Large
16 दिसंबर 2020 (Updated: 16 दिसंबर 2020, 13:51 IST)
Updated: 16 दिसंबर 2020 13:51 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
केंद्र सरकार ने कहा है कि इस बार संसद का शीतकालीन सत्र नहीं होगा. इसके पीछे की वजह कोविड महामारी बताई गई है. 3 दिसंबर को लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला को पत्र लिखा था कि एक छोटा शीतकालीन सत्र बुलाया जाए ताकि किसान आंदोलन जैसे मुद्दों पर चर्चा हो सके. इसके जवाब में अधीर रंजन चौधरी को लिखे एक पत्र में संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि सरकार संसद का अगला सत्र जल्द से जल्द बुलाना चाहती है. ये भी बताया कि बजट सत्र जनवरी में बुलाया जाएगा.
प्रह्लाद जोशी ने अपने पत्र में कहा,
मैंने अनौपचारिक रूप से अलग-अलग पार्टियों के सदन नेताओं से बात की है और उन्होंने वर्तमान महामारी को लेकर चिंता जताई है और शीतकालीन सत्र से बचने की बात कही. 
दूसरी तरफ अधीर रंजन चौधरी ने आरोप लगाया कि उन्होंने कभी नहीं कहा कि सत्र नहीं बुलाया जाना चाहिए. सरकार सत्र से भाग रही है ताकि किसान आंदोलन जैसे सवालों से बचा जा सके. वहीं, कांग्रेस के अलावा वामदलों, NCP, शिव सेना जैसी दूसरी विपक्षी पार्टियों का भी आरोप है कि उनसे सत्र न बुलाने को लेकर सलाह नहीं ली गई. तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि पार्टी ने संसदीय कार्य मंत्री से कहा कि TMC छोटा शीतकालीन सत्र नहीं चाहती है. विपक्षी दल इस सत्र में किसान आंदोलन के अलावा अर्थव्यवस्था की स्थिति, चीन के साथ सीमा विवाद, कोविड महामारी जैसे विषयों पर चर्चा चाहते थे.
लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी (फोटो में) ने शीतकालीन सत्र को लेकर लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला को पत्र लिखा था. फोटो: LSTV
लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी (फोटो में) ने शीतकालीन सत्र को लेकर लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला को पत्र लिखा था. फोटो: LSTV

संसद सत्र कितने होते हैं?
सामान्य परिस्थितियों में एक कैलेंडर वर्ष में संसद के तीन सत्र होते हैं-
बजट सत्र: ये जनवरी के अंत से अप्रैल तक या फरवरी से मई महीने तक चलता है. 1994 में बजट सेशन को दो हिस्सों में बांट दिया गया. पहले हिस्से में बजट पेश किया जाता है, उस पर बहस होती है, दोनों सदनों में बजट पास होता है. उसके बाद एक महीने के लिए सेशन को स्थगित कर दिया जाता है. इस एक महीने में संसद की स्थायी समिति अलग-अलग कामों के लिए मांगे गए खर्च का आंकलन करती है. एक महीने बाद फिर से बजट सत्र की बैठक होती है. इसमें स्थायी समिति के आंकलन के हिसाब से बजट को फाइनल किया जाता है. साल 2019 में बजट सत्र 31 जनवरी और 2018 में 28 जनवरी से शुरू हुआ था.
मॉनसून सत्र: ये जुलाई से अगस्त के बीच होता है. इस बार का मानसून सत्र थोड़ा देरी से सितंबर महीने में कोविड प्रोटकॉल के साथ बुलाया गया था. कार्यवाही सीमित रखने के लिए प्रश्नकाल खत्म कर दिया गया था. इस पर विवाद भी हुआ. इसमें सामान्य विधायी काम होते हैं. ज़्यादातर लोकहित से जुड़े मुद्दों पर चर्चा होती है.
शीतकालीन सत्र: ये सत्र नवंबर से दिसंबर तक चलता है. ये सबसे छोटा सत्र होता है. दूसरे सत्र में अगर कोई मुद्दा छूट रहा हो या उस पर चर्चा अधूरी रह गई हो तो इस सत्र में उसे पूरा किया जा सकता है.
संसद के दो सत्रों के बीच 6 महीने से ज्यादा का अंतर नहीं हो सकता. अगर ऐसा होता है तो राष्ट्रपति लोकसभा-राज्यसभा के स्पीकर/सभापति को सत्र शुरू करने के लिए कह सकते हैं.
विशेष सत्र
संविधान में विशेष सत्र बुलाने की भी व्यवस्था है. जब संसद में कोई सत्र न चल रहा हो. और किसी खास बिल पर ज़रूरी चर्चा करनी हो, डेडलॉक की स्थिति हो, तो मंत्रिमंडल की सलाह पर राष्ट्रपति संसद का विशेष सत्र बुला सकते हैं.
इससे पहले कब-कब नहीं बुलाया गया सत्र?
साल 2008 में यूपीए सरकार ने औपचारिक शीतकालीन सत्र नहीं बुलाया था बल्कि मॉनसून सत्र को कुछ दिनों के लिए दिसंबर महीने में कर दिया था. साल 1975 में इमरजेंसी के चलते और 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के चलते शीतकालीन सत्र नहीं बुलाया गया था. इसके अलावा 1979 में भी शीतकालीन सत्र नहीं बुलाए गए.

thumbnail

Advertisement

election-iconचुनाव यात्रा
और देखे

Advertisement

Advertisement