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गुजरात दंगो पर बीबीसी की डॅाक्यूमेंट्री क्यों हटाई गई?

बीबीसी की एक डॉक्यूमेंट्री आई, 'इंडिया - द मोदी क्वेश्चन नाम से.'

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पीएम मोदी (साभार: आजतक)
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24 जनवरी 2023 (Updated: 24 जनवरी 2023, 09:48 PM IST) कॉमेंट्स
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तमाम दंगों की तरह ही गुजरात दंगों को लेकर सबसे बड़ा प्रश्न यही था ये स्वतः स्फूर्त थे या फिर एक लंबे षडयंत्र का हिस्सा, जिस मामले में ज़िम्मेदारी तय होनी चाहिए. सर्वोच्च न्यायालय की बनाई स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम कह चुकी है कि दंगों के पीछे साज़िश के साक्ष्य नहीं मिले और इस बात को न्यायालय ने मान भी लिया है. माने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को दंगों के मामले में क्लीन चिट मिल गई है. ऐसे में बीबीसी की एक डॉक्यूमेंट्री आती है, इंडिया - द मोदी क्वेश्चन नाम से. दो एपिसोड वाली इस डॉक्यूमेंट्री का दावा किया गया है कि इसमें एक नई नज़र से दंगों को देखा गया है. डॉक्यूमेंट्री में इल्ज़ाम है कि 2002 में गुजरात में जो कुछ हुआ, उसमें एथनिक क्लेंज़िंग के सारे निशान थे. और ज़िम्मेदारी तत्कालीन मुख्यमंत्री थे. हवाला दिया गया है ब्रिटिश सरकार की एक खुफिया रिपोर्ट का. भारत सरकार ने इस डॉक्यूमेंट्री पर भारत में प्रतिबंध लगा दिया है. लेकिन ये देखी भी जा रही है और दिखाई भी जा रही है.

हम और आप इस घटना को कैसे देखें. क्या अदालती फैसलों के बाद भी किसी सत्य के बाहर आने की गुंजाइश रहती है? और क्या जब ऐसे दावों के साथ डॉक्यूमेंट्रीज़ बनती हैं, तो पब्लिशर की पॉलिटिक्स को अनदेखा किया जा सकता है? और सबसे बड़ा सवाल ये, कि क्या सही है, क्या गलत, क्या देखने लायक है और क्या बैन के काबिल, इसका फैसला कैसे होगा और कौन करेगा?

गुजरात दंगों को लेकर कई डॉक्यूमेंट्रीज़ और न्यूज़ रिपोर्ट्स पहले ही बन चुकी हैं. फिर बीबीसी की इस डॉक्यूमेंट्री में नया क्या था? खबरों की दुनिया की भाषा में कहें तो पेग क्या था? आइए समझते हैं. टोनी ब्लेयर सरकार में विदेश मंत्री रहे थे जैक स्ट्रॉ. द वायर को दिए एक इंटरव्यू में वो कहते हैं कि दंगों से प्रभावित लोगों के ब्रिटेन में रह रहे रिश्तेदारों ने टोनी ब्लेयर सरकार से गुजरात दंगों की जांच की मांग की थी. इसके बाद ब्रिटेन के विदेश मंत्रालय ने एक रिपोर्ट तैयार करवाई. इसी रिपोर्ट का हवाला बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री में दिया गया. डॉक्यूमेंट्री में भाजपा नेता स्वपन दासगुप्ता का इंटरव्यू भी शामिल किया गया है.

दो एपिसोड वाली डॉक्यूमेंट्री इंडिया: 'द मोदी क्वेश्चन' का पहला हिस्सा रिलीज़ हुआ तो इसकी कई क्लिप्स सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं. लेकिन राजनीतिक हलके में इसका शोर तब तक कम ही सुनाई दिया. फिर आती है 19 जनवरी की तारीख. इस दिन विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जानकारी दी कि बीबीसी की ये डॉक्यूमेंट्री भारत में रिलीज़ नहीं हुई है. उन्होंने इसे एक प्रॉपेगैंडा का हिस्सा बताते हुए कहा 

“यह एक प्रोपेगेंडा का हिस्सा है. यह झूठे नैरेटिव को बढ़ाने का एक मात्र हिस्सा है. इसके पीछे क्या एजेंडा है, यह सोचने को मजबूर करता है. इसमें पूर्वाग्रह, निष्पक्षता की कमी और औपनिवेशिक मानसिकता साफ-साफ झलक रही है. इसमें कोई वस्तुनिष्ठता नहीं है.”
 

डॉक्यूमेंट्री पर विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया के आने के बाद से ये मुद्दा कितना बड़ा बनने वाला था इस बात का अंदाजा आपको विपक्ष में बैठी पार्टियों के बयानों से लग जाएगा. इन राजनीतिक बयानबाजियों के बीच डॉक्यूमेंट्री का पहला एपिसोड यूट्यूब पर अपलोड कर दिया गया और उसका लिंक सोशल मीडिया पर शेयर होने लगे. इस पर 21 जनवरी को केंद्र सरकार की तऱफ से बड़ा कदम उठाया गया. और डॉक्यूमेंट्री को ब्लॉक करने के आदेश आ गए. इस दिन सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सलाहकार कंचन गुप्ता ने ट्वीट कर बताया कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने डॉक्यूमेंट्री 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' के पहले एपिसोड के YouTube वीडियो को ब्लॉक करने के आदेश दिए हैं और साथ ही इन वीडियो के लिंक वाले 50 से ज्यादा ट्वीट्स को ब्लॉक करने के लिए Twitter को आदेश भी जारी किए गए हैं. कंचन गुप्ता ने ये भी बताया कि यूट्यूब को वीडियो को फिर से अपलोड करने पर ब्लॉक करने का निर्देश दिया गया है.

केंद्र सरकार अपने इस फैसले के बाद फिर से विपक्ष के निशाने पर आ गई. एमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी मोदी पर बनी डॉक्यूमेंट्री के बहाने एक और फिल्म को बैन करने की मांग करने लगे. ओवैसी ने कहा, 

"बीजेपी ने डॉक्यूमेंट्री पर लगा दिया. मैं प्रधानमंत्री और बीजेपी नेताओं से पूछता हूं कि गांधी की हत्या करने वाले गोडसे के बारे में आपकी क्या राय है? अब गोडसे पर एक फिल्म बन रही है. क्या गोडसे पर बन रही फिल्म पर बैन लगाएंगे पीएम? मैं बीजेपी को गोडसे पर बनी फिल्म पर बैन लगाने की चुनौती देता हूं. हम मांग करते हैं कि पीएम मोदी 30 जनवरी से पहले गोडसे पर बनी फिल्म पर प्रतिबंध लगाएं, जिस दिन गांधी की हत्या हुई थी.”

जानकारी के लिए बता दें कि ओवैसी जिस फिल्म पर बैन की मांग कर रहे हैं उसका नाम 'गांधी-गोडसे एक युद्ध' है. जो कि 26 जनवरी को रिलीज होने वाली है. फिलहाल बयानबाजियों का सिलसिला अभी थमा नहीं है. आज भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर कहा, 

"यदि आपने हमारे शास्त्रों को पढ़ा है, यदि आप भगवत गीता या उपनिषदों को पढ़ते हैं. आप देख सकते हैं कि सच्चाई हमेशा सामने आती है. आप प्रतिबंध लगा सकते हैं. आप प्रेस को दबा सकते हैं. आप संस्थानों को नियंत्रित कर सकते हैं, आप सीबीआई, ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) और सभी चीजों का इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन सच तो सच है."
 

डॉक्यूमेंट्री को लेकर पीएम मोदी पर हो रहे हमलों के जवाब में बीजेपी भी मोर्चा संभाले हुए है. बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को लेकर जो विवाद शुरू हुआ है उसके कम होने के आसार अभी तो नज़र नहीं आ रहे. इस मामले में अब दिल्ली जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी यानी JNU की एंट्री भी हो गई है. जेएनयू प्रशासन के मुताबिक कुछ छात्रों ने JNU छात्र संघ के नाम पर पर्चे छपवाए थे और ये कहा था कि 24 जनवरी की रात 9 बजे डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग कैंपस में की जाएगी.

कॉलेज प्रशासन का कहना ऐसे किसी आयोजन की इज़ाजत नहीं ली गई है. और इस तरह की गतिविधि यूनिवर्सिटी परिसर की शांति और सद्भाव को बिगाड़ सकती है. यूनिवर्सिटी प्रशासन ने यह भी चेतावनी दी कि आदेश न मानने और डॉक्‍यूमेंट्री की स्क्रीनिंग करने वाले छात्रों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी. एक और यूनिवर्सिटी का आदेश है दूसरी तरफ जेएनयू छात्र संघ जिसका कहना है कि  डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग तय समय पर यानी 09 बजे ही होगी. अब जेएनयू में ये डॉक्यूमेंट्री दिखाई जाएगी या नहीं इसका अपडेट आपको आगे दी लल्लनटॉप की वेबसाइट पर मिल जाएगा.

जेएनयू से अब आते हैं हैदराबाद यूनिवर्सिटी पर. यहां 22 जनवरी को छात्रों के एक गुट ने कैंपस में बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग करवा दी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक स्टूडेंट इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन और मुस्लिम स्टूडेंट फेडरेशन ने यूनिवर्सिटी के अंदर डॉक्यूमेंट्री प्रदर्शनी का आयोजन किया. करीब 50 छात्रों के ग्रुप ने डॉक्यूमेंट्री देखी. इसे लेकर ABVP ने कॉलेज प्रशासन से शिकायत की है और आयोजकों पर कार्रवाई की मांग की है.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक क़ॉलेज के कुछ छात्रों का कहना है कि डॉक्यूमेंट्री सरकार द्वारा लगाए बैन के पहले दिखाई गई. लेकिन कॉलेज प्रशासन का कहना है कि केंद्र के आदेश के एक दिन बाद यानी 22 जनवरी को बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री दिखाई गई. ख़बर लिखे जाने से लेकर अभी तक कोई लिखित शिकायत दर्ज नहीं कराई गई है.

क्या पहली बार किसी डॉक्यूमेंट्री को लेकर विवाद हुआ और बैन किया गया? नहीं. साल 2012 का निर्भया गैंगरेप केस आपको याद होगा. इस वीभत्स कांड पर बीबीसी ने एक डॉक्यूमेंट्री बनाई थी. नाम था  ‘इंडियाज डॉटर’. इसका निर्देशन किया एक ब्रिटिश फिल्ममेकर लेसली उडविन ने. इस डॉक्यूमेंट्री में रेप के दोषी मुकेश सिंह का इंटरव्यू किया गया था जिसमें उसने महिलाओं और दिल्ली पुलिस के खिलाफ अपमानजनक बातें की थीं. इसे लेकर देशभर में बवाल हुआ जिसके बाद केंद्र सरकार ने इसके प्रसारण पर रोक लगा दी थी.  8 मार्च 2015 यानी अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दिन ये इस डॉक्यूमेंट्री को भारत समेत दुनिया भर में रिलीज़ होनी था. रोक लगने के बावजूद बीबीसी ने इसे तय समय से पहले यानी 4 मार्च को दुनिया के कई देशों में रिलीज़ कर दिया.

हमने यहां बीबीसी की ही एक डॉक्यूमेंट्री का हवाला दिया, लेकिन बैन का इतिहास बहुत लंबा और पुराना है. हर पार्टी ने कभी न कभी सत्ता में रहते हुए असहज करने वाली डॉक्यूमेंट्रीज़ को बैन किया ही है. अब बैन के इस प्रोसेस को थोड़ा समझते हैं. बैन के पीछे सरकार ने ये वजह बताई कि ये डॉक्यूमेंट्री-

“भारत की सुप्रीम कोर्ट के अधिकार और विश्वसनीयता पर आक्षेप लगाती है. विभिन्न समुदायों के बीच विभाजन करती है. और भारत में विदेशी सरकारों के काम के बारे में निराधार आरोप लगाती है.”

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इस डॉक्यूमेंट्री को इन प्लैटफॉर्म्स से हटवाने का आदेश इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2021 के अंतर्गत आने वाले एमरजेंसी प्रोविज़न के तहत दिया. ये क्या है -

''इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजी रूल्स 2021 के तहत इन्फॉरमेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग मिनिस्ट्री के पास एक खास अधिकार होता है. वो यूट्यूब, ट्विटर और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया इंटरमीडियरी से एमरजेंसी की स्थिति में कोई भी कॉन्टेंट हटवा सकती है. जिसमें किसी किस्म की देरी बर्दाश्त नहीं करने का प्रावधान है. यानी उस प्लैटफॉर्म से वो कॉन्टेंट तत्काल प्रभाव से हटवाया जाएगा.''

इस नियम के मुताबिक-

''आपातकालीन मामलों में अगर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय श्योर है कि किसी भी कंप्यूटर सोर्स के माध्यम से कोई जानकारी या उसके हिस्से को सार्वजनिक रूप से इस्तेमाल होने से रोकना ज़रूरी है. और वो न्यायोचित है, तो वो अंतरिम आदेश के रूप में कुछ दिशा-निर्देश जारी करती है. इसके तहत अगर वो जानकारी किसी के पास (या कंप्यूटर पर) पाई जाती है, चाहे वो व्यक्ति हो, प्रकाशक हो या बिचौलिया, तो सरकार उस जानकारी या उसके हिस्से को बिना सुनवाई का मौका दिए नियंत्रित कर सकती है.''  

सूचना एवं प्रसारण मंत्रायल के मुताबिक अगर कोई कॉन्टेंट भारत की संप्रभुता, अखंडता, सुरक्षा या कानून व्यवस्था को खतरे में डालता है, मित्र राष्ट्रों से रिश्ते खराब कर सकता है, या किसी अपराध को उकसाने से रोकने के लिए एमरजेंसी प्रोविज़न का इस्तेमाल करके उस कॉन्टेंट को प्लैटफॉर्म से हटवाया जा सकता है. ये तो हुआ एमरजेंसी प्रोवीज़न, जिसका इस्तेमाल बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के मामले में हुआ. अब आते हैं एक ऐसे उदाहरण पर, जिससे बैन करने या न करने को लेकर एक सिस्टम कैसे अपनी समझ पैदा कर सकता है, वो भी सबको सुनवाई का समान अवसर देते हुए, ये स्पष्ट होगा.

ओटीटी प्लैटफॉर्म पर जो भी कॉन्टेंट रिलीज़ किया जाता है, उस पर सेंसरशिप का कोई प्रावधान नहीं है. बस ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को अपने स्तर पर ही दर्शकों की उम्र के हिसाब से कॉन्टेंट को अलग-अलग कैटेगरी में रखना होगा. जैसे 13+ या 16+ या वयस्कों के लिए. इसके अलावा पैरेंटल कंटेंट कंट्रोल की सुविधा देनी होगी. इससे लोग ये तय कर सकेंगे कि उनकी डिवाइस से किसी खास कैटेगरी का कॉन्टेंट बच्चे न देख सकें.

अगर किसी व्यक्ति को ओटीटी पर जाने वाले कॉन्टेंट से आपत्ति है, तो वो इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2021 के तहत शिकायत निवारण के लिए बने 3 टियर ग्रीवंस रिड्रेसल की मदद ले सकता है. या फिर कोर्ट जा सकता है.  2021 में एक मलयालम फिल्म आई थी 'चुरुली'. इसे डायरेक्टर ओटीटी प्लैटफॉर्म सोनी लिव पर रिलीज़ किया जाना था. इस फिल्म के खिलाफ एक पीटिशन दायर हुई. कहा गया कि इस फिल्म को ओटीटी प्लैटफॉर्म से हटवाया जाए. मामला कोर्ट पहुंचा. कहा गया कि 'चुरुली' फिल्म में जिस भाषा का इस्तेमाल किया गया है, वो बहुत गंदी है. जो कि समाज के सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनला और नैतिकता के खिलाफ है.

इस कार्यवाही में CBFC को भी एक पार्टी बनाया गया. क्योंकि आरोप ये था कि फिल्म के जिस वर्ज़न को ओटीटी पर रिलीज़ किया गया, वो सेंसर बोर्ड से पास करवाए हुए वर्ज़न से अलग था. इसकी वजह से एक ज़रूरी मसला खड़ा हुआ कि क्या ओटीटी पर रिलीज़ होने वाले कॉन्टेंट को भी CBFC के सर्टिफिकेशन की ज़रूरत है?
इस मामले की सुनवाई करते हुए केरल हाई कोर्ट ने कहा कि कोर्ट ये फैसला नहीं ले सकती कि फिल्ममेकर को अपनी फिल्म में कैसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए. कोर्ट का काम फिल्ममेकर की आर्टिस्टिक लिबर्टी को ध्यान में रखते हुए सिर्फ ये जांचना है कि वो फिल्म किसी मौजूदा कानून का उल्लंघन करती है या नहीं. इसलिए केरल हाई कोर्ट ने स्टेट पुलिस की टीम को फिल्म देखकर ये जांच करने का आदेश दिया कि पिक्चर में कोई अपराध या कानून उल्लंघन तो नहीं हुआ. पुलिस ने इस मामले की जांच करने के बाद एक कोर्ट में रिपोर्ट सब्मिट की. इसमें बताया गया कि फिल्म में अभद्र भाषा का प्रयोग किया गया है. मगर वो फिल्म को दर्शकों के लिए यकीनी बनाने के मक़सद से किया गया है. इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि जो भाषा फिल्म में इस्तेमाल की गई, वो किसी नियम का उल्लंघन नहीं करती. क्योंकि गलत भाषा का प्रयोग तब अपराध की श्रेणी में आएगा, जब वो सार्वजनिक जगह पर किया जाए.  

केरल हाई कोर्ट ने इस पिटीशन को खारिज कर दिया. कोर्ट ने 1994 में आई फिल्म 'बैंडिट क्वीन' के Bobby Art International Vs Om Pal Singh केस के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि इस फिल्म की सामाजिक प्रधानता और आर्टिस्टिक वैल्यू, फिल्म में दिखाई गई अश्लीलता और अभद्र भाषा पर भारी पड़ती है. इसलिए इस फिल्म को उसके समयकाल और समकालीन मानकों के लिहाज़ से जांचा जाना चाहिए.  तो यहां एक सिस्टम था, जिसने अपना काम किया और उसके बाद बैन करने या न करने का फैसला लिया गया. हमने इस विषय पर ख्यात फिल्मकार आनंद पटवर्धन से बात की, जो दुनियाभर में अपनी डॉक्यूमेंट्रीज़ के लिए जाने जाते हैं. बैन पर वो क्या सोचते हैं, उन्होनें कहा, 

"हम जब फिल्म बनाते हैं उसे पूरी दुनिया नहीं देखती है. हम फिल्म दिखा पाते हैं लेकिन बहुत कम लोगों को. सबसे अच्छी बात ये है कि इस फिल्म को पूरी दुनिया के लोग देख रहे हैं. ये डॉक्यूमेंट्री बहुत पहले आ जानी चाहिए थी. पहले बीबीसी इन सब च़ीजों के बारे में बात नही करता था. मुझे नहीं पता अब बीबीसी को क्या हुआ है, लेकिन ये अच्छी बात है अब वो भारत के लिए बोलने लगा है." 

क्या किसी डॉक्यूमेंट्री को देखते वक्त उसके पब्लिशर की नीयत की भी जांच होनी चाहिए, इसपर आनंद क्या सोचते हैं, उन्होनें कहा, 

“इस डॉक्यूमेंट्री के अंदर कोई झूठ है, ऐसा मैं नहीं मानता हूं. ये डॉक्यूमेंट्री काफी रिसर्च करके बनाई गई है. इस में हर तरह के पहलू रखे गए हैं. यहां तक कि कुछ-कुछ चीजें बताई नहीं गई जो बतानी चाहिए थीं”

सरकार का कहना है कि ये डॉक्यूमेंट्री बदनाम करने की नैरेटिव के तहत बनाई गई है. दो एपिसोड वाली इस डॉक्यूमेंट्री का पहला हिस्सा 17 जनवरी को रिलीज हुआ. डॉक्यूमेंट्री में दंगों के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं. दूसरा एपिसोड 24 जनवरी को रिलीज होना है.

वीडियो: दी लल्लनटॉप शो: BBC की 'इंडिया द मोदी क्वेश्चन' डॉक्यूमेंट्री का ये सच जानते हैं?

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