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कांग्रेस और विपक्ष नहीं जीत पा रहे लोगों का भरोसा, 'मूड ऑफ द नेशन सर्वे' में आया सामने

लोगों को विपक्ष की नीयत और क्षमता दोनों पर शक है.

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देश का मिज़ाज सर्वे 2022 (फोटो- आजतक)
16 अगस्त 2022 (Updated: 16 अगस्त 2022, 21:23 IST)
Updated: 16 अगस्त 2022 21:23 IST
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इस महीने की 5 तारीख को जब कांग्रेस के शीर्ष नेता बेरोजगारी और महंगाई के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सड़कों पर उतरे, तो उनके निशाने पर पीएम मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार थी. कांग्रेस पार्टी जिन मुद्दों को उठा रही थी, उन्हें इंडिया टुडे के ‘देश का मिज़ाज सर्वेक्षण 2022’ में भी शामिल लोगों ने मोदी सरकार की दो सबसे बड़ी विफलताएं माना है. इस तथ्य पर एक आधिकारिक मुहर भी उसी दिन तब लग गई, जब भारतीय रिजर्व बैंक ने स्वीकार किया कि महंगाई "बर्दाश्त की ऊपरी सीमा पर बनी हुई है."

सवाल- विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करने के लिए वर्तमान नेताओं में सबसे उपयुक्त कौन हैं?

इसके जवाब में सर्वे में शामिल 27 फीसदी लोगों ने अरविंद केजरीवाल का नाम लिया. वहीं 20 फीसदी लोगों ने ममता बनर्जी का नाम चुना. फिर 13 फीसदी लोगों ने राहुल गांधी, 5 फीसदी ने नवीन पटनायक और महज 4 फीसदी लोगों ने शरद पवार का नाम विपक्ष के नेता के तौर पर चुना.

सवाल- क्या आपको लगता है कि केंद्र में मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी को चुनौती देने के लिए विपक्ष का गठबंधन बन पाएगा?

42 फीसदी लोगों ने इस सवाल का जवाब हां में दिया. वहीं 40 फीसदी लोगों का मानना है कि भाजपा के खिलाफ विपक्ष का गठबंधन नहीं बन पाएगा. बाकी बचे लोग या तो इसका जवाब नहीं जानते हैं या वो अपने जवाब को लेकर निश्चिंत नहीं हैं.

अधिकतर, दूसरे देशों की तरह भारत भी रूस-यूक्रेन युद्ध और कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों जैसी वैश्विक राजनैतिक और आर्थिक घटनाओं का खामियाजा भुगत रहा है. देश का विदेशी मुद्रा भंडार घट रहा है और रुपया, डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है. इन परिस्थितियों में देश के शीर्ष विपक्षी नेता दिल्ली की सड़कों पर हों और जवाब मांग रहे हों, तो कायदे से तो सत्तारूढ़ भाजपा को अपनी सरकार के प्रदर्शन के पक्ष में तर्क देते हुए बचाव के लिए दौड़ लगानी चाहिए थी.

इसकी जगह, शाम तक खुद कांग्रेस नेता ही महंगाई और बेरोजगारी के खिलाफ अपने प्रदर्शन का बचाव करते रहे और उसे सही ठहराने का प्रयास करते नजर आ रहे थे. बीजेपी ने आरोप लगाया कि ये प्रदर्शन कांग्रेस अध्यक्ष और उनके बेटे राहुल गांधी के खिलाफ नेशनल हेराल्ड मामले में चल रही ईडी जांच से ध्यान भटकाने की कांग्रेस पार्टी की एक चाल थी.

सवाल- बतौर विपक्षी दल कांग्रेस के प्रदर्शन का मूल्यांकन आप किस तरह करेंगे ?

24 फीसदी लोगों ने इसे असाधारण बताया, 16 फीसदी लोगों ने अच्छा कहा, 14 फीसदी ने औसत कहा और 19 फीसदी लोगों ने कहा खराब. 16 फीसदी लोग ऐसे हैं जो मानते हैं कि कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत खराब रहा. वहीं 11 फीसदी लोगों ने इस पर अपनी राय नहीं दी.

दरअसल, कुछ हफ्ते पहले जब ईडी ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी से पूछताछ की थी, तो कांग्रेस नेताओं ने देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन किया था. तब आलोचकों का कहना था कि कांग्रेस के नेता, जो मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से किसी भी सार्वजनिक मुद्दे पर लंबा आंदोलन चलाने में विफल रहे थे, अपने घरों से केवल तभी बाहर निकले जब गांधी परिवार को ईडी पूछताछ का सामना करना पड़ा. कांग्रेस नेताओं को उम्मीद थी कि 5 अगस्त के विरोध के बाद उनपर लगने वाला ये आरोप खत्म हो जाएगा.

इसकी जगह, बीजेपी ने इसे नया मोड़ दे दिया क्योंकि ये विरोध प्रदर्शन ईडी की ओर से यंग इंडिया के कार्यालय को सील करने के दो दिन बाद हुआ था. और तो और, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विरोध के समय के चयन के पीछे एक और गहरी साजिश और गलत मंशा खोज निकाली. उन्होंने कहा कि कांग्रेस का ये प्रदर्शन अल्पसंख्यकों को खुश करने का एक और कुटिल प्रयास था, क्योंकि ठीक दो साल पहले, इसी दिन पीएम मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास किया था. 

कांग्रेस लोगों को पक्ष में नहीं कर पा रही

समय का गलत चयन एक ऐसा मुद्दा है, जिसने पिछले आठ वर्षों में अक्सर कांग्रेस को परेशान किया है. यह पहली बार नहीं है जब सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी जैसे शीर्ष नेताओं सहित पार्टी राष्ट्रीय मुद्दों को उठाने के लिए सड़कों पर उतरी है. 2015 में मोदी सरकार को भूमि अधिग्रहण पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम (2013) में प्रस्तावित संशोधनों को वापस लेने के लिए मजबूर करने से लेकर 2020 में कोविड-प्रेरित लॉकडाउन के दौरान प्रवासियों के साथ पैदल चलने तक, आर्थिक मुद्दों पर सरकार को नियमित रूप से निशाने पर लेने के लिए कांग्रेस, विशेष रूप से राहुल, ने अतीत में एक उग्र विपक्ष की भूमिका निभाई है. और देश का मिज़ाज सर्वे से पता चलता है कि लोग विपक्षी दल के रूप में पार्टी के प्रदर्शन की सराहना कर रहे हैं. छह महीने पहले हुए सर्वे में जहां कांग्रेस के प्रदर्शन को 33 फीसद लोगों ने अच्छा या उत्कृष्ट के रूप में रेटिंग दी थी, वहीं ताजा सर्वेक्षण में लगभग 40 फीसद लोग ऐसा मान रहे हैं.

लेकिन पार्टी अभी भी लोगों को पूरी तरह अपने पक्ष में नहीं कर पा रही है क्योंकि जमीन पर इसके अधिकांश ऐक्शन क्षणिक और सीमित साबित हो रहे हैं. पार्टी कोई लंबा और जोरदार राजनैतिक आंदोलन चलाने में सक्षम नहीं है और ना ही उसके पास एक ऐसा कथ्य है, जो लोगों को उसके साथ जोड़कर रख सके. और सर्वे में शामिल अधिकतर लोगों को लगता है कि पार्टी की सुस्ती या जनता से अलगाव के लिए शीर्ष नेतृत्व-गांधी परिवार-जिम्मेदार है. 

पार्टी गांधी परिवार को ही बस आखिरी उम्मीद के रूप में पेश करती आ रही है और इससे पीछे हटने को तैयार नहीं है. लेकिन सर्वे में शामिल आधे से अधिक लोगों का कहना है कि गांधी परिवार के बिना कांग्रेस कहीं बेहतर प्रदर्शन कर सकती है. फिर भी जो लोग अभी भी गांधी परिवार में ही पार्टी का भविष्य देखते हैं, उनकी नजर में राहुल ही वो पहली पसंद हैं, जो कांग्रेस को फिर से खड़ा कर सकते हैं. पार्टी में नेतृत्व की कितनी कमी है, वह इससे जाहिर हो जाती है कि लगभग 18 फीसद उत्तरदाताओं ने मनमोहन सिंह को पार्टी के संभावित उद्धारकर्ता के रूप में देखा है, जो अब सक्रिय राजनीति से दूर जा चुके हैं.

सवाल- कौन सा कांग्रेसी नेता पार्टी में नई जान फूंकने के लिए सबसे उपयुक्त है?

इसपर 23 फीसदी लोगों ने राहुल गांधी को चुना. 16 फीसदी लोग मनमोहन सिंह के पक्ष में दिखे. लगभग 14 फीसदी लोगों ने सचिन पायलट का नाम चुना. 9 फीसदी ने प्रियंका गांधी और महज 6 फीसदी लोगों ने सोनिया गांधी का नाम लिया.

सवाल- गांधी परिवार के बाहर का कौन सा नेता कांग्रेस का नेतृत्व करने के लिए सबसे उपयुक्त है?

29 फीसदी लोगों ने मनमोहन सिंह का नाम लिया. 20 फीसदी लोगों ने सचिन पायलट का नाम लिया. 8 फीसदी लोग पी चिदंबरम के पक्ष में हैं. वहीं 6 फीसदी लोगों ने अशोक गहलोत का नाम लिया और गुलाम नबी आजाद के पक्ष में 5 फीसदी लोग हैं.

सवाल- क्या आप सोचते हैं कि गांधी परिवार के बगैर कांग्रेस की स्थिति बेहतर होगी?

52 फीसदी लोगों ने इसके जवाब में हां कहा है, 30 फीसदी ने ना कहा और 18 फीसदी लोग निश्चिंत नहीं हैं.

सर्वे में शामिल लोगों का मनमोहन सिंह पर भरोसा, बुजुर्ग सोनिया गांधी के उलट है, जो फिलहाल न केवल पार्टी की बागडोर संभाल रही हैं, बल्कि हाल ही में उन्होंने संसद के अंदर और बाहर नए जोश का प्रदर्शन भी किया है. केवल छह फीसदी लोगों को लगता है कि कांग्रेस की सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहने वालीं सोनिया गांधी में अभी भी पार्टी को फिर से जिंदा करने का माद्दा बचा है. इस साल की शुरुआत में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपने नेतृत्व में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन से उबर रही प्रियंका गांधी के लिए तो खबर और भी बुरी है. अक्सर कांग्रेस के एक वर्ग की ओर से उन्हें राहुल के विकल्प के रूप में पेश किया जाता रहा है. लेकिन उनपर केवल सात फीसद लोगों ने भरोसा जताया है, जबकि उससे दोगुने यानी 14 फीसद उत्तरदाताओं ने 44 वर्षीय सचिन पायलट का समर्थन किया, जो अशोक गहलोत को हटाकर राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में अपनी नियुक्ति के लिए गांधी परिवार के अनुमोदन की धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा कर रहे हैं.

केजरीवाल और नीतीश में टक्कर

सर्वे में शामिल लोगों का कांग्रेस नेतृत्व में भरोसा घटा है, तो वहीं भ्रष्टाचार के आरोप में अपने एक शीर्ष मंत्री के जेल जाने के बाद से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी परेशान हैं और इससे लोगों के बीच विपक्षी दलों के एक प्रभावी गठबंधन बनने पर अभी भी मायूसी ही नजर आती है. केवल 42 फीसद लोगों को लगता है कि ये अभी भी संभव है, जबकि पिछले दो सर्वे में 40 फीसद लोग ऐसा मान रहे थे.

जहां कम लोग ही अब राहुल गांधी और ममता बनर्जी को मोदी के विकल्प के रूप में देखते हैं, वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर भरोसे में अचानक तेज उछाल आई है. वो अब अपनी पार्टी ‘आप’ के विस्तार अभियान पर हैं और इस साल की शुरुआत में उनकी पार्टी ने पंजाब में सरकार बनाई है. सर्वे में शामिल 27 फीसद से अधिक लोगों ने उन्हें विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करने के लिए सबसे उपयुक्त पाया, जबकि छह महीने पहले मात्र 16 फीसद ऐसा मानते थे. इससे भी दिलचस्प बात ये है कि केजरीवाल की रेटिंग में पश्चिम, (31 फीसद) जो कि मोदी का घरेलू मैदान है-और उत्तरपूर्व (4 फीसद) जहां पीएम की लोकप्रियता सबसे ज्यादा है, में और अधिक उछाल देखने को मिली है.

हालांकि, उन्हें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के रूप में एक और चुनौती मिल सकती है, जिन्होंने 9 अगस्त को एनडीए छोड़कर विपक्षी राजद और कांग्रेस के साथ हाथ मिला लिया. नीतीश अतीत में भी प्रधानमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षाएं जता चुके हैं और एक संयुक्त विपक्षी मोर्चे के गठन के लिए धुरी के रूप में उभरने की कोशिश कर सकते हैं, जिसका अब तक विपक्षी दलों में अभाव रहा है. ममता बनर्जी (टीएमसी), के. चंद्रशेखर राव (टीआरएस) और शरद पवार (एनसीपी) सहित विपक्ष के सभी बड़े नेताओं के साथ उनके निजी समीकरण, उन्हें बढ़त दिलाते हैं. लेकिन विपक्ष के अन्य दल, सुविधा के अनुसार पलटी मारने की नीतीश की पुरानी प्रवृत्ति को लेकर भी सतर्क रहेंगे. इसमें संदेह नहीं है कि नीतीश के विपक्ष में वापसी का असर सिर्फ बिहार की 40 लोकसभा सीटों तक सीमित नहीं रहेगा.

देखें वीडियो- कांग्रेस की कार्यकर्ताओं का महंगाई के खिलाफ अनोखा प्रदर्शन

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