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कौन है 26/11 हमले में शामिल तहव्वुर राणा? जिसे ट्रंप ने भारत को सौंपने का एलान किया

26/11 आतंकी हमले में शामिल Tahawwur Rana के भारत आने का रास्ता भी साफ हो गया. ज्वाइंट प्रेस कांन्फ्रेंस के दौरान Donald Trump ने खुद इसकी घोषणा की. ट्रंप ने कहा कि उसे न्याय का सामना करना पड़ेगा. लेकिन कौन है तहव्वुर राणा? मुंबई के हमले में उसकी भूमिका क्या थी?

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Who is Tahawwur Rana involved in 26/11 mumbai attack Trump announced to return to India pm modi us visit
भारत पहले से तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण की मांग कर रहा था (फोटो: आजतक)
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अर्पित कटियार
14 फ़रवरी 2025 (Updated: 12 अप्रैल 2025, 03:26 PM IST)
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दो दिवसीय दौरे पर अमेरिका पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से मुलाकात की. इसके साथ ही 26/11 आतंकी हमले में शामिल तहव्वुर राणा (Tahawwur Rana) के भारत आने का रास्ता भी साफ हो गया. ज्वाइंट प्रेस कांन्फ्रेंस के दौरान ट्रंप ने खुद इसकी घोषणा की (PM Modi meets Donald Trump). ट्रंप ने कहा कि उसे न्याय का सामना करना पड़ेगा. भारत अरसे से तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण की मांग कर रहा था. पिछले साल नंवबर में उसने प्रत्यर्पण के खिलाफ पुनर्विचार याचिका भी दायर की थी. जिसे अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था.

ट्रंप ने तहव्वुर को भारत के लिए प्रत्यर्पित करने की मंजूरी देते हुए कहा,

‘आज मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि मेरे प्रशासन ने दुनिया के सबसे बुरे लोगों में से एक और मुंबई आतंकवादी हमले के साजिशकर्ताओं में से एक को भारत में न्याय का सामना करने के लिए प्रत्यर्पित करने को मंजूरी दे दी है. वह न्याय का सामना करने के लिए भारत वापस जा रहा है.’

पाकिस्तान मूल का तहव्वुर राणा फिलहाल लॉस एंजिल्स के एक मेट्रोपॉलिटन डिटेंशन सेंटर में बंद है. राणा के पास कनाडा की नागरिकता भी है. तहव्वुर राणा आतंकवादी डेविल कोलमैन हेडली का बचपन का दोस्त है. हेडली 26/11 हमले का मुख्य साजिशकर्ता था. जिसकी मदद तहव्वुर राणा ने की थी. लेकिन कौन है तहव्वुर राणा और मुंबई के हमले में उसकी भूमिका क्या थी, बताते हैं.

कहां से शुरू हुआ था सिलसिला?

26 नवंबर 2008 को भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में आतंकी हमलों का सिलसिला शुरू हुआ था. पाकिस्तान से आए 10 आतंकियों ने 60 घंटों तक पूरे मुल्क को सदमे में डाले रखा. कई अहम ठिकानों पर हमले किए. 166 लोगों की हत्या की. बाद में NSG कमांडोज को बुलाना पड़ा. पुलिस और कमांडोज़ की कार्रवाई में 09 आतंकी मारे गए. एक ज़िंदा पकड़ा गया. अज़मल आमिर कसाब. उसको नवंबर 2012 में पुणे की यरवदा जेल में फांसी दे दी गई. होने को तो कहानी यहीं पर खत्म हो सकती थी. लेकिन मोहरों को मात देकर गेम खत्म नहीं किए जाते. 

26/11
26/11 हमला (फोटो: आजतक)

तहव्वुर राणा भी इस हमले का मुख्य साजिशकर्ता है. आरोप हैं कि राणा को हमले की साज़िश के बारे में पहले से पता था. सारी प्लानिंग उसकी नज़रों के सामने हुई थी. उसने टारगेट की रेकी भी की थी. हालांकि, उसका परिचय यहीं पर ख़त्म नहीं होता. वो पाकिस्तान की सेना में डॉक्टर के तौर पर काम कर चुका है. और, तहव्वुर राणा मुंबई हमलों के सबसे संगीन किरदार का लंगोटिया दोस्त भी था और उसी दोस्त ने उसका खेल बिगाड़ दिया. कौन था वो? ये आगे बताएंगे.

कहानी तहव्वुर राणा की

तारीख़, 09 अक्टूबर 2009. शिकागो के ओ’हेयर इंटरनैशनल एयरपोर्ट पर एक शख़्स जल्दबाजी में था. उसे इस्लामाबाद की फ़्लाइट पकड़नी थी. वो पहले भी कई मौकों पर पाकिस्तान जा चुका था. लेकिन इस बार उसके चेहरे पर खौफ़ साफ़ नज़र आ रहा था. उसका खौफ़ उस वक़्त सच हो गया, जब FBI एजेंट्स ने उसे बोर्डिंग से पहले ही अरेस्ट कर लिया. उस पर FBI की नज़र बहुत पहले से थी. वजह, आतंकी संगठनों से उसका कनेक्शन.

पकड़े गए शख़्स की एक पुरानी आदत थी. जब भी किसी मुश्किल परिस्थिति में फंसता, वो तोते की तरह अपनी ज़ुबान खोल देता था. और, सरकारी गवाह बनकर अपनी सज़ा कम करवा लेता. उसका नाम था, डेविड कोलमैन हेडली. हेडली ने FBI के सामने भी अपनी पुरानी तरकीब अपनाई थी. उसने मुंबई समेत कई आतंकी हमलों में अपनी संलिप्तता स्वीकार ली. पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI, लश्कर-ए-तैयबा और अलकायदा के अंदर की ख़बरें बताई. मगर FBI इतने से ही संतुष्ट नहीं थी. ऊपर से उसके ऊपर प्रत्यर्पण और मौत की सज़ा का ख़तरा मंडरा रहा था. इससे बचने के लिए वो बोला, मैं आपको नाम बताता हूं. मुझे बचा लो. मैं गवाही दूंगा.

जो नाम उसने लिया, वो उसके बचपन का सबसे ख़ास दोस्त था. नाम, तहव्वुर हुसैन राणा. दोनों का परिवार रसूखदार था. दोनों ने पाकिस्तानी पंजाब के एक ही मिलिटरी कॉलेज से पढ़ाई की थी. उनके बीच याराना हुआ. कॉलेज की दोस्ती आगे भी कायम रही. जब हेडली हेरोइन के साथ पकड़ा गया, तब राणा ने अपना घर गिरवी रखकर उसे ज़मानत दिलवाई थी. मगर हेडली ने अपनी जान बचाने के लिए अपने दोस्त की क़ुर्बानी देने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई. आगे चलकर वो राणा के केस का सबसे बड़ा गवाह बना. राणा पर तीन मुख्य आरोपों में मुकदमा चला.

- पहला, डेनिश अख़बार के दफ़्तर पर आतंकी हमले में सहायता दी.

- दूसरा, आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा को सपोर्ट दिया.

- तीसरा, मुंबई हमले की साज़िश रचने में मदद की.

जून 2011 में शिकागो की एक अदालत ने राणा को तीसरे आरोप में बरी कर दिया. लेकिन पहले और दूसरे आरोप में उसको दोषी करार दिया गया. 2013 में उसे 14 बरस की सज़ा सुनाई गई. 2020 में वो कोविड पॉजिटिव हो गया. तब उसे जेल से रिहा कर दिया गया. 

भारत इससे खुश नहीं था. NIA ने कहा कि हमारे पास राणा के ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत हैं. उसे भारत भेजा जाए. हम उसे अपने हिसाब से सज़ा देंगे. 

रिहाई के तुरंत बाद भारत सरकार ने राणा के प्रत्यर्पण की याचिका लगाई. भारत की याचिका के बाद राणा को फिर से अरेस्ट कर लिया गया. उसके प्रत्यर्पण पर अदालत का फ़ैसला आया. कोर्ट ने कहा, राणा भारत में हत्या, आतंकी साज़िश रचने और आतंकी गतिविधियां करने का आरोपी है. ये दोनों देशों के बीच हुई प्रत्यर्पण संधि में फ़िट बैठता है. इसलिए, उसे भारत प्रत्यर्पित किया जा सकता है. आखिरकार अब ट्रंप ने इसकी खुद घोषणा की.

ये तो हुई तहव्वुर राणा की हालिया स्थिति. अब उसका इतिहास भी जान लेते हैं.

राणा जनवरी 1962 में पाकिस्तान के साहीवाल में पैदा हुआ था. उसने मेडिकल की डिग्री ली. फिर पाकिस्तान आर्मी की मेडिकल कोर में नौकरी पकड़ ली. उसकी पत्नी भी डॉक्टर थी. 1997 में दोनों पति-पत्नी कनाडा शिफ़्ट हो गए. 2001 में उन्हें नागरिकता मिल गई. कनाडा में राणा ने कई बिजनेस शुरू किया. उसका फ़ोकस इमिग्रेशन सर्विस और ट्रैवल एजेंसी पर था.

2006 में रिचर्ड हेडली ने उसे मुंबई में इमिग्रेशन फ़र्म शुरू करने की सलाह दी. इसी सिलसिले में दोनों कई बार मुंबई आए. जांच एजेंसियों का कहना है कि ये फ़र्म आतंकी हमले की रेकी का झांसा देने के लिए खोला गया था. हेडली ने अपनी गवाही में इसकी पुष्टि की है. हेडली ने कहा था कि उसने राणा को पूरे प्लान के बारे में बताया था. राणा की सलाह पर ही उसने अपना नाम बदला. उसने अपनी भारत-यात्रा का मकसद बताने में भी हेरफेर की. ये भारत का वीजा लगवाने के लिए किया गया था. जैसा कि हमने पहले भी बताया, डेविड हेडली 2006 से पहले तक दाऊद गिलानी के नाम से जाना जाता था. उसके पिता सैयद सलीम गिलानी पाकिस्तान के रहने वाले थे. पेशेवर तौर पर ब्रॉडकास्टर थे. वॉशिंगटन डीसी में पाकिस्तानी दूतावास की एक पार्टी में उनकी मुलाक़ात सेरिल हेडली से हुई. दोनों को एक-दूसरे का साथ रास आया. कुछ समय बाद उन्होंने शादी कर ली. फिर 1960 में उनके घर लड़के का जन्म हुआ. जिसका नाम उन्होंने रखा, दाऊद.

दाऊद की पैदाइश के कुछ समय बाद ही सैयद और सेरिल पाकिस्तान आ गए. लेकिन उनका रिश्ता जमा नहीं. कुछ समय बाद ही उनका तलाक हो गया. दाऊद पिता के पास ही रह गया. पिता ने दूसरी शादी कर ली थी. सौतेली मां के साथ उसके रिश्ते ठीक नहीं थे. इसी वजह से उसे अक्सर घर से दूर रखा गया. उसे रेसिडेंशियल स्कूलों में पढ़ने के लिए भेज दिया गया.

बाद में दाऊद को मिलिटरी स्कूल में दाखिला मिला. यहीं पर उसके दिमाग में भारत के ख़िलाफ़ ज़हर का बीज भरा गया था. नवंबर 2011 में फ़्रंटलाइन के लिए अज़मत ख़ान ने लिखा है,

‘गिलानी ने पाकिस्तान मिलिटरी के प्राइवेट स्कूल में पढ़ाई की. वहां की टेक्स्टबुक्स पाकिस्तान के लिए बलिदान देने और भारत के प्रति शत्रुता की भावना बढ़ाने के लिए कुख्यात थीं. हेडली ने बाद में माना भी कि मुंबई हमलों के ज़रिए उसने भारत के हमले का बदला लिया था. उसके मुताबिक, 1971 के युद्ध के दौरान भारतीय वायु सेना ने उसके स्कूल पर बमबारी की थी.’

दाऊद जब तक 17 बरस का हुआ, तब तक उसका पिता और सौतेली मां के साथ झगड़ा बढ़ गया था. फिर वो अपनी मां के पास रहने अमेरिका चला गया. वहां उसकी मां पब चलाती थी. दाऊद ने कुछ समय वहां काम किया. वहीं पर उसकी मुलाक़ात कुछ नशेड़ियों से हुई. वे अक्सर आपस में पाकिस्तान का ज़िक्र किया करते थे. दाऊद तब तक नशे का आदी हो चुका था. उसने सोचा कि पाकिस्तान से ड्रग्स लाकर बढ़िया फायदा कमाया जा सकता है. 1984 में उसने पहली बार कोशिश भी की. लेकिन उसे पाकिस्तान में ही पकड़ लिया गया. यहां पर उसका एक टैलेंट काम आया. वो लोगों को बहलाने में माहिर था.

पाकिस्तानी अधिकारियों को उसने आसानी से अपने पाले में कर लिया और आसानी से छूट गया. आगे चलकर ये उसका ट्रेडमार्क हथियार बन गया.

मसलन, 1988 में उसे अमेरिका में ड्रग एन्फ़ोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन (DEA) ने दो किलो हेरोइन के साथ पकड़ा. 09 साल की सज़ा हुई. उसने मुखबिर बनने का ऑफ़र दिया. 04 साल में ही छूट गया.1997 में उसे फिर से हेरोइन के साथ पकड़ा गया. फिर सज़ा हुई. वो फिर से मुखबिर बना. फिर से उसकी सज़ा कम हो गई.

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फिर आया 2001 का साल. 11 सितंबर को अमेरिका पर बड़ा हमला हुआ. लगभग तीन हज़ार लोग मारे गए. अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने पूरी दुनिया में आतंकियों के ख़िलाफ़ ऑपरेशन चलाया. इसी दौरान दाऊद गिलानी ने DEA का साथ छोड़कर आतंकियों की मुखबिरी करने का फ़ैसला किया. उसने लश्कर-ए-तैयबा में घुसपैठ की. लेकिन बहुत जल्द वो ख़ुद रैडिक्लाइज़ हो चुका था. लश्कर में उसकी मुलाक़ात साजिद मीर से हुई. 2005 में साजिद मीर ने दाऊद को भारत जाने का ऑफ़र दिया. तब दाऊद गिलानी ने अपने बचपन के दोस्त तहव्वुर राणा से संपर्क किया. उसकी सलाह पर उसने अपना नाम बदलकर रिचर्ड कोलमैन हेडली कर लिया. फिर दोनों भारत आए. राणा भारत के कई हिस्सों में घूमा. उन दोनों ने फ़िल्मकार महेश भट्ट के बेटे राहुल भट्ट को फ़िल्मों में लॉन्च करने का ऑफ़र भी दिया था. हेडली और राहुल भट्ट ने साथ में लगभग एक हज़ार घंटे बिताए थे. ये दोस्ती तब टूटी, जब मुंबई हमला हुआ और उसमें हेडली के शामिल होने की ख़बर बाहर आई.

अरेस्ट होने के बाद हेडली के सारे दरवाज़े बंद हो चुके थे. तब उसने अमेरिकी सरकार के साथ डील कर ली. इसके एवज में उसने तहव्वुर राणा का नाम लिया. अलग-अलग आतंकी हमलों में उसकी भूमिका बताई. उसने राणा के ख़िलाफ़ गवाही भी दी. इसी के आधार पर राणा को एक डेनिश अख़बार के दफ़्तर पर हमले की साज़िश रचने का दोषी करार दिया गया था. 

राणा के वकीलों ने कोर्ट में कहा कि हेडली बहुत बड़ा झूठा है. उसने पूरी उम्र यही काम किया है. उसके ऊपर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए. लेकिन कोर्ट ने उनकी दलीलों को खारिज कर दिया.
डेविड हेडली को 2013 में 35 बरस की जेल की सज़ा सुनाई गई. सरकार उसको भी भारत लाने के लिए काम कर रही है.

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