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लड़ना था प्रधानी का चुनाव लेकिन सीट हो गई आरक्षित, नेताजी घर में ले आए उसी वर्ग की बहू

सामान्य सीट आरक्षित होने के बाद मुस्लिम परिवार का फैसला.

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पिता (बाएं) ने बेटे के शादी पिछड़ी जाति में की ताकि बहू को चुनाव लड़वा सकें. (फोटो-आजतक)
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डेविड
25 मार्च 2021 (Updated: 25 मार्च 2021, 12:18 PM IST)
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उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव के लिए आरक्षित सीटों की लिस्ट जारी होने के बाद कई जिलों के राजनीतिक समीकरण बदल गए है. ऐसा ही एक मामला देवरिया जिले का है. पिछड़े वर्ग के लिए सीट आरक्षित होने के बाद पिछले कई सालों से गांव के प्रधान का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे एक व्यक्ति ने अपने बेटे की शादी पिछड़े वर्ग में आने वाले परिवार में कर दी, ताकि बहू को चुनाव लड़वाया जा सके और प्रधानी घर में ही बनी रहे. क्या है मामला? आज तक से जुड़े राम प्रताप सिंह की रिपोर्ट के मुताबिक, आरक्षित सीटों की नई लिस्ट जारी होने के बाद कहीं खुशी तो कहीं गम का माहौल है. देवरिया जिले के तरकुलवा ब्लॉक के नारायनपुर गांव में इस बार सीट पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित हो गई. यहां के सामान्य वर्ग से आने वाले सरफराज अहमद 2015 के चुनाव में मात्र 28 वोटों से हार गए थे. 2021 के लिए जब आरक्षित सीटों की पहली लिस्ट जारी हुई तो यह सीट सामान्य वर्ग में थी, लेकिन दूसरी लिस्ट जारी होने के बाद समीकरण बदल गया और सीट ओबीसी कोटे में चली गई. अपने मंसूबों पर पानी फिरता देख उन्होंने अपने बेटे सिराज अहमद की शादी पिछड़े वर्ग की एक लड़की से करने का फैसला लिया. उन्होंने पिछड़े वर्ग से आने वाली कुशीनगर जिले के विशुनपुरा जौरा बाजार की सलमा खातून से अपने बेटे की शादी कर दी. अब वो बहू को प्रधानी का चुनाव लड़वाएंगे. सरफराज अहमद ने बताया,
2015 में मैंने प्रधानी का चुनाव लड़ा. कुछ वोटों से हार गया. इस बार सीट पिछड़ी जाति के लिए आरक्षित हो गई. मैं मुस्लिम समाज की अगड़ी जाति से आता हूं. सीट आरक्षित होने की वजह से चुनाव नहीं लड़ पाता. गांव के लोगों का दबाव था कि आपको चुनाव लड़ना है. लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए मैंने अपने बेटे की शादी पिछड़ी जाति में कर दी. अपनी बहू को इस सीट से चुनाव लड़वाएंगे. गांव के लोगों की मांग थी, इसलिए मुझे अपने बेटे का निकाह पिछड़ी जाति की लड़की से करना पड़ा.
वहीं शादी करने वाले सिराज अहमद का कहना है,
इस बार सीट पिछड़ी जाति के लिए आ गई, इससे हमारे शुभचिंतकों को निराशा हाथ लगी. पिताजी समाजसेवी हैं. उन्हें कहीं से आइडिया मिला कि पिछड़ी जाति की लड़की से शादी कर लिया जाए और उन्हें चुनाव लड़ाया जाए. इससे समाजसेवा का जो भाव है उसे निभाते रहेंगे. मुझे लगता है कि जात-पात से आगे बढ़कर समाजसेवा है. इससे बढ़कर कोई जाति और धर्म नहीं.
शादी करने वाली सलमा खातून का कहना है,
अपने निकाह से खुश हूं. ससुराल जाकर प्रधानी का चुनाव लड़ूंगी. अगर जीत गई तो गांव का विकास करूंगी. पिछड़ों के विकास के लिए काम करूंगी.
लड़की के पिता शब्बीर अंसारी का कहना है,
पहले से हमारा परिचय था, जब सीट आरक्षित हुई तो उनके द्वारा शादी का प्रस्ताव रखा गया. इसे मैंने स्वीकार कर लिया. मुझे खुशी है कि मेरी बेटी प्रधान बनकर सेवा करेगी.
वहीं एक ग्रामीण ने बताया कि सरफराज अहमद के बेटे की शादी अंसारी बिरादरी की लड़की से करवा दी है. सरफराज दस सालों से गांव की सेवा करते चले आ रहे है. बहुत अच्छे समाजसेवी हैं. होली, दीवाली, नवरात्रि हम लोगों के साथ मिलकर मनाते हैं, इसलिए हमने सोचा कि यह शादी करवा दी जाए, जिससे उनका परिवार चुनाव लड़ सके.

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