7 समंदर पार रहकर ये शख्स बना हुआ है पाकिस्तान का दुश्मन
पाकिस्तान में जान का ऐसा खतरा है कि भाईसाहेब सालों से विदेश में रह रहे हैं.
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फोटो - thelallantop
नवाब नवरोज खान की गुरिल्ला वॉर से रखी गई बलूचिस्तान आंदोलन की नींव आज आतंक के नए मुकाम पर है. वक्त बीतने के साथ इसके नेता बदलते रहे हैं. बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी पाकिस्तान की सरकार के लिए बड़ी मुसीबत बनी हुई है.हम आपको बताते हैं बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी के उस मुखिया के बारे में, जो पाकिस्तान की आंखों में फांस की तरह चुभा हुआ है. हर्बियार मर्री: बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी के हेड. बलूचिस्तान की आजादी आंदोलन के बड़े नेता खैर बख्श मर्री के बेटे हर्बियार. खैर बख्श मर्री बलूचिस्तान आंदोलन के बड़े नेता थे. उनकी एक आवाज पर पूरा बलूचिस्तान खड़ा हो जाता था. पर पाकिस्तानी हुक्मरानों से मर्री परिवार की 'दुश्मनी' पुरानी रही. साल 1978 में जब पाकिस्तान की कमान जनरल मुहम्मद जिया उल हक के हाथों में आई, तब इसका बड़ा असर देखने को मिला. हर्बियार मर्री को अपने परिवार के साथ पाकिस्तान छोड़ अफगानिस्तान बसना पड़ा. काबुल में शुरुआती एजुकेशन के बाद हर्बियार मर्री रूस चले गए. पाकिस्तान की जमीं से दूरी और सियासी जंग की नींव रखी जा चुकी थी.
सालों तक दूसरे मुल्कों में रहने के बाद 1992 को हर्बियार परिवार समेत पाकिस्तान लौट आए. पिता खैर बख्स मर्री की उम्र हो चली थी. लिहाजा राजनीति के गलियारों में बलूच आंदोलन की आवाज उठाने के लिए आगे आए खैर बख्स मर्री के बेटे बलाच मर्री. 1996 में हर्बियार मर्री बलूचिस्तान असेंबली के लिए चुने गए. हर्बियान बलूचिस्तान प्रांत के एजुकेशन मिनिस्टर भी बने.1998 में मर्री के परिवार पर जस्टिस नवाज मर्री की हत्या का आरोप लगा. तब से लेकर अब तक हर्बियार का परिवार पाकिस्तान से बाहर रह रहा है. लेकिन सरहदी दूरियां होने की वजह से रंग में भंग करने में हर्बियार मर्री आज भी पाक के दुश्मन बने हुए हैं. हर्बियार ब्रिटेन में रहते हैं. सात समंदर दूर रहकर भी बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी के नेता हर्बियार मर्री बलूचिस्तान की आजादी को लेकर लड़ रहे हैं. पाकिस्तानी हुक्मरान भारत पर हर्बियार मर्री के साथ करीबी संबंध और बलूच प्रांत में हिंसा फैलाने का आरोप लगाते आए हैं. इमरान खान समेत कई पाकिस्तानी बड़े नेता हर्बियार मर्री से मिल विवाद सुलझाने की कोशिश कर चुके हैं. पर हर्बियार और पाकिस्तानी नेताओं के बीच दूरियां वैसी ही बनी हुई हैं, जैसे हमारे मुल्क में अलगाववादी नेताओं से हमारे हुक्मरानों की..