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1991 वाला पूजा स्थल अधिनियम क्या है, जो संभल मस्जिद विवाद के साथ फिर चर्चा में आ गया है?

संभल जिले की शाही जामा मस्जिद विवाद थमने का नाम ले रहा है. संभल की शाही जामा मस्जिद को लेकर हो रही हिंसा और आगजनी के बीच ये जानना जरूरी है कि आखिर इस मामले की कानूनी स्थिति क्या है?

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What is the legal status of Sambhal Masjid dispute? Why are questions being raised on the Places of Worship Act?
संभल मस्जिद विवाद की कानूनी स्थिति क्या है? (Photo Credit: Aaj Tak)
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अर्पित कटियार
29 नवंबर 2024 (Updated: 29 नवंबर 2024, 11:20 AM IST)
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संभल जिले की शाही जामा मस्जिद से जुड़ा विवाद (Sambhal Mosque Controversy) थमने का नाम नहीं ले रहा है. वही जामा मस्जिद, जहां एक पक्ष का दावा है कि इस जगह पर पहले श्रीहरिहर मंदिर हुआ करता था तो वहीं दूसरे पक्ष का कहना है कि ये उनकी ऐतिहासिक मस्जिद है. हिंसा तब भड़की जब सर्वे करने के लिए एक टीम मस्जिद के अंदर पहुंची थी. उसके बाद से संभल के पूरे इलाके में तनाव पसरा हुआ है. फिलहाल, हालात को देखते हुए बाजार, इंटरनेट सेवा और स्कूलों को बंद रखा गया है. इस बीच एक बार फिर से प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की बात हो रही है. आगे हम इसी कानून के बारे में जानेंगे.

क्या कहता है कानून?

सन 1991 में जब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था. लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा और उनकी गिरफ्तारी के अलावा कारसेवकों पर गोलीबारी ने सांप्रदायिक तनाव पैदा कर दिया था. देश भर में हिंदू-मुस्लिम दंगे हो रहे थे. उस वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार एक कानून लेकर आई थी. जिसका नाम था पूजा स्थल कानून (Places Of Worship Act). 

यह कानून कहता है कि 15 अगस्त, 1947 को देश में जो भी धार्मिक स्थल, जिस भी स्थिति में है उनकी वही स्थिति बरकरार रहेगी. अधिनियम की धारा 3 कहती है कि कोई भी व्यक्ति किसी धार्मिक संप्रदाय के किसी उपासना स्थल को किसी अलग धार्मिक संप्रदाय के उपासना स्थल में नहीं बदलेगा. इसका उल्लंघन करने पर 3 साल तक की जेल हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है. हालाकिं, रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को इससे दूर रखा गया.

‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट’ को चुनौती

इस एक्ट को लेकर कुछ पक्षों की तरफ से लगातार सवाल उठाए गए हैं. एक ऐसी ही याचिका बीजेपी नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से 2021 में दाखिल की गई थी. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अश्विनी कुमार ने कहा था कि ये कानून भारत के संविधान द्वारा निर्धारित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन है. इसके पीछे दलील ये दी गई कि ये कानून उन पूजा स्थलों को वापस मूल धर्म के अनुयायियों को सौंपे जाने से रोकता है, जिन्हें सदियों पहले आक्रमणकारियों और शासकों ने नष्ट कर दिया था.

ज्ञानवापी मामले की सुनवाई करते हुए पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि किसी जगह के धार्मिक चरित्र का पता लगाना ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट’ की धारा 3 और 4 का उल्लंघन नहीं करता है. मतलब, किसी धार्मिक स्थल की प्रकृति को बदला नहीं जा सकता, लेकिन यह जरूर पता लगाया जा सकता है कि उस पूजा स्थल की असल प्रकृति क्या है.

कोर्ट ने दिया था सर्वे का आदेश

19 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के वकील विष्णु शंकर जैन ने संभल की चंदौसी सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की कोर्ट में याचिका लगाई थी. याचिका में दावा किया गया कि संभल की शाही जामा मस्जिद के पहले वहां पर श्रीहरिहर मंदिर था. इसके लिए उनकी तरफ से दो किताबों और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की एक रिपोर्ट का हवाला दिया गया है. इनमें बाबरनामा, आइन-ए-अकबरी और ASI की एक 150 साल पुरानी एक रिपोर्ट शामिल है.

याचिका दायर होने के बाद कोर्ट ने मस्जिद का सर्वे कराने का आदेश दिया था. इसके बाद से ही संभल में तनाव का माहौल है. 

वीडियो: Sambhal Violence: संभल में पहली गोली किसने चलाई?

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