कार्बन डेटिंग क्या है, जिसकी मांग ज्ञानवापी मामले में की गई है?
ज्ञानवापी केस में कार्बन डेटिंग को लेकर अदालत में 29 सितंबर को सुनवाई होनी है.

ज्ञानवापी मस्जिद परिसर (Gyanvapi Case) में स्थित कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग (Carbon Dating) की मांग की गई है. इसे लेकर 29 सितंबर को सुनवाई होनी है. इस कार्बन डेटिंग को लेकर परिसर में पूजा की मांग कर रहीं याचिकाकर्ताओं के बीच विवाद की बात भी सामने आई है. ऐसे में ये समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर ये कार्बन डेटिंग है क्या, जिसका नाम अक्सर किसी पुरातात्विक खोज के समय भी लिया जाता है.
कार्बन डेटिंग क्या है?कोई सभ्यता कितनी पुरानी है, इसका पता लगाने के लिए खुदाई में मिली कुछ चीजों की कार्बन डेटिंग के बारे में आपने कभी न कभी जरूर सुना होगा. कार्बन डेटिंग एक ऐसा तरीका है, जिससे कोई चीज कितनी पुरानी है, इसका पता लगाया जाता है. इसकी परिभाषा पर आएं, तो कार्बन डेटिंग एक ऐसी विधि है जो कार्बन-बेस्ड चीजों यानी कार्बनिक पदार्थों की अनुमानित उम्र के बारे में बताती है. कार्बन डेटिंग से लकड़ी, मिट्टी की चीजें, कई तरह की चट्टानों वगैरह की उम्र का अंदाजा लगाया जाता है.
कार्बन डेटिंग का तरीका इस तथ्य पर आधारित है कि सभी जीवों और जीवों के अंश से बनी चीजों में कार्बन होता है. इसी कार्बन के आधार पर उस चीज की उम्र कैलकुलेट की जाती है. कार्बन डेटिंग मेथड में इस तथ्य का इस्तेमाल होता है कि कार्बन का एक आइसोटोप कार्बन-14 (C-14) रेडियोएक्टिव होता है और इसकी मात्रा एक खास दर से घटती है.
कार्बन के आइसोटोप्स का क्या रोल होता है?आगे बढ़ने से पहले कार्बन के आइसोटोप के बारे में भी जान लीजिए. आइसोटोप यानी समस्थानिक. किसी तत्व के समस्थानिक ( isotopes) वो एटम होते हैं, जिनमें प्रोटॉन की संख्या समान होती है, लेकिन न्यूट्रॉन की संख्या अलग-अलग होती है. इसका मतलब है कि ये रासायनिक रूप से बहुत समान होते हैं, लेकिन इनके द्रव्यमान अलग-अलग होते हैं. तो कार्बन के तीन आइसोटोप्स होते हैं, जो प्राकृतिक तौर पर पाए जाते हैं- कार्बन-12, कार्बन-13 और कार्बन-14. कार्बन-12 और कार्बन-13 कार्बन के स्टेबल आइसोटोप हैं, जबकि कार्बन-14 रेडियोएक्टिव होता है. मतलब कार्बन-14 अनस्टेबल होता है.
वातावरण में कार्बन का सबसे ज्यादा पाए जाने वाला आइसोटोप कार्बन-12 है, जबकि कार्बन-14 बेहद ही कम मात्रा में होता है. वातावरण में कार्बन-12 से कार्बन-14 का अनुपात लगभग स्थिर होता है. अब क्योंकि पेड़-पौधों और जानवरों को अपना कार्बन वातावरण से मिलता है, तो वे कार्बन-12 और कार्बन-14 समस्थानिकों को लगभग उसी अनुपात में प्राप्त करते हैं, जिस अनुपात में कार्बन के ये दोनों समस्थानिक वातावरण में उपलब्ध होते हैं.
जब कोई जीव मर जाता है, तब इनका वातावरण से कार्बन का आदान-प्रदान भी बंद हो जाता है. इसलिए जब पौधे और जानवर मरते हैं, तो उनमें मौजूद कार्बन-12 से कार्बन-14 के अनुपात में बदलाव आने लगता है. इस बदलाव को मापने के बाद किसी जीव की अनुमानित उम्र का पता लगाया जाता है.
जैसा कि बताया गया है कि कार्बन-12 स्टेबल होता है, इसकी मात्रा घटती नहीं है. वहीं कार्बन-14 रेडियोएक्टिव होता है और इसकी मात्रा घटने लगती है. कार्बन-14 लगभग 5,730 सालों में अपनी मात्रा का आधा रह जाता है. इसे हाफ-लाइफ कहते हैं.
कार्बन डेटिंग की भी सीमाएं हैंजिस चीज की कार्बन डेटिंग की जाती है, उसमें कार्बन परमाणुओं की संख्या और उसके आइसोटोप का अनुपात निकाला जाता है. हालांकि, कार्बन डेटिंग को सभी परिस्थितियों में लागू नहीं किया जा सकता है. जैसे, इससे किसी धातु की उम्र का पता नहीं लगाया जा सकता.
किसी विशेष स्थान पर एक चट्टान कितने समय से है, यह कार्बन डेटिंग की अप्रत्यक्ष विधियों का इस्तेमाल करके निर्धारित किया जा सकता है. अगर चट्टान के नीचे कार्बनिक पदार्थ, मृत पौधे या कीड़े फंसे हुए हों, तो वे इस बात का संकेत दे सकते हैं कि वो चट्टान, या कोई अन्य चीज उस जगह पर कब से है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक ज्ञानवापी मामले में याचिकाकर्ताओं ने कार्बन डेटिंग की मांग की है, लेकिन अभी ये साफ नहीं है कि इस मामले में कार्बन डेटिंग लागू की जा सकती है या कुछ दूसरे तरीके ज्यादा बेहतर होंगे.
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