JNU छात्रसंघ चुनावों में लेफ्ट के जीते हुए उम्मीदवारों की कुर्सी जा सकती है!
चारों सीटों पर लेफ्ट काबिज़ है.
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जेएनयू की चारों सीटों पर लेफ्ट का कब्ज़ा है इस बार.
अभी मुश्किल से महीना ही बीता है जेएनयू छात्रसंघ का चुनाव निपटे. बवाल तब भी हुआ था, बवाल आज भी जारी है. तब वाला चुनावों का था, अब वाला अजीब है. जीते हुए चारों कैंडिडेट्स का पद छिन सकता है. वजह बनेगा जीएसटी बिल.दरअसल माजरा ये है कि चुनावों के बाद सारे उम्मीदवारों को खर्च का ब्यौरा देना होता है. बिल जमा करने होते हैं. इन्हीं बिलों में एडमिनिस्ट्रेशन ने नुक्स निकाल दिया है. बोला ये अधूरे हैं. जीएसटी नंबर नहीं है.

जेएनयू का खबरों में रहना अब चौंकाता नहीं.
12 अक्टूबर को डीन उमेश कदम ने एक लेटर जारी किया जिसमें लिखा है कि जो बिल जमा किए गए हैं वो लिंगदोह कमिटी सिफारिशों की धारा 6.6.2 के अनुसार नही हैं. इस धारा के मुताबिक इलेक्शन रिज़ल्ट्स डिक्लेयर होने के दो हफ्तों के अंदर खर्चे का सारा ब्यौरा यूनिवर्सिटी अथॅारिटीज़ को देना होता है. सारे ओरिजिनल बिल्स देने होते हैं, जिनपर जीएसटी नंबर पड़ा हो. ऐसा न करने पर उम्मीदवारों की सदस्यता रद्द की जा सकती है.
जेएनयू स्टूडंट यूनियन के प्रेसिडेंट एन साई बालाजी ने इसे धमकाने की कोशिश और ग़लत नज़ीर बताया. उन्होंने कहा कि बिल्स उन्हीं फॉर्मेट में सबमिट किए गए हैं जिनमें पिछले दो सालों से हो रहे हैं. अब से पहले प्रशासन को कभी दिक्कत नहीं हुई.

एन साई बालाजी.
इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक जेएनयू स्टूडंट यूनियन ने बिल्स के साथ एक कवर लेटर भी जमा किया था जिसपर सभी 19 कैंडिडेट्स के साइन हैं. टोटल खर्च 92,634 का आया. उम्मीदवारों का कहना है कि यूनिवर्सिटी प्रशासन ने इलेक्शन खर्चे को लेकर कोई गाइडलाइंस नहीं जारी की है.
बहरहाल ये वक्त बताएगा कि क्या जीते हुए उम्मीदवारों से फिर से सही फॉर्मेट में बिल सबमिट करवाए जाएंगे या टेक्निकल लोचे के चक्कर में सदस्यता छीनने जैसा बोल्ड कदम उठाया जाएगा.
वीडियो:

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