अमेरिकी सांसदों ने अफगानिस्तान पर बाइडन को क्यों घेरा?
अमेरिकी संसद के निचले सदन ‘हाउस ऑफ़ रेप्रजेंटेटिव्स’ के रिपब्लिकन सांसदों ने अमेरिकी सेना के अफ़ग़ानिस्तान से वापसी को लेकर एक रिपोर्ट शाया की है. क्या-क्या है इस रिपोर्ट में?
अमेरिकी संसद के निचले सदन ‘हाउस ऑफ़ रेप्रजेंटेटिव्स’ के रिपब्लिकन सांसदों ने एक रिपोर्ट शाया की है. इसमें अफ़ग़ानिस्तान से वापसी के दौरान फैली अराजकता के लिए बाइडन सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया है.
रिपोर्ट में क्या-क्या है?- बाइडन सरकार के पास अराजकता रोकने का पूरा मौका था. ताकि अमेरिकी सैनिकों, नागरिकों, ग्रीन कार्ड होल्डर्स और अफ़ग़ान सहयोगियों को बाहर निकाल जा सके. मगर सरकार ने हर कदम पर सुरक्षा की बजाय ऑप्टिक्स को तरजीह दी.
- बाइडन ने ज़िद के तहत सैनिकों को वापस बुलाया.
- उन्होंने सीनियर अधिकारियों की सलाह दरकिनार की.
- उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान सरकार की अपील को भी अनसुना किया.
- बाइडन ने सिक्योरिटी एक्सपर्ट्स और सलाहकारों पर भरोसा नहीं दिखाया. उन्होंने हमेशा अपनी राजनीति को राष्ट्रीय सुरक्षा से ऊपर रखा.
- उनके प्रशासन ने लगातार अमेरिकी जनता से झूठ बोला और गुमराह किया.
- वे डॉनल्ड ट्रंप के दोहा समझौते के साथ आगे बढ़े. और फिर उन्हीं को दोषी ठहराने लगे.
दरअसल, जनवरी 2020 में ट्रंप सरकार ने तालिबान के साथ दोहा में समझौता किया था. इसमें कुछ शर्तें तय हुईं थी. कहा गया था कि अगर तालिबान ने उन शर्तों का पूरा किया तो अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान छोड़ देगा. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि तालिबान शर्तों का उल्लंघन कर रहा था. मगर बाइडन सरकार ने उस पर ध्यान नहीं दिया.
आरोपों पर बाइडन क्या बोले?- अमेरिकी सत्ता-प्रतिष्ठान के केंद्र वाइट हाउस ने रिपोर्ट को पक्षपाती और पूर्वाग्रह से ग्रसित बताया है.
- डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसदों ने जवाब में एक चिट्ठी जारी की है. लिखा है कि रिपोर्ट में ट्रंप से जुड़े फ़ैक्ट्स को नज़रअंदाज़ किया गया है.
11 सितम्बर 2001 को अमेरिका पर आतंकी हमला हुआ. जिसमें क़रीब तीन हज़ार लोग मारे गए. हमले का मास्टरमाइंड ओसामा बिन लादेन अफ़ग़ानिस्तान में बैठा था. उस समय अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का शासन चल रहा था. अमेरिका ने लादेन को सौंपने की मांग की. तालिबान नहीं माना. फिर अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला कर दिया. दो महीने में तालिबान को काबुल छोड़कर भागना पड़ा. फिर अमेरिका ने हामिद करज़ई को अफ़ग़ानिस्तान की गद्दी पर बिठाया. मगर अपनी फ़ौज नहीं निकाली. उसने दावा किया कि अफ़ग़ानिस्तान का पुनर्निमाण किया जाएगा.
लेकिन ये इतना आसान था नहीं. कुछ समय बाद ही तालिबान ने पलटवार शुरू किया. बम धमाकों और गुरिल्ला हमलों का सिलसिला चलता रहा. अमेरिका सैनिकों की संख्या बढ़ाता रहा. मगर वो तालिबान को रोकने में नाकाम रहा.
फिर जनवरी 2017 में डॉनल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बन गए. उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान छोड़ने की पहल शुरू की. जनवरी 2020 में तालिबान के साथ समझौता कर लिया. जब तक अमेरिकी सैनिकों की वापसी का समय आता, तब तक ट्रंप कुर्सी से उतर चुके थे. ऐसे में वापसी की ज़िम्मेदारी जो बाइडन के पास आई. उन्होंने 31 अगस्त 2021 की डेडलाइन तय की. उससे दो हफ़्ते पहले ही तालिबान ने काबुल पर क़ब्ज़ा कर लिया. तालिबान के पहुंचने से पहले तत्कालीन राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी देश छोड़कर भाग चुके थे.
इसके बाद एयरलिफ़्ट कैंपेन वीभत्स होता गया. 26 अगस्त 2021 को काबुल एयरपोर्ट के पास एक बम धमाका हुआ. इसमें 180 से अधिक लोग मारे गए. मरने वालों में 13 अमेरिकी सैनिक भी थे. इस घटना के लिए बाइडन सरकार की ख़ूब आलोचना हुई. 2023 में वाइट हाउस ने अफ़ग़ानिस्तान से वापसी पर एक क्लासीफ़ाइ रिपोर्ट का सारांश रिलीज़ किया. उसमें सारी ज़िम्मेदारी दोहा डील पर डाली गई थी. ये डील ट्रंप ने की थी.
अब ट्रंप की पार्टी ने नई रिपोर्ट लाकर सारा दोष बाइडन पर डाल दिया है. ये रिपोर्ट ऐसे समय में आई है, जब अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव सिर पर है. इस चुनाव में ट्रंप और कमला हैरिस के बीच टक्कर है. हैरिस, बाइडन सरकार में उप-राष्ट्रपति का पद संभाल रहीं है.
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