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'ट्रंप संविधान को नहीं नकार सकते', H-1B वीजा की बढ़ी फीस के खिलाफ 20 अमेरिकी राज्य कोर्ट पहुंचे

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का H1-B वीजा का शुल्क बढ़ाने का दांव उल्टा पड़ता दिख रहा है. ट्रंप के फैसले के खिलाफ US के 20 राज्य कोर्ट पहुंचे हैं. इससे पहले भी इस मामले में कई केस कोर्ट में चल रहे हैं.

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US 20 States Lawsuit Agains Donald Trump 100,000 USD H1B Visa Fee
डॉनल्ड ट्रंप. (फाइल फोटो)
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रिदम कुमार
13 दिसंबर 2025 (Published: 12:42 PM IST)
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कैलिफोर्निया के अटॉर्नी जनरल रॉब बोंटा (Rob Bonta) ने शुक्रवार 12 दिसंबर को बताया कि वह राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के खिलाफ मुकदमा ठोक रहे हैं. कैलिफोर्निया के साथ अमेरिका के कुल 20 राज्यों ने ट्रंप के खिलाफ केस करने का फैसला लिया है. ट्रंप पर यह मुकदमा नई H-1B वीजा फीस बढ़ाकर 1,00,000 डॉलर (लगभग 88 लाख रुपये) करने को लेकर किया जा रहा है.

अमेरिकी मीडिया संस्थान पॉलिटिको की रिपोर्ट के मुताबिक, अटॉर्नी जनरल रॉब बोंटा का कहना है कि इतनी भारी-भरकम फीस लगाना गैरकानूनी है. कांग्रेस (अमेरिका की संसद) ने इसकी इजाजत नहीं दी है. उन्होंने कहा कि इससे H-1B वीजा के मूल उद्देश्य को नुकसान पहुंचता है. सैन फ्रांसिस्को में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा,

“कोई भी राष्ट्रपति इमिग्रेशन कानून को अपने हिसाब से नहीं बदल सकता. राष्ट्रपति कांग्रेस को, संविधान को या कानून को नजरअंदाज नहीं कर सकते.”

राष्ट्रपति ट्रंप के खिलाफ मुकदमा करने वाले सभी राज्यों के अटॉर्नी जनरल डेमोक्रेटिक पार्टी से हैं. 

अटॉर्नी जनरल रॉब बोंटा ने आगे कहा कि वीजा फीस बढ़ाने के फैसले ने डॉक्टरों, नर्सों, शिक्षकों, रिसर्चरों जैसे जरूरी पेशों में पहले से मौजूद कर्मचारियों की कमी को और बढ़ा दिया है. उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि यह 1,00,000 डॉलर फीस होमलैंड सिक्योरिटी सेक्रेटरी की मर्जी से चुनिंदा मामलों में लगाई जा सकती है, जिससे भेदभाव होने का खतरा है. बोंटा ने H-1B सिस्टम में सुधार की जरूरत तो मानी लेकिन किसी खास सुधार का सुझाव नहीं दिया.

क्या कहते हैं ट्रंप समर्थक?

H-1B वीजा का इस्तेमाल आमतौर पर बड़ी टेक कंपनियां करती हैं, ताकि वे विदेश से स्किल्ड वर्कर को ला सकें. इस मुद्दे पर पहले भी ट्रंप समर्थकों और सिलिकॉन वैली की कंपनियों के बीच मतभेद रहे हैं. मेक अमेरिका ग्रेट अगेन (MAGA) के समर्थक रिपब्लिकन नेताओं का कहना है कि ये कंपनियां अमेरिकी नागरिकों की जगह सस्ते विदेशी कामगारों को रखती हैं.

ट्रंप का रुख नरम पड़ा

हाल के महीनों में डॉनल्ड ट्रंप ने थोड़ा नरम रुख दिखाया है. एक टीवी इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि अमेरिका में हर क्षेत्र के लिए पर्याप्त टैलेंट नहीं है और कुछ मामलों में विदेश से कामगार लाने की जरूरत होती है. वहीं, वाइट हाउस की प्रवक्ता टेलर रोजर्स ने फीस बढ़ाने के फैसले का बचाव किया. उन्होंने कहा कि यह कदम कानून के दायरे में है. यह अमेरिकी कामगारों को प्राथमिकता देने के लिए जरूरी है. इससे कंपनियों द्वारा सिस्टम के गलत इस्तेमाल पर रोक लगेगी.

ट्रंप पर यह 49वां केस

इससे पहले अमेरिकी चैंबर ऑफ कॉमर्स और कई रिसर्च यूनिवर्सिटीज ने भी फीस बढ़ोतरी के खिलाफ अलग मुकदमे दायर किए हैं. यह नया मुकदमा मैसाचुसेट्स की फेडरल कोर्ट में दायर किया गया है. इसे कैलिफोर्निया और मैसाचुसेट्स के अटॉर्नी जनरल मिलकर लीड कर रहे हैं. यह इस साल ट्रंप प्रशासन के खिलाफ बोंटा का 49वां मुकदमा है.

भारत से कनेक्शन

H-1B वीजा आमतौर पर 3 से 6 साल की अवधि के लिए दिए जाते हैं. अमेरिका हर साल 85,000 H-1B वीजा लॉटरी सिस्टम से जारी करता है. ज्यादातर मामलों में नौकरी देने वाली कंपनियां H-1B वीजा का खर्चा उठाती हैं.

अमेरिकी सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक सभी स्वीकृत H-1B वीजा धारकों में 71 प्रतिशत भारत से आते हैं. चीन का हिस्सा 11.7 प्रतिशत है. यही वजह है टेक कंपनियों को इसे लेकर चिंता सता रही है. विदेशी कामगारों पर इस तरह की रोक की वजह से टेक कंपनियों को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है.

वीडियो: H-1B वीसा की फीस 1 लाख डॉलर किसपर लागू होगी, कौन बचा रहेगा, ट्रम्प प्रशासन ने सब बता दिया

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